एक्सक्लूसिवः वाह….! कुलपति लिख रहे ‘डायरी’ और कुलसचिव ताप रहे ‘घाम’
देहरादूनः प्रदेश सरकार का दावा है कि उसका सबसे ज्यादा फोकस उच्च शिक्षा पर है। सरकार का तर्क है कि उच्च शिक्षा मजबूत होगी तो राज्य में होनहारों की फौज खड़ी होगी। ताकि भविष्य में यही नौजवान प्रदेश के नीति-नियंता बन कर विकास की बयार ला सके। लेकिन सरकार की इस मंशा पर विश्वविद्यालय और उसके कारिंदे बट्टा लगाने में तुले हैं। बिडंबना देखिए कि छात्र संख्या के लिहाजा से प्रदेश का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय ही सरकार की कोशिशों पर कुठाराघात कर रहा है। इस विश्वविद्यालय के नियंता ही सरकार की नीतियों की नाफरमानी में जुटे हैं। आलम यह है कि विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति अपने अतीत की भूली-बिसरी यादों को सहेजने में मशगूल हैं। वह ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ की तर्ज पर डायरी के पन्नों में अपनी आपबीती को उकेरने में तल्लीन है। उनके इस तरह डायरी लेखन में खो जाने से कहीं नहीं लगता कि वह विश्वविद्यालय के प्रति फिक्रमंद है।
सुस्त है सारथी
एक ओर जहां विश्वविद्यालय के कुलपति डायरी लेखन में जुटे हैं तो दूसरी ओर उनके सारथी यानी विश्वविद्यालय के कुलसचिव भी उनके नक्शेकदम पर चल रहे हैं। कुलसचिव भी विश्वविद्यालय के प्रति उदासीन हैं। उनका पूरा दिन ‘उबासी’ लेने में गुजर जाता है। कुलसचिव के नाम रिकार्ड है कि वह विवि के मुख्यालय में महीने में सिर्फ एक बार ही जा पाते है और विवि परिसर में लगी श्रीदेव सुमन की मूर्ति के दर्शनकर लौट आते है। वह हर रोज लगभग 100 किलोमीटर सरकारी वाहन का तेल फूंक अपने कार्यालय में सिर्फ ‘घाम’ तापने आते हैं। चूंकि वह विवि मुख्यालय जाते नहीं तो उनके पास करने को काम है नहीं। लिहाजा इन दिनों वह कार्यालय के बाहर कुर्सी लगाकर ‘ह्यूंद के घाम’ का आनंद ले रहे हैं। ऐसे में कुलपति और कुलसचिव के नेक इरादों से विश्वविद्यालय बेलगाम होता जा रहा है और सरकार का प्रदेश को ‘विद्या धाम’ बनाने का दावा कर रही है।
बेलगाम होता विश्वविद्यालय
प्रदेश का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय जिसके पास लगभग 200 काॅलेज संबद्ध हैं और लाखों की छात्र संख्या है। जिसे सेंटर फाॅर एक्सीलेंस बनाने का सपना देखा गया। वहीं विश्वविद्यालय आज बेलगाम होता जा रहा है। विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव के निठल्लेपन के कारण विश्वविद्यालय के मुख्यालय से आलाधिकारी गायब रहते हैं। जो अधिकारी विवि में रहते भी हैं उन्हें नहीं मालूम कि करना क्या है। विभिन्न पदों पर आसीन अधिकारी अनुभवहीन है उन्हें अपने ही कार्यक्षेत्र का पता नहीं है। ऐसे में कैसे विश्वविद्यालय को सेंटर फाॅर एक्सीलेंस बनाया जायेगा। विश्वविद्यालय के कुलपति निर्णय लेने के लिए शासन पर निर्भर हैं और कुलसचिव को पता ही नहीं करना क्या है। दूसरी पंक्ति के अधिकारी खानापूर्ति तक सीमित है। विश्वविद्यालय बेलगाम होता जा रहा है, व्यवस्थाएं औंधे मुंह गिर रही है, कुलपित डायरी में अपना अतीत उकेर रहे हैं और कुलसचिव ‘घाम’ ताप रहे हैं। सरकार ‘विद्या धाम’ बनाने का जुमला फेंक रही है और दांव पर हमारे नौनिहालों का भविष्य है।
