ग्लोबल वार्मिग से बढ़ा गंगा का प्रवाह और तापमान
तापमान में बढ़ोत्तरी का असर गंगा पर भी होने लगा है। इसके चलते गर्मियों में नदी के प्रवाह में प्रति सेकेंड आधे मीटर तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। यह तुलना सर्दियों के प्रवाह से की गई है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अध्ययन के अनुसार गंगाजल का तापमान बढ़ा है। गर्मियों में जब तापमान ज्यादा रहता है तो प्रवाह तेज देखा गया है और सर्दियों में तापमान घटने के साथ ही प्रवाह भी कम हो जाता है। पानी के तापमान में बढ़ोत्तरी को जल-जीवों एवं नदी की जैविक सेहत के लिए भी खतरा माना गया है।
सीपीबीसी की रिपोर्ट ‘बायोलॉजिकल हेल्थ ऑफ रिवर गंगा’ में कहा गया है कि औसत तापमान में करीब एक डिग्री तक की बढ़ोत्तरी का असर गंगा पर भी दिखने लगा है। ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ी है। चूंकि गंगा ग्लेशियरों से ही निकलती है, इसलिए इस पर भी यह असर स्पष्ट है। वैज्ञानिकों ने रुद्रप्रयाग से लेकर फरक्का तक गंगा के प्रवाह और तापमान के आंकड़े एकत्र किए।
इन आंकड़ों के अनुसार गर्मियों में जब अलकनंदा पर पानी का तापमान 17.2 डिग्री था तब जल का प्रवाह 3 मीटर प्रति सेकेंड था। जबकि सर्दियों में इसी स्थान से प्रवाह के आंकड़े एकत्र किए गए। तब तापमान 12 डिग्री था और गंगाजल का प्रवाह 2.5 मीटर प्रति सेकेंड रह गया था। स्पष्ट है कि गर्मियों में ग्लेशियरों के ज्यादा तेजी से पिघलने के कारण यह आधा मीटर प्रति सेकेंड ज्यादा रहता है।
86 स्थानों पर गंगा के आंकड़े एकत्र किए
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक 86 स्थानों पर गंगा के तापमान और पानी के प्रवाह के आंकड़े एकत्र किए। सर्दियों एवं गर्मियों में तापमान 10.5 डिग्री से लेकर 37.5 डिग्री तक दर्ज किया गया। इस दौरान जल प्रवाह 0.04 मीटर प्रति सेकेंड से लेकर 0.53 मीटर प्रति सेकेंड दर्ज किया गया। एक स्थान फरक्का में यह कहीं और ज्यादा दर्ज किया गया। वहां तापमान 40.5 डिग्री और प्रवाह 0.72 मीटर प्रति सेकेंड रहा।
जलचरों के लिए घातक
रिपोर्ट के अनुसार ये आंकड़े दर्शाते हैं कि ज्यादा तापमान के साथ पानी का प्रवाह तेज रहता है। जबकि तापमान कम होने के साथ यह कम रहता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पानी के तापमान में पहली की तुलना में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। हालांकि बोर्ड के पास इस प्रकार के जलवायु अध्ययन के पुराने आंकड़े मौजूद नहीं है। लेकिन तापमान बढ़ोत्तरी को जलचरों के लिए घातक मान रहे हैं। इसके जलचरों पर असर को लेकर एक अलग से अध्ययन शुरू किया गया है।