फाॅलोअपः …. और चौराहे पर विश्वविद्यालय की व्यवस्थाएं, कौन लेगा जिम्मेदारी?

0
university corrtun

देहरादूनः यूं तो प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालयों की स्थिति भयावाह है। लेकिन सूबे के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की स्थिति अन्य के मुकाबले ज्यादा चिंता जनक है। विश्वविद्यालय की व्यवस्थाएं लगातार चरमरा रही है। लेकिन विश्वविद्यालय के आलाधिकारियों का इससे कोई सरोकार नहीं है। हाल में आपके लोकप्रिय समाचार पोर्टल ‘दस्तावेज’ ने विश्वविद्यालय के हालातों पर ‘वाह….! कुलपति लिख रहे ‘डायरी’ और कुलसचिव ताप रहे ‘घाम’’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। खबर के प्रकाशित होेने पर विश्वविद्यालय की व्यवस्था में परिवर्तन तो आये लेकिन ये छात्र हितों के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ जैसा है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव ‘घाम’ तापने की बजाय लंबी छुट्टी पर चले गये हैं तो कुलपति डायरी लेखन से निवृत्त हो गये हैं। इस बीच विश्वविद्यालय ने एसआईटी को रिपोर्ट भी सौंप दी। लेकिन सवाल अब भी बरकरार है कि आखिर अपने नौनिहालों के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन फिक्रमंद क्यों नहीं है? क्यांे सरकार में बैठे कारिंदों को अपने कर्णधारों के हितों का कर्तव्यबोध नहीं है?

जिम्मेदारी से भागते कुलसचिव

किसी भी विश्वविद्यालय में कुलसचिव विवि का दूसरा सबसे बड़ा जिम्मेदार अधिकारी होता है। लेकिन सूबे के सबसे बड़े विश्वविद्यालय का कुलसचिव अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह है। उनकी लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह विश्वविद्यालय के मुख्यालय के दर्शन महीने में एक-आधा बार ही करते हैं, वह भी दो-चार घंटे के लिए। कुलसचिव विश्वविद्यालय के देहरादून स्थित कैंप कार्यालय में आकर ही इतिश्री कर लेते हैं। वह कार्यालय में काफी समय से सिर्फ ‘धूप’ सेकते नजर आ रहे थे। लेकिन जब ‘दस्तावेज’ ने इसका खुलासा किया तो कैंप कार्यालय में उनका धूप सेकना बंद हो गया और वह लंबी छुट्टी पर चले गये। कुलसचिव का लंबी छुट्टी पर जाना समझ से परे हैै वह भी ऐसे समय जब विश्वविद्यालय के कई सारे काम अधूरे पड़े हों।

स्थानांतरण की खिलाफत…!

सूत्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय के कुलसचिव यहां आना ही नहीं चाहते थे। इसके लिए उन्होंने बकायदा शासन को प्रत्यावेदन भी सौंपा। लेकिन शासन ने उनकी एक न मानी। नतीजन कुलसचिव को सूबे के सबसे बड़े विश्वविद्यालय में पदभार संभालना पड़ा। सूत्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय के कुलसचिव की कहीं दाल नहीं गलती। यही वजह है कि अब तक के सेवा काल में उनका 8 बार स्थानांतरण हो चुका है। वह जहां भी रहे हमेशा विवादों में रहे। उनका विवादों में रहने का कारण उनकी कार्यशैली है। वह किसी से भी भिड़ जाते हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि कुलसचिव दून विश्वविद्यालय से यहां आना नहीं चाहते थे। उन्होंने अपने प्रत्यावेदन में उत्तराखंड राज्य कार्मिक स्थानांतरण नियमावली का हवाला देते हुए शासन स्तर पर इसका विरोध भी किया। शासन को भेजे प्रत्यावेदन में उन्होने अपनी सेवानिवृत्ति की जानकारी देते हुए नियमावली के उस अंश का जिक्र भी किया जिसमें अंतिम 5 साल कार्मिक के इच्छित स्थान पर सेवा करने का प्रावधान है। कुलसचिव ने अपने प्रत्यावेदन में यह भी स्पष्ट किया कि वह विश्वविद्यालय के कैंप कार्यालय में ही सेवा दे पायेंगे और आश्यकतानुसार ही विश्वविद्यालय के मुख्यालय जायेंगे। कुलसचिव के इस प्रत्यावेदन से साफ हो जाता है कि वह विश्वविद्यालय के प्रति कितने उदासीन होंगे। यही वजह है कि वह विश्वविद्यालय के प्रति फिक्रमंद नहीं है।

कब तय होंगे पाठ्यक्रम..?