डीएम के डर से अपडेट हुई वेबसाइट
विश्वविद्यालय के हालात इतने बुरे हैं कि टेक्नोलाॅजी के इस जमाने में विश्वविद्यालय कहीं भी खरा नहीं उतरता है। कहने को तो विश्वविद्यालय में सभी काम आनलाइन होते हैं। लेकिन विश्वविद्यालय की बेवसाइट में दर्ज फोन नंबर तब अपडेट हुए जब जिलाधिकारी ने विवि के अधिकारियों को जमकर लताड़ लगाई। जिलाधिकारी ने दो टूक कहा कि विश्वविद्यालय की वेबसाइट अगर दो घंटे में अपडेट नहीं हुई तो वह कार्रवाही करने से नहीं हिचकेंगे। डीएम की डांट का असर तो हुआ लेकिन छात्रों की समस्या जस की तस बनी हुई है। जिन अधिकारियों से छात्र अपनी समस्या का हल पूछ रहे हैं उनमें से अधिकांश अधिकारी जानकारी के अभाव में उटपटांग बातें बता कर छात्रों को टरका रहे है। कई छात्रों का कहना है कि उनके पास अधिकारियों की बातचीत की रिकाॅर्डिंग भी है। जिसे वह राज्यपाल के पास जाकर सुनायेंगे।
अंधेरे में एसआईटी रिपोर्ट
प्रदेश में इन दिनों छात्रवृत्ति घोटाले की जांच तेजी से चल रही है। विश्वविद्यालय से संबद्ध कई काॅलेज एसआईटी की रडाॅर पर है। ऐसे में एसआईटी को विश्वविद्यालय से कोई मदद नहीं मिल रही है। एसआईटी के अधिकारियों ने कई दफा विवि को आगाह भी किया है लेकिन विवि के आलाधिकारियों के कान में जूं नहीं रेंग रहे हैं। एसआईटी के अधिकारियों का कहना है कि विश्वविद्यालय से रिपोर्ट मांगी गई थी लेकिन तीन माह हो गये है और विवि ने कोई रिपोर्ट नहीं दी। वहीं एसआईटी रिपोर्ट को लेकर विवि में कुलसचिव और परीक्षा नियंत्रक के बीच नुराकुश्ती चल रही है। दोनों ही एसआईटी रिपोर्ट को लेकर गेंद एक दूसरे के पाले में डाल रहे हैं। वहीं छात्रवृत्ति घोटाले की जांच टीम भी हैरान है कि इतने बड़े विश्वविद्यालय में जिम्मेदारी लाने वाला कोई भी अधिकारी नहीं है। आलम यह है कि कुलसचिव की ओर से ऐसे अधिकारी को काॅलेजों का डाॅटा एकत्र करने के लिए कहा गया है जिनके कार्य क्षेत्र में यह आती ही नही है। संबद्धता का सीधा मामला कुलसचिव से जुडा होने के बावजूद भी स्वयम को जांच से दूर रखने से साफ है कि आने वाले दिनों में एसआईटी का शिकंजा विवि के कुलसचिव पर भी कस सकता है। उधर जिन अधिकारियों को एसआईटी की जिम्मेदारी दी गयी है वह अधिकारी परीक्षा से संबंधित है। ऐसे में उक्त अधिकारियों की यह समझ में ही नहीं आ रही है कि उनके विवि से कुल कितने काॅलेज संबद्ध है। यह अधिकारी अभी तक संबद्धता की पूर्ण जानकारी से भी वाकिब नहीं है। जिससे एसआईटी जांच में विलम्ब होता जा रहा है। विवि के कुलपति का इससे कोई सरोकार नहीं है वह अपनी डायरी में अतीत के पल दर्ज करने में जुटे हुए है तो कुलसचिव ‘घाम’ ताप ते ठहरे।