काजल की कोठरी में उम्मीद की किरण है पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र
विकास शिशौदिया
देहरादून। एक कहावत है ‘काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय एक लीक काजल की लागे है तो लागे है। इन दिनों उत्तराखंड की राजनीति में यह कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है। यहां यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले से उठा तूफान अब विधानसभा में हुई नियुक्तियों तक पहुंच चुका है। स्पीकर रहे राजनेताओं पर विधानसभा में नियुक्तियों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। उन पर अपने और अपनों को विधानसभा में नियुक्त किये जाने का आरोप लग रहे हैं। पक्ष और विपक्ष दोनों राजनीति की ‘काजल की कोठरी’ में अपने दामन पर दाग लिए घूम रहे हैं।
ईमानदार माने जाने वाले कांग्रेसी पूर्व विधानसभा अघ्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल पर भी बेटे-बहू को विधानसभा में नौकरी लगाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। कैबिनेट मंत्री और भाजपा नेता प्रेमचंद अग्रवाल भी विधानसभा में भर्तियों को लेकर कठघरे में हैं। खास बात ये है कि पक्ष-विपक्ष के नेता इन भर्तियों पर अपना साफ स्टैण्ड मीडिया और जनता के सामने नहीं रख पा रहे हैं। वजह साफ है कि कहीं ना कही उनके दामन में काजल की कालिख लगी है।
उत्तराखण्ड के बड़े नेता पूर्व सीएम हरीश रावत विधानसभा में हुई नियुक्तियों को लेकर पहले तो चुप्पी साधे रहे। बाद में मीडिया के सामने आए तो अपने बयानों की जलेबी बनाते ही नजर आए। वे बस इतना ही कह सके कि उन्होंने कभी किसी के लिए नौकरी की सिफारिश नहीं की। विधानसभा में हुई इन नियुक्तियों को लेकर इसे अध्यक्ष का ‘विशेषाधिकार’ बता कर जायज ठहराया जा रहा है। कोई नेता कह रहा है कि पहले भी ऐसा होता आया है इसलिए उन्होंने ने भी कर दिया। साफ है कि अब राजनीतिक सुचिता और पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं। कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले लोग जिम्मेदार और संवैधानिक पदों पर विराजमान हो गये हैं।
लेकिन पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत राजनीति की इस काजल की कोठरी के बीच भी एक उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं। उन्होंने राजनीतिक नफा-नुकसान के बगैर इस मामले में अपना बयान जारी किया है। विधानसभा में हुई भर्तियों पर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा है कि राष्ट्रपति भवन हो या राजभवन हो या विधानसभा जिस भी जगह में जनता का पैसा लगता है, वहां जो भी नियुक्ति हो उसमें सभी का अधिकार है और सारी प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत ने साफ कहा है कि सीएम रहते उनके पास जब प्रस्ताव आया था तो उन्होंने सीधे इस पर लिख दिया था कि यह आयोग के जरिए हो, जो नियमावली है उसी के जरिए भर्ती होनी चाहिए।
पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं। खास बात ये है कि जनहित में उन्होंने कभी अपने राजनीतिक नफा-नुकसान की चिंता भी नहीं है। बहुचर्चित देवस्थानम् बोर्ड के गठन की बात करे तो उन्होंने चारधाम यात्रा को व्यवस्थित करने के मकसद से ये फैसला लिया। और वे आज भी अपने इस फैसले को लेकर अडिग हैं। लेकिन वहीं उनके पार्टी के ही लोग राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब आपने बयान बदलते रहे। यही हाल विपक्षी कांग्रेसियों का भी है।
त्रिवेन्द्र सिंह रावत की जब पिछले साल मार्च में सीएम पद से विदाई हुई थी तो उन्होंने कहा था कि ‘राजनीति की काली सुरंग से बिल्कुल पाक साफ बाहर निकल आया हूं। यह मेरे लिए संतोष का विषय है। चार साल के कार्यकाल के दौरान मैंने खुद इससे बचाए रखा।
पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र के इस बयान को विधानसभा अध्यक्ष रहे गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल के बयानों के आइने से भी देखा जाना चाहिए। विधानसभा में भर्ती मामले में पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि‘ मैंने सिफारशों पर विधानसभा नियुक्तियां की है। मेरे ऊपर आरोप लगाये गये है मैने अपने लड़के और बहु को लगाया है। इस प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने भी अपने बहू लड़के को लगाया है। ये प्रारम्भ से परिपाटी चली है। मुख्यमंत्री के सिफारिश में लोग लगे हैं। उनके रिश्तेदार लगे हैं। मैंने 158 लोगों को नियुक्ति किया है। बहुत से नेताओं और अधिकारियों की सिफारिश पर मैंने ये नियुक्तियां की है।
भाजपा नेता और कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा में हुई बैकडोर भर्तिया पर कहा कि विधानसभा में जो भी नियुक्तियां हुई, वह अस्थायी व्यवस्था के अंतर्गत और नियमानुसार हुई हैं। नियमों की परिधि में जो भी आया, उसे नियुक्ति दी गई। यह पहली बार हुआ है, ऐसा नहीं है।
जाहिर सी बात है कि गोविंद सिंह कुंजवाल सरीखे कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले नेता प्रदेश में जिम्मेदार और संवैधानिक पदों में विराजमान हैं। जो अपने पदों पर चिपके रहने के लिए अधिकारियों और अपने नेताओं की सिफारिश मानने को मजबूर हैं। जनहित के मसलों पर ऐसा नेताओं का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।
प्रदेश को त्रिवेन्द्र सिंह रावत जैसे दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले नेताओं की आज जरूरत हैं। नहीं तो मौकापरस्त और अपने आकाओं को खुश करने वाले नेता इस प्रदेश का बंठाधार कर देंगे।
राजनीति को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि राजनीति काजल की कोठरी है. जो इसमें जाता है, काला होकर ही निकलता है. ऐसी राजनीतिक व्यवस्था में ईमानदार होकर भी सक्रिय रहना,बेदाग छवि बनाए रखना, क्या कठिन नहीं हो गया है?
लेकिन इस कठिन दौर में भी काजल की कोठरी में पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह जैसे नेता एक उम्मीद की किरण है। जिन्होंने जनहित के आगे कभी समझौता नहीं किया। देश और प्रदेश को ऐसी मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति वाले जनप्रतिनिधियों की आवश्यकता हैं।