September 22, 2024

Free Speech Case: मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बोलने की आजादी पर पाबंदी लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी भी मंत्री की ओर से दिए गए बयान के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए बयान देने वाला मंत्री ही जिम्मेदार है। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत निर्धारित प्रतिबंधों के अलावा कोई भी अतिरिक्त प्रतिबंध नागरिक पर नहीं लगाया जा सकता है।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न ने एक अलग फैसले में कहा कि यह संसद के विवेक में है कि वह सार्वजनिक पदाधिकारियों को साथी नागरिकों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने से रोकने के लिए एक कानून बनाए।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा, “यह राजनीतिक दलों के लिए है कि वे अपने मंत्रियों द्वारा दिए गए भाषणों को नियंत्रित करें, जो एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है। कोई भी नागरिक जो इस तरह के भाषणों या सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अभद्र भाषा से हमला महसूस करता है, वह अदालत जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद सदस्य (सांसद) मंत्री और विधानसभा सदस्य (विधायक) संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अन्य नागरिकों की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समान रूप से आनंद लेते हैं। कहा गया कि सार्वजनिक पदाधिकारियों के स्वतंत्र भाषण के मौलिक अधिकार पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।

पांच जजों की पीठ ने सुनाया फैसला

जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, बीआर गवई, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना की संविधान पीठ ने कहा कि सार्वजनिक पदाधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत निर्धारित सीमा से अधिक नहीं हो सकता है और ये सभी नागरिकों पर लागू होता है।

न्यायालय ने कहा कि सरकार या उसके मामलों से संबंधित किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयानों को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। एक अलग फैसले में, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बहुत आवश्यक अधिकार है, ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह से सूचित और शिक्षित किया जा सके।

क्या है पूरा मामला

मामला उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान की ओर से सामूहिक बलात्कार पीड़ितों के बारे में दिए गए एक बयान से शुरू हुआ। अदालत उस व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी पत्नी और बेटी के साथ जुलाई 2016 में बुलंदशहर के पास एक राजमार्ग पर कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया था और इस मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

याचिका में खान के खिलाफ उनके विवादास्पद बयान के संबंध में मामला दर्ज करने की भी मांग की गई है कि सामूहिक बलात्कार का मामला एक राजनीतिक साजिश थी।

सुनवाई के दौरान, संविधान पीठ ने पाया कि एक अलिखित नियम है कि सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों को आत्म-प्रतिबंध लगाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपमानजनक टिप्पणी न करें और इसे राजनीतिक और नागरिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए।


WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com