किसान दिवस : चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजी शासन में भी किसानों की कराई थी कर्जमाफी
किसानों के मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह किसानों के हितों का बखूबी ख्याल रखते थे। किसानों की जमीनी हकीकत से पूर्व प्रधानमंत्री पूरी तरह से वाकिफ थे इसीलिए किसानों की विभिन्न समस्याओं और मजबूरियों को लेकर चिंतित रहते थे। चौधरी चरण सिंह वो नेता थे जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी में भी भारत के किसानों का कर्ज माफ कराने का दम रखा था, उन्होंने खेतों की नीलामी, जमीन उपयोग का बिल तैयार करवाया था इसी वजह से उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता है।
भारत के पांचवें प्रधानमंत्री और किसानों की आवाज बुलंद करने वाले प्रखर नेता चौधरी चरण सिंह की आज जन्मतिथि है। उनका जन्म आज ही के दिन 23 दिसबंर 1902 में हुआ था। बतौर प्रधानमंत्री 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक लगभग 6 महीने रहे। चौधरी चरण सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांच में एक मध्यम वर्गीय जाट किसान परिवार में हुआ था। भारत को किसानों का देश कहा जाता है और किसानों से जुड़े मुद्दों पर आये दिन आवाज उठती है। इस दिन को किसान दिवस के तौर पर मनाने का मकसद पूरे देश को यह याद दिलाना है कि किसान देश का अन्नदाता है और यदि उसे कोई समस्या आती है तो उसे दूर करना पूरे देश का दायित्व है।
देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है
चौधरी चरण सिंह ने अपना संपूर्ण जीवन गांव एवं गरीबों के लिए समर्पित कर दिया। इसीलिए देश के लोग मानते रहे हैं कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं, विचारधारा का नाम है। चौधरी चरण सिंह कहते थे कि देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है। उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। चाहे कोई भी नेता आ जाए, चाहे कितना ही अच्छा कार्यक्रम चलाओ, जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वह देश कभी तरक्की नहीं कर सकता। स्वतंत्रता सेनानी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने चौधरी चरण सिंह ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की और आह्वान किया कि भ्रष्टाचार का अंत ही देश को आगे ले जा सकता है।
वर्ष 1928 में गाजियाबाद में वकालत शुरू की
उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के समय राजनीति में प्रवेश किया। उनके पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्य विरासत में चरण सिंह को सौंपा थे। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर वर्ष 1928 में चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत शुरू की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे, जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। वर्ष 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के ‘पूर्ण स्वराज्य’ उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। वर्ष 1930 में महात्मा गांधी के चलाए सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने नमक कानून तोड़ने को डांडी मार्च किया।
उत्तर प्रदेश में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला
वर्ष 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफ्तार हुए। फिर अक्टूबर, 1941 में रिहा किए गए। 9 अगस्त, 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवा चरण सिंह ने भूमिगत होकर गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। चौधरी चरण सिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई, 1952 को उत्तर प्रदेश में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला।
उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया
किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए चुनावों में चौधरी चरण सिंह राज्य विधानसभा के लिए फिर चुने गए। वर्ष 1951 में उन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग संभाला। वर्ष 1952 में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला। वह जमीन से जुड़े नेता थे और कृषि विभाग उन्हें विशिष्ट रूप से पसंद था। चौधरी चरण सिंह किसान थे इसीलिए किसानों के हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे। वर्ष 1960 में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया। उत्तर प्रदेश ही नहीं देशभर के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे।
भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने
चौधरी साहब 3 अप्रैल, 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। तब उनकी निर्णायक प्रशासनिक क्षमता की धमक और जनता का उन पर भरोसा ही था कि वर्ष 1967 में पूरे देश दंगे होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कहीं पत्ता भी नहीं खड़का। 17 अप्रैल, 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फरवरी, 1970 को वह मुख्यमंत्री बने। उन्होंने अपने सिद्धांतों व मर्यादित आचरण से कभी समझौता नहीं किया। वर्ष 1977 में चुनाव के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृहमंत्री बनाया गया। केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल व अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। वर्ष 1979 में वित्तमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में चोधरी साहब ने राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की। बाद में मोरारजी देसाई और चरण सिंह के बीच मतभेद हो गया। 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने। चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा।
प्रधानमंत्री से ज्यादा किसान नेता के रूप में जाने जाते हैं
देश के इतिहास में उनका नाम प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाता है। अत: संपूर्ण जीवन गांव एवं गरीबों के लिए समर्पित कर दिया, जिसके लिए चौधरी चरण सिंह जयंती से अच्छा मौका नहीं था। उनके किए कार्यो को ध्यान में रखते हुए 23 दिसंबर को भारतीय किसान दिवस की घोषणा की गई। तभी से देश में प्रतिवर्ष किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 29 मई, 1987 को 84 वर्ष की उम्र में जनमानस का यह नेता इस दुनिया को छोड़कर चला गया।