अलविदा: साहित्यकार श्री योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी

yogamber bartwal ji

शीशपाल सिंह गुसाई

देहरादून के साहित्यकार श्री योगम्बर सिंह बर्त्वाल ने आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। एक साहित्य के माध्यम से जीवन भर उमंग और प्रेरणा का संचार करते रहे हैं। उनका निधन एक शोक की बात है, जिसने पत्रकारों, साहित्यकारों और उनके प्रशंसकों को दुखी किया है। योगम्बर सिंह बर्त्वाल 75 वर्ष की उम्र में देहरादून की सड़कों पर टेम्पों में चलते थे। वह घर से युगवाणी और अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में बिजी रहते थे। वह स्वास्थ्य विभाग में भी 60 साल तक कार्यरत रहे। उनका नौकरी के साथ-साथ साहित्यिक और लेखन कार्य जारी रहा।

उनके न रहने के समाचार को और कन्फर्म करने पर मैंने युगवाणी के संपादक श्री संजय कोठियाल को फोन किया था। उन्होंने बताया कि, बर्त्वाल जी को एक कार्यक्रम 20 अगस्त को हिंदी भवन में करना था, लेकिन जब वह कार्यक्रम नहीं हुआ , तो मैंने उन्हें फोन किया तब उन्होंने बताया कि वह कार्यक्रम 22 तारीख को है 22 तारीख को फोन किया तो उनके परिजनों ने कहा कि उन्हें बुखार आ गया है और वह अरिहंत अस्पताल में भर्ती हुए। अरिहंत अस्पताल से उनके पुत्र ने उन्हें कैलाश अस्पताल में जोगीवाला में एडमिट करवाया। जहां उन्होंने आज सुबह अंतिम सांस ली।

बर्त्वाल जी ने हमें देहरादून में कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल जैसे महान कवि को समय-समय पर याद करते रहना चाहिए, यह सिखाया। उन्होंने मसूरी में चन्द्र कुंवर की याद में मूर्ति लगवाने, याद करने के लिए संघर्ष किया। बारिश या धूप में वह बस में सफर करते थे। और अपने मिशन को वह पूरा करते थे। पिछले तीन दशकों से दो-तीन पीढ़ी को योगंबर सिंह जी ने हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल के बारे में लोगों को अवगत कराया। हालांकि वह बहुत बड़े कवि थे लेकिन बार-बार उनके कार्यक्रमों के द्वारा लोग चंद्र कुंवर से परिचित हुए।

चाहे वह कभी अस्वस्थ हों, वह महसूस नहीं करने देते थे। हमेशा वह अपने आपको फिट बताते थे। देहरादून में 1804 में गोरखाओ के आक्रमण युद्ध में शहीद हुए राजा प्रदुम्न पर पिछले सालों में मैं जब काम कर रहा था, तