EXCLUSIVE: कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति का जाना तय! आरटीआइ से हुआ बड़ा खुलासा
देहरादून। उत्तराखंड राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में नियुक्ति और विशेष तौर पर कुलपति पद की नियुक्ति निरंतर विवादास्पद होती जा रही है। ऐसा तब हो रहा है, जबकि राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति पद की नियुक्ति संबंधी विज्ञापनों में नियुक्ति संबंधी अर्हताओं और आवश्यक योग्यताओं का स्पष्ट उल्लेख तो किया जा रहा है,लेकिन उनका पालन नही। राज्य के विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के संबंध में एक अनिवार्य शर्त है कि कुलपति पद पर नियुक्ति चाहने वाले अभ्यर्थी को अनिवार्य रूप से दस वर्ष तक प्रोफेसर होना चाहिए। जबकि कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति इस योग्यता को पूरा नही करते है। बावजूद उसके भी वह इस पद पर बने हुये है।
जबकि दस वर्ष प्रोफेसर होने की अनिवार्य शर्त के पूरा न होने के कारण ही उच्च न्यायालय नैनीताल ने 03 दिसंबर 2019 को सुनाये गए अपने फैसले में दून विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. चंद्रशेखर नौटियाल को कुलपति पद से बर्खास्त कर दिया था। ऐसा ही मामला कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के कुलपति नियुक्त किए गए प्रो. एनके जोशी का भी प्रतीत होता है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के कुलपति पद के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाली विज्ञप्ति में उल्लेख था कि आवेदक को विश्वविद्यालय में कम से कम दस वर्षों के लिए आचार्य के रूप में अनुभव या एक प्रतिष्ठित अनुसंधान या शैक्षणिक प्रशासनिक संगठन में शैक्षणिक नेतृत्व के साक्ष्य के साथ 10 वर्षों के अनुभव के साथ एक विशिष्ट शिक्षाविद होना चाहिए।
दस्तावेज न्यूज पोर्ट द्वारा राजभवन से जब इस संबंध में सूचना के अधिकार अनिनिय के तहत सूचना मांगी गयी तो यह हैरान करने वाली थी। पहले तो उच्च शिक्षा अनुभाग से लेकर उच्च शिक्षा निदेशालय आरटीआई को घुमाता रहा, लेकिन बाद में राजभवन द्वारा दस्तावेज को वह साक्ष्य प्रस्तुत किये गये जिससे साफ होता है कि कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति दस वर्ष का आचार्य के रूप में अनुभव नही रखते है। सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत प्राप्त प्रो. एनके जोशी के बायोडाटा को देख कर यह स्पष्ट होता है कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए चयन समिति के विज्ञापन में उल्लिखित उपरोक्त अनिवार्य अर्हता को प्रो. एनके जोशी पूरा नहीं करते हैं। उनके बायोडाटा से स्पष्ट है कि प्रो. एनके जोशी ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय में नियुक्ति से पूर्व किसी सरकारी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्य नहीं किया। प्रोफेसर होने का उनका जो भी दावा है, वो निजी संस्थानों का है। जहां की नियुक्ति प्रक्रिया की वैधता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने का कोई माध्यम या पैमाना नहीं है।
इन निजी संस्थानों में पद और पदनाम किस कदर मनमाने तरीके से प्रयोग किए जाते हैं, इसका अंदाजा प्रो. एनके जोशी के बायोडाटा और उनके प्रकाशनों की सूची से लगाया जा सकता है। चयन समिति के सम्मुख प्रस्तुत अपने बायोडाटा में प्रो. एनके जोशी ने लिखा है कि वे 16 अगस्त 2017 से उत्तरांचल विश्वविद्यालय, देहारादून के कुलपति हैं। वहीं, उनके एक शोध पत्र-जिसका शीर्षक है “ EÛtended Multi Queue Job Scheduling in Cloud में वे तृतीय लेखक (Third Author) हैं। नवंबर 2017 में प्रकाशित इस शोध पत्र में प्रो. एनके जोशी ने स्वयं को Director, Uttaranchal Institute of Technology, Uttaranchal University, Dehradun लिखा है। जिससे सवाल खडा होता है कि कोई व्यक्ति यदि कुलपति के सर्वोच्च पद पर आसीन है तो वह स्वयं को डायरेक्टर क्यूँ लिखेगा ? ऐसा इसलिए है क्योंकि निजी संस्थानों में सारे पदों पर पदोन्नति की न तो कोई निर्धारित प्रक्रिया है, न उसकी कोई अहमियत।
आश्चर्यजनक बात यह है कि स्वयं को 15 वर्षों से प्रोफेसर बताने वाले एनके जोशी का पहला प्रकाशन (publication) 2017 का है। बिना किसी प्रकाशन के कोई व्यक्ति प्रोफेसर कैसे हो सकता है ?
प्रकाशनों (publications) की बात आई है तो यह भी गौरतलब है कि जिन जर्नल्स (journal) में प्रो. एनके जोशी ने स्वयं के शोध पत्र प्रकाशित होना, बायोडाटा में दर्शाया है, उनकी अकादमिक वैधता भी संदिग्ध है। जैसे प्रो. एनके जोशी के नवंबर 2017 के जिस शोध पत्र का ऊपर उल्लेख किया गया है, वह International Journal of Computer Science and information Security में प्रकाशित हुआ है। उक्त जर्नल के बारे में https://predatoryjournals-com/नामक वैबसाइट बताती है कि यह प्रेडटरी जर्नल ( predatory journal) है। प्रेडटरी जर्नल, अकादमिक जगत में उन जर्नल्स को कहा जाता है, जिनके पास शोध पत्र की गुणवत्ता परखने का कोई पैमाना नहीं होता और जो लेखकों से भारी धनराशि के एवज में उनके शोध पत्र प्रकाशित करते हैं। जाहिर सी बात है कि प्रेडटरी जर्नल में छपे शोध पत्रों का अकादमिक जगत में महत्व शून्य है। प्रो. एनके जोशी के बायोडाटा में दर्शाये गए शोधपत्र ऐसे ही प्रेडटरी जर्नल्स में छपे हैं, जो किसी भी अकादमिक व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर सवाल खडे करते है।
इतना ही नही प्रो. एनके जोशी की ओर से अपने बायोडाटा में पीएचडी बिना किसी विषय के तथा केवल शोध शीर्षक के साथ 1996 में पूर्ण करना दर्शाया गया है, जबकि एफआरआई, देहारादून की वेबसाइट के अनुसार इनकी पीएचडी फारेस्टरी विषय में 28 जनवरी 1998 को दर्शायी गयी है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रो. एनके जोशी द्वारा अपने बायोडाटा में पीएचडी के संबंध में भी सही तथ्य नहीं दिये गए हैं।
इसके साथ ही, प्रो. एनके जोशी अपने बायोडाटा में अपने आप को Fellow at Centre for Advance Engineering Study (CAES), Massachusetts Institute of Technology (MIT), Boston, USA, 1980 लिखा गया है, जबकि Fellow केवल अकादमिक सोसाइटी द्वारा प्रदान किया जाता है। न कि किसी संस्थान या विश्वविद्यालय द्वारा। अतः यह जानकारी भी संदिग्ध प्रतीत होती है।
प्रो. एनके जोशी के बायोडाटा के अनुसार 2017 के पूर्व इनका कोई भी शोध पत्र, किसी अकादमिक जर्नल (Journal) में प्रकाशित नहीं हुआ है। केवल कॉन्फ्रेंसध् सेमिनार बायोडाटा में दर्शाये गए हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि 2017 से पहले प्रो. एनके जोशी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी) द्वारा निर्धारित अर्हता पूरी ही नहीं करते थे तो उनके 15 वर्ष तक प्रोफेसर रहने का प्रश्न ही नहीं उठता।
प्रो. एनके जोशी के बायोडाटा के अनुसार उन्होंने एमएससी (फिजिक्स) 1983 तथा पीएचडी (फॉरेस्ट्री) की उपाधि 1996 में प्राप्त की। प्रो. एनके जोशी स्वयं को Associate Professor (Computer Science and MIS) 1997-99, Associate Professor (Information Technology) 1999-2002, Professor (Information Technology) 2002-03, Professor (Computer Science) 2003-09 तथा Director & Professor (Computer Science) 2009-11 बताया है। Computer Science या Information Technology की किसी उपाधि का जिक्र प्रो. एनके जोशी के बायोडाटा में नहीं है, जिससे पूरा मामला संदिग्ध प्रतीत होता है।
उधर इस मामले की शिकायत राजभवन से भी की जा चुकि है। जिसमें कहा गया है कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल के कुलपति पद के लिए चयन समिति की ओर से जारी विज्ञप्ति में अभ्यर्थी से प्रोफेसर के रूप में सेवा अवधिध् राष्ट्रीय अवार्ड / प्रकाशन की अपेक्षा की गयी थी। प्रो. एनके जोशी के बायोडाटा को देख कर स्पष्ट होता है कि वे इनमें से किसी पैमाने पर खरे नहीं उतरते हैं। इसके बावजूद कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर उनकी नियुक्ति हैरतंगेज और एक उत्कृष्ट अकादमिक संस्थान के तौर पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली है।
उधर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष एवं आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता रविन्द्र जुगराण ने भी राज्यपाल से आग्रह किया है कि उक्त तथ्यों के आलोक में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर प्रो .एनके जोशी की नियुक्ति को तत्काल रद्द करने किया जाए। साथ ही कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए स्पष्ट अर्हताओं के उल्लेख के बावजूद, किन परिस्थितियों में ये नियुक्ति की गयी। इस बात की जांच के आदेश भी दिए जाएं।
ऐसे हुआ खुलासा
दरसल दस्तावेज द्वारा राजभव राज्यपाल सचिवालय उत्तराखंड से दिनांक 15.11.2020 को कुमाउ विश्वविद्यालय के कुलपति चयन से संबंधित कुल 08 बिंदुओं पर सूचना मांगी गयी थी। जिसके जवाब में राज्यपाल सचिवालय की ओर से बताया गया कि बिंदु संख्या 01.04,05 व 07 के संबंध में राज्यपाल सचिवालय में कोई अभिलेख सूचना धारित न होने एवं अपेक्षित सूचना बिंदुओं का संबंध कुमाउ विवि से बताया गया। लेकिन मजेदार बात यह रही कि कुमाउ विवि ने भी राजभवन सचिवालय के पत्र के जवाब में कहा कि उनके पास भी इस संबंध में कोई अभिलेख मौजूद नही है। जिससे साफ होता है कि एक विवि के कुलपति की तैनाती कर दी जाती है और राजभवन सचिवालय और विवि के पास उनकी शैक्षिक योग्यता से संबंधित कोई प्रमाण-पत्र की प्रति ही उपलब्ध नही है। इससे एक बडा सवाल खडा हो गया है कि क्या बिना किसी सत्यापन के सिर्फ बायोडाटा के आधार पर ही कुलपति का चयन कर दिया गया है।