व्यक्ति विशेष: STD की दुकान से लेकर सीएम आवास तक, कुछ ऐसा रहा तीरथ का सफर
देहरादून: राजनीति के गलियारे में तीरथ सिंह रावत का नाम उतराखंड की राजनीति में मील के पत्थर से कम नही है। राजनीति में उनका नाम जितना बड़ा हो चुका है उतनी ही गहरी से शुरू होती है। तीरथ सिंह रावत के जीवन संघर्ष की कहानी है।
पौड़ी जिले के असवालस्यूं पट्टी के सीरों गांव में जन्मे तीरथ सिंह का बचपन संघर्षों के बीच गुजरा, कम उम्र में ही माता पिता का साया सिर से उठ गया था तो तीन भाईयों में सबसे छोटे तीरथ सिंह को उनके भाईयों व भाभियों का सहारा मिला।
कई किमी पैदल का सफर तय करके उन्होनें गांव से ही 12वीं तक की स्कूली शिक्षा पूरी की। इस दौरान उनमें एनसीसी कैडेटस के रूप में प्रतिनिधत्व की क्षमता बढी। घर की स्थिति खराब होने के बाद भी उच्च शिक्षा की चाह में हेमवती नन्दन बहुगुणा गढवाल विश्वाविद्यालय में उन्होनें दाखिला लिया।
यहां पहले बीए फिर पत्रकारिता की पढाई की लेकिन इसी बीच वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) से जुड़ गये। हेमवती नन्दन गढवाल विश्वाविद्यालय में वे छात्र संघ अध्यक्ष चुने गये। इसके बाद वे एबीवीपी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे। स्टूडेंट पॉलिटिक्स में भी उनमें छात्र नेता के रूप में भावी राजनीतिज्ञ की झलक दिखने लग गई।
घर से उनके सेना में तैनात भाई खर्चा जरूर भेजते थे लेकिन वे खुद बताते हैं कि श्रीनगर में पढते हुए उन्हें गरीबी के बीच संघर्ष भरे दिन गुजारने पड़े। श्रीनगर में ही उन्होनें एसटीडी खोलकर अपना कुछ खर्चा भी जुटाया लेकिन उनकी रूचि समाज सेवक के रूप में बढती चली गई। उनकी राजनीतिक प्रतिभा ही है कि उनसे राजनीति सीखकर आज कई युवा विधायक बन चुके हैं जो उन्हें अपना गुरू मानते हैं।
छात्र राजनीति के बाद वे तत्कालीन उतरप्रदेश राज्य में सक्रिय राजनीतिक विचारधारा के साथ बीजेपी का हिस्सा बने और वे पहली बार 1997 में एमएलसी के रूप में उतरप्रदेश विधान परिषद् में पहुंच गये।
उन्होंने पार्टी को एक राजनीतिज्ञ के रूप में ही नही बल्कि पूर्व की भातिं एक आरएसएस सदस्य के रूप में भी उतराखंड ही नही बल्कि उतरप्रदेश समेत अन्य जिलों मे भी मजबूती देने का काम जारी रखा। ये उनकी ईमानदारी व प्रतिभा ही है कि पृथक उतराखंड की लड़ाई हो या उसके बाद सक्रिय राजनीति में, हर जगह सौम्य, शान्त स्वाभाव वाले नेता के रूप में उनका कद बढता गया। पृथक उतराखंड में उन्हें अंतिरम सरकार में शिक्षा मन्त्री बनाया गया।
दुबारा 2012 में पौड़ी की चैबट्टाखाल विधानसभा सीट से वे विधायक चुने गये। लेकिन राजनीति में इतना लम्बा सफर तय करने के बाद भी जब 2017 में उन्हें टिकट नही दिया गया तो उन्होनें पार्टी के फैसले को सहर्ष स्वीकार किया और अब 2019 में उन्हें लोकसभा टिकट मिला और वे संसद तक पहुंचे।