अलविदा 2020: वाकई में क्या 2020 सबसे बुरा साल था? तो इन्हें आप क्या कहेंगे….
2020 ने इंसान के जीने की राह में भी बेशुमार मुश्किलें खड़ी कीं। अर्थव्यवस्थाएं फेल हो गईं, नौकरी रोजगार छिन गए। साल भर भारत में बाढ़, तूफान, भूकंप के झटके डराते रहे। पड़ोसी मुल्क से सीमा पर खूनी झड़प हुई। इन सभी मुश्किल हालात से गुजरने पर अगर आप सोच रहे हैं कि 2020 दुनिया के इतिहास का सबसे बुरा साल है तो आपको इंसान पर आई पुरानी आफत पर भी गौर करना चाहिए।
साल 536: जब लाखों लोग भूख से परेशान होकर मर गए
आज से करीब 15 सौ साल पहले की बात है। साल 536 में दो विशाल ज्वालामुखी फटने पर धूल का इतना गुबार पैदा हुआ कि आने वाले 18 महीने सूरज की रोशनी धरती की सतह पर भी नहीं पहुंच सकी। इससे उत्तरी ध्रुव के इलाके में तापमान गिर गया गर्मियों में बर्फबारी की नौबत आ गई सूरज की रोशनी ना मिलने से फसलें बर्बाद हो चुकी थीं। यूरोप और आसपास के इलाकों में अकाल पड़ गया था लाखों लोग भूख से मर गए थे।
साल 1347: ब्यूबोनिक प्लेग से करोड़ों लोग मर गए
मंगोलिया में 1345 में बैक्टीरिया का एक घातक रूप प्लेग के रूप में सामने आया। जनवरी 1348 में इस बीमारी का एक और घातक रूप में उभरा जिसने लोगों को तेजी से चपेट में लेना शुरू कर दिया। इसमें संक्रमित इंसान के शरीर में चकत्ते बन जाते थे उल्टी, बुखार और कंपकंपी आती थी इससे बड़ी तादाद में मौतें हुईं। जब तक इस बीमारी का कहर थमा तब तक यूरोप की आधी आबादी (ढाई से 5 करोड़ लोग) इसकी चपेट में आकर खत्म हो चुकी थी इसनेअफ्रीका एशिया और यूरोप में तबाही मचाई इसी बीमारी ने 17 और 19वीं सदी में भी सिर उठाया तो भीषण हालात बने भारत में 1855 से 1900 के बीच प्लेग से 1.2 करोड़ लोग मरे।
साल 1520: स्मॉल पॉक्स से 40 % की आबादी हो गई साफ
साल 1520 में स्पैनिश हमलावर हर्नियन अपने साथ 500 सैनिकों को लेकर सेंट्रल मेक्सिको के एजटेक साम्राज्य पहुंचा जहां की आबादी ही 1.6 करोड़ थी इतनी बड़ी आबादी पर उसने 1521 में हुकूमत भी कायम कर ली। बताया जाता है कि वह अपने साथ स्माल पॉक्स की महामारी लाया और इसने उस देश की 40 फ़ीसदी आबादी का सफाया कर दिया ग्रज डॉट कॉम के मुताबिक इतनी तादाद में मौतें हो रही थीं कि लोगों को उनकी ही घरों के नीचे दफनाकर उनके घरों को कब्र में तब्दील किया जा रहा था।
साल 1770: 1769 से 1773 के बीच अकाल से एक करोड़ मौतें
इस साल बंगाल के इलाके में जिसमें आज का बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल और बिहार व ओडिशा का कुछ हिस्सा शामिल था भारी अकाल पड़ा जिसे 1769 से 1773 के बीच करीब एक करोड़ लोगों की भुखमरी से मौत हो गई। इसमें एक तरह से बंगाल क्षेत्र की एक तिहाई आबादी का सफाया कर दिया था। इस दौर की बुरी यादें दर्द और पीड़ा बंगाल के साहित्य में भी बयां की गई है।
साल 1783: ज्वालामुखी फटने से मचा हाहाकार
जून 1783 में आइसलैंड का लाकी ज्वालामुखी सक्रिय हुआ और यह 8 महीने आग उगलता रहा। इससे दुनिया में बेतहाशा गर्मी और फिर सर्दी पड़ी। ज्वालामुखी के कारण 1783 के उस पूरे साल उत्तरी ध्रुव के देशों के लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हुए। इससे लोगों में सांस से जुड़ी दिक्कतें बढ़ गईं। एसिड की बारिश हुई। 1 साल के भीतर ही आइसलैंड के आधे पशु मर चुके थे और इस देश की 20 फ़ीसदी आबादी का नाश हो गया। बताया जाता है कि इस साल जो सर्दी पड़ी उसे इतनी तबाही और भुखमरी हुई कि उसका अंजाम 1790 की फ्रांसीसी क्रांति के रूप में हुआ।
साल 1918: स्पैनिश फ्लू ने ली थी दुनिया भर में 5 करोड़ लोगों की जान
इस साल एच1 एन1 इन्फ्लुएंजा फ्लू महामारी बन गया और दुनिया में हर तीसरा शख्स इससे बीमार पड़ गया अनुमान के मुताबिक 50 करोड़ लोग इससे संक्रमित हुए और 5 करोड़ लोगों की मौत भी हुई। भारत के उत्तरी भाग में इससे 1.2 से 1.3 करोड़ मौतें हुईं। यह कुल आबादी का 4 से 6 पर्सेंट था।
साल 1943: दूसरा विश्व युद्ध और भारत में भुखमरी
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान साल 1943 सबसे बुरा रहा। कंसन्ट्रेशन कैंप जनसंहार के केंद्र बन गए। बमबारी की दौड़ शुरू हो गई और दुनिया भर में लड़ाई छिड़ गई। ग्रज डॉट कॉम के मुताबिक ब्रिटिश भारत में उस समय बड़ी तादाद में रसद और खाने पीने का सामान युद्ध के मोर्चे पर और ब्रिटेन तक लाया गया जिससे भारत में भुखमरी और अकाल पड़ गया। इससे भारतीय उपमहाद्वीप में 30 लाख मौतें हो गईं।
साल 1947: करोड़ों बेघर, दंगों में लाखों मौतें
भारत-पाक विभाजन के वक्त पंजाब का इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित रहा। यहां करीब 4 से 5 लाख लोगों की मौत होने का अनुमान है। डेढ़ करोड़ लोगों के बेघर होने और दंगों में 10 से 20 लाख लोगों की मौतें होने का अनुमान है।