EXCLUSIVE: वाह रे उत्तराखंड शिक्षा विभाग ‘अंधेर नगरी चौपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’

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देहरादून। शिक्षा विभाग के अधिकारियों को अब तो शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे से भी डर नही लगता है लगता है अधिकारियों ने मान लिया है कि अब चुनाव नजदीक है ऐसे में शिक्षा मंत्री की बात को गंभीरता से लेने की जारूरत नही है। यह बात इस लिये सिद्ध हो गयी है कि बार बार शिक्षा मंत्री के कहने के बावजूद भी एस0सी0ई0आर0टी0 में बडा खेल हो गया है।

दरसल निदेशालय अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण की देखरेख में एस0सी0ई0आर0टी0 का नवीन ढाँचे का प्रस्ताव नियमावली सहित तैयार कर शासन को भेजा गया है। लेकिन यह प्रस्ताव पहले ही सवालों के घेरे में आ चुका है। इस प्रस्ताव ने कई सवाल खड़े कर दिये, दस्तावेज डाॅट इन ने पहले ही आशंका जता दी थी कि विभाग किसी भी कीमत पर एस0सी0ई0आर0टी0 व डायटों के लिए केन्द्र के दिशा-निर्देशों पर तैयार 27 जून 2013 के शासनादेश को लागू न कर इसमें संशोधन की फिराक में है।

दस्तावेज समाचार पोर्ट ने दो महीने पहले और दो सप्ताह पूर्व समय-समय पर खबर प्रकाशित की थी। जिसमें समाचार पोर्ट की ओर से आशंका जतायी गयी थी कि निदेशक अकादमिक एवं शोध निदेशक सीमा जौनसारी अपने चहेतों को एडजस्ट करने के लिए विभागीय मंत्री अरविंद पांडे व वित्त सचिव अमित नेगी के आदेश को नजर अंदाज कर ऐसे प्रस्ताव शासन को भेजने की फिराक में है जिससे उनके चहेते तो एडजस्ट हो जायेंगे, लेकिन राज्य सरकार से केंद्र सरकार को मिलने वाला अनुदान नही मिल पायेगा।

दस्तावेज डाॅट इन ने पहले ही आशंका जता दी थी

शिक्षा विभाग के अड़ियल रवैये का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कहाँ तो एक ओर विभाग को 2013 के शासनादेश की नियमावली बनानी थी और वहीं दूसरी ओर विभाग द्वारा इसके उलट इसका संशोधित प्रस्ताव तैयार कर नियमावली के साथ शासन को भेज दी गयी। जो शासनादेश 2013 में हो चुका है उसकी नियमावली तो विभाग आज सात साल तक नहीं तैयार नहीं कर पाया लेकिन चहेतों को खपाने को आतुर अधिकारियों की एक लाॅबी ने खुद को ढाँचे में फिट करने के लिए आनन-फानन में नियमावली सहित प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया। इतनी तत्परता यदि विभाग द्वारा 2013 के शासनादेश की नियमावली बनाने में दिखायी होती तो आज तक केन्द्र द्वारा एस0सी0ई0आर0टी0 के कार्मिकों के वेतन का 90 प्रतिशत अंश देकर प्रदेश के करोड़ों रूपयों की बचत हो जाती क्योंकि 2013 का शासनादेश लागू न होने के कारण केन्द्र द्वारा यह धनराशि नहीं दी जा रही है जिससे एस0सी0ई0आर0टी0 के कार्मिकों के वेतन का पूरा भार राज्य सरकार पर पड़ रहा है। 

 मजेदार बात है कि विभाग द्वारा भेजे गये प्रस्ताव में केन्द्र की गाइडलाइन्स को दरकिनार कर दिया गया है, इससे भविष्य में भी केन्द्र से वेतन का 90 प्रतिशत अंश मिलने की उम्मीद ही खतम हो जाएगी। उत्तराखण्ड शिक्षा विभाग एक ऐसा विभाग है जहाँ स्कूलों में शिक्षक तो नहीं मिलते लेकिन अधिकारियों की लम्बी चैड़ी फौज जरूर मिलती है जिसकी शिक्षा के गिरते स्तर के लिए कोई जवाबदेही तय नहीं है। इस छोटे से प्रदेश में अधिकारियों ने अपने पदों को बढाने के लिए पहले तो अकादमिक और प्रशासनिक अधिकारियों के बँटवारे का राग छेड़ा और इसका शासनादेश करवाया। अजब बात है कि यह एक ऐसा विभाग है जहाँ धरातल पर कार्य करने वाला श्क्षिक अपने ही विभाग में प्रधानाचार्य से आगे नहीं बढ सकता है क्योंकि वह अकादमिक संवर्ग का है, बल्कि विभाग में अधिकारी वर्ग का चयन सीधी भर्ती के माध्यम से लोक सेवा आयोग से होता है अर्थात अधिकारी बनने के लिए शिक्षा की धरातल पर चुनौतियों का सामना करने के वर्षों के अनुभव को कोई तरजीह नहीं है, ऐसा शायद ही किसी अन्य व्यवस्था में हो।

ऐसी व्यवस्था के बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों का अकादमिक संस्थानों के प्रति मोह कम नहीं हुआ इसीलिए आज भी अधिकतर अधिकारी जनपदों में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्य नहीं करना चाहते जिससे जनपदों के अधिकतर पद खाली पड़े है और अधिकारी मुख्यालय या एस0सी0ई0आर0टी0 और डायटों में जमे हुए हैं।