उत्तराखंड में छोटे-छोटे भूकंप हैं बड़ी तबाही की ओर इशारा
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उत्तराखंड में 1 जनवरी 2015 से अब तक लगभग 51 भूकंप आ चुके हैं। रिक्टर स्केल पर बहुत अधिक तीव्रता न होने और झटकों के हल्का होने के कारण इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ये छोटे-छोटे झटके आने वाली बड़ी आपदा की ओर इशारा करते हैं। उनका मानना है कि इसके लिए अभी से प्रबंध किए जाने चाहिए वरना भयंकर तबाही को टाला नहीं जा सकेगा।
राज्य के डिजास्टर मिटिगेशन ऐंड मैनेजमेंट सेंटर के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला ने बताया है कि लगभग 200 साल पहले एक बेहद तीव्र भूकंप के बाद से हिमालय में रिक्टर स्केल 8 के करीब कोई बड़ी हलचल नहीं हुई है। इस कारण हिमालय में बसे इलाकों में बहुत सी ऊर्जा ऐसी है जो निकलने का रास्ता तलाश कर रही है। छोटे-छोटे झटके उसी का नतीजा हैं।
बिना प्लानिंग शहरीकरण, होगा नुकसान
रौतेला का कहना है, ‘2.5-4.5 तीव्रता के झटके हमें चेतावनी देते हैं कि हम ऐसे इलाके में रहते हैं जहां भूकंप कभी भी आ सकते हैं और हम कभी असावधान नहीं रह सकते।’ उन्होंने बताया कि अगर ऐसा कोई भूकंप आता है तो भीषण तबाही होगी क्योंकि इन इलाकों में आबादी और इन्फ्रास्ट्रक्चर में बिना प्लानिंग के काफी बढ़ोतरी हुई है।
उन्होंने कहा कि प्लानिंग, तैयारी और निपटने से ही भूकंप से होने वाली तबाही को कम किया जा सकेगा क्योंकि पहले से इनका अनुमान लगाना मुश्किल होता है।
इमारत बनाते समय रहे ध्यान
उन्होंने बताया कि नैनीताल में लगभग 14 प्रतिशत और मसूरी में लगभग 18 प्रतिशत इमारतें ऐसी हैं जो कैटिगरी 5 में आती हैं, यानी जिन्हें भूकंप से ज्यादा खतरा है। इनमें से कई 1952 से पहले से बनी हैं।
रौतेला के मुताबिक भूकंप आने की स्थिति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण इमारत अस्पताल, स्कूल और होटेल होते हैं क्योंकि इनमें राहत एवं बचावकार्य किया जाता है। इसलिए इनके निर्माण के समय अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए।
सरकार से अपील
पिछले साल राज्य में वैज्ञानिकों ने दो दिन की वर्कशॉप के बाद सरकार से भूकंप के झटके झेल सकने वाले इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास और चेतावनी के लिए व्यवस्था करने की अपील की। गौरतलब है कि जून 2013 में उत्तराखंड में बादल फटने के बाद मची तबाही के लिए भी बिना प्लानिंग विकास किए जाने के मुद्दे को उठाया गया था।