चार दिन, 40 जिंदगियां और 40 एजेंसियां

uttarkashi

– नार्वे और थाइलैंड की सोच आ गयी, रुड़की के वैज्ञानिक भूल गये
– वैज्ञानिक बोले, टनल हादसों पर रोक के लिए बने रेगुलेटरी अथारिटी

गुणानंद जखमोला

उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में 40 जिंदगियां फंसी हुई हैं। पिछले चार दिन से उन्हें बचाने के जो भी प्रयास किये गये, सफल नहीं हो सके। वहां एसडीआरएफ,कंपनी, पेयजल, प्रशासन, एक्सपर्ट आदि लगभग 40 एजेंसियों और विभागों के 160 से भी अधिक लोग राहत और बचाव अभियान चला रहे हैं। फंसे श्रमिकों के साथ ही उनके परिजनों की सांसें भी अटकी हुई हैं। इस सबके बीच जिले के प्रभारी मंत्री प्रेेमचंद अग्रवाल वहां नहीं आए, सीएम भी इस कार्य को नौकरशाहों पर छोड़ चुनाव प्रचार के लिए मध्यप्रदेश चले गये हैं। वोट का सवाल सुरंग में फंसी जिंदगियों से ज्यादा कीमती है। हालांकि लोकल विधायक और छुटभैये नेताओं के लिए यह सुरंग सेल्फी प्वाइंट बन गयी, जिस पर कल से रोक लगा दी गयी है।

रेस्क्यू अभियान में मशीन लगाई, मशीन टूट गयी। वहां पत्थर गिर रहे हैं। मलबा हटाने में दिक्कत आ रही है। राहत और बचाव को कार्डिनेट कौन कर रहा है? जब मैंने इस संबंध में आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा से बात की तो उन्होंने कहा कि डीएम कार्डिनेट कर रहे हैं। देश दुनिया की नजरें यहां लगी हैं और आपदा प्रबंधन सचिव डीएम पर सब छोड़ दिवाली और छठ पूजा मना रहे हैं। सूत्रो के मुताबिक डीएम रोहल्ला ने अपनी समझ से धनबाद के डीएम से फोन कर सीएसआईआर के वैज्ञानिकों से सहायता मांगी, लेकिन उनको समझ नहीं आया कि यह संस्थान की ब्रांच तो रुड़की में है। सीएसआईआर रुड़की ने शासन को तीन वैज्ञानिकों की टीम भेजने का प्रस्ताव भेजा, लेकिन कल रात तक तो प्रशासन का रिस्पांस आया नहीं। सुना है नार्वे और थाइलैंड से मदद की बात की जा रही है। मैं बता दूं सीएसआईआर रुड़की में दो-तीन वैज्ञानिक माइनिंग और टनल विशेषज्ञ हैं। यदि सरकार ठीक समझे ंतो उनकी मदद ले लें। उन्हें घर की मुर्गी दाल बराबर न समझें।

दरअसल, हम आपदा से सबक नहीं लेते। एक आपदा के बाद दूसरे आपदा आने का इंतजार करते हैं। उत्तराखंड में तो पांच मीटर दूरी पर पहाड़ की मिट्टी बदल जाती है। ऐसे में भूसर्वे, स्वायल टेस्टिंग या डीपीआर पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि टनल भूकंप में भी सुरक्षित रहती हैं, लेकिन उनका कंस्ट्रक्शन कैसे हुआ है? सुपरविजन कैसा है, सपोर्ट सिस्टम कैसा है? इस पर टनल की सुरक्षा निर्भर करती है। टनल के लिए वैज्ञानिक प्राइमरी सपोर्ट, फाइनल लाइनिंग, रॉक बोल्ट, वायरमैस, शार्ट किट्स या आरआरआई सपोर्टस को रॉक्स क्लास की तर्ज पर चेंज करते हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक देश भर में टनल बन रही हैं, लेकिन उन पर नियंत्रण के लिए कोई रेगुलेटरी बॉडी नहीं है। माइनिंग में भी ऐसा ही था, लेकिन जब से डीजीएमएस बनी है हादसों में काफी कमी आई है। टनल के लिए भी इसी तर्ज पर टनल रेगुलेटरी अथारिटी बननी चाहिए ताकि उस कार्य में कमी देखते हुए उस काम को रुकवाया जा सके।

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