शासन के एक आदेश के बाद अपनी फजीहत करवा चुका प्रदेश का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय कई मोर्चो पर जूझ रहा है। शीतकालीन अवकाश के बाद विश्वविद्यालय के सभी काॅलेज खुलने वाले हैं लेकिन विश्वविद्यालय अभी तक पाठ्यक्रम तैयार नहीं कर पाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन कतई भी चिंतित नहीं है कि वह कब पाठ्यक्रम तैयार करेगा और कब छात्रों की परीक्षा आयोजित करेगा। आपकों बता दें कि हाल में एक शासनादेश के तहत विश्ववविद्यालय ने अपने संबद्ध कालेजों में सेमेस्टर सिस्टम की जगह वार्षिक परीक्षा प्रणाली को लागू करने का फैसला लिया था। लेकिन विश्वविद्यालय ने अभी तक न तो वार्षिक परीक्षा के पाठ्यक्रम तय किये और न सेमेस्टर प्रणाली के पाठ्यक्रम बनाये। विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम कब तय करेगा यह वक्त ही बतायेगा।

कैंपस की कसमकस

यूं तो विश्वविद्यालय अपनेे दो कैंपस घोषित कर चुका हैं। लेकिन ये कैंपस सिर्फ हवाई साबित हो रहे हैं। विश्वविद्यालय ने पहले गोपेश्वर पीजी काॅलेज को अपना कैंपास बनाया था लेकिन आज तक गोपेश्वर कैंपस के पास ठोस सुविधाएं नहीं है। गोपेश्वर कैंपस में ढांचागत सुविधाएं नगण्य है। वहां के अधिकारी-कर्मचारी आज भी उच्च शिक्षा विभाग पर निर्भर है। वहीं हाल अब एक आॅटोनोमस काॅलेज का होने वाला है। कहने को तो ऋषिकेश डिग्री काॅलेज को विश्वविद्यालय का परिसर बना दिया गया है। लेकिन वहां भी सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। जिस तरह से दोनों काॅलेजों को विश्वविद्याय के परिसर के रूप में तैयार किया जाना था। उस हिसाब से वहां काम नहीं हो पा रहे हैं। सिर्फ कागजी खानापूर्ति की जा रही है। जो आने वाले समय में विश्वविद्यालय के लिए परेशानी खड़ी करेगा।

एसआईटी का डंडा

दस्तावेज की खबर प्रकाशित होने के बाद हरकत में आये विश्वविद्यालय ने एसआईटी को कुछ दस्तावेज सौंपे हैं जो कि नाकाफी है। एसआईटी चीफ टी.सी. मंजूनाथ का कहना है कि पहले कुछ चीजांे को लेकर गतिरोध था। जो अब सुलझा लिया गया है। दरअसल एसआईटी जिस प्रारूप में जानकारी मांग रहा था, विश्वविद्यालय उस प्ररूप में जानकारी देने से बच रहा था। लेकिन विश्वविद्यालय ने अब काफी जानकारी एसआईटी से साझा कर दी है। हालांकि विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों ने जानकारी जुटा कर विश्वविद्यालय की फजीहत होने से बचा दी है। लेकिन विश्वविद्यालय के जिम्मेदार अधिकारी अब भी इस बात से बेफिक्र है कि अगर वह एसआईटी को सहयोग नहीं करते तो उनके खिलाफ जांच भी बिठाई जा सकती है।

क्या कहते हैं मंत्री

उच्च शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत का कहना है कि विश्वविद्यालय की पूर्ण जिम्मेदारी कुलपति और कुलसचिव की है। अगर किसी तरह की समस्या छात्रों को झेलनी पड़ रही है तो उसका समाधान विश्वविद्यालय स्तर पर ही होगा। इसके बाद भी अगर स्थिति नहीं सुधरी तो कड़ी कार्यवाही की जायेगी। जिसके लिए संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *