September 22, 2024

गज़बः ठेके पर चल रहा है आपदा प्रबंधन विभाग

देहरादूनः उत्तराखंड राष्ट्रीय स्तर पर इस बात का दंभ भरता है कि वो देश का पहला राज्य है जिसने अलग से आपदा प्रबंधन विभाग बनाया, लेकिन बिडंबना देखिए कि आज यह मंत्रालय काॅन्ट्रैक्ट पर रखे गए कर्मचारियों के भरोसे पर चल रहा है। प्रदेश का आपदा विभाग इस समय काॅट्रैक्ट के कर्मचारियों से काम चला रहा है। हालात ऐसे हैं कि जिलों में ज्यादातर जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी संविदा पर काम कर रहे हैं। सरकार ने उन्हें संविदा पर तो रखा है लेकिन वह अधिकार विहीन है।

जिलाधिकारी के रहमोकरम पर चलती है नौकरी

आपदा प्रबंधन एक्ट 2005 में जिला आपदा प्रबंधन कमेटियों का प्रावधान है। इनके सर्वेसर्वा डीएम होते हैं। 2013 में केदारनाथ आपदा में रुद्रप्रयाग जिला जहां सबसे ज्यादा लोग मारे गए थे कई दिन बिना जिलाधिकारी के रहा और वजह थी जिलाधिकारी का बीमार होना। ऐसे में महज जिलाधिकारी को जिम्मेदारी सौंप कर डिजास्टर मैनेजमेंट को चाक चैबंद मान लेना बड़ी गलती होगी। जबकि जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी की नौकरी जिलाधिकारी के रहमोकरम पर चलती है। परमानेंट कर्मचारी ना होने से कैपसिटी बिल्डिंग पर असर पड़ता है।

आपदा सचिव का कहना है, जिले में आपदा के काम को अंजाम देने के लिए जिलाधिकारी ही सक्षम अधिकारी हैं और एक्ट में भी उन्हीं के द्वारा ही सारा काम संचालित किया जाता है।

सर्च और रेसक्यू भी हैं बेहाल

सर्च और रेसक्यू का भी हाल कुछ ऐसा ही है। पूरे प्रदेश में इसका काम संविदा पर रखे गए कर्मचारी ही देख रहे हैं। वही, रेसक्यू का बड़ हिस्सा एसडीआरएफ देख रही है, लेकिन उसकी तीन बटालियन होनी चाहिए। इस वक्त प्रदेश में महज एक बटालियन है। हालांकि एसडीआरएफ के आईजी संजय गुंज्याल का कहना है कि जितनी भी बटालियन है वो आपदा से निपटने के लिए पर्याप्त हैं।

आपदा प्रबंधन सरकार की वरीयता नहीं रहा?
कठिन भौगौलिक परिस्थति वाले प्रदेश में आपदा प्रबंधन कभी भी किसी सरकार की वरियता नहीं रहा। संभवतः यही वजह है कि 18 साल बीत जाने के बाद भी इसके लिए कोई सरकार ठोस सिस्टम नहीं तैयार कर पाई है, जो आपदा से निपटने के लिए प्रदेश की पूंजी साबित हो सके।


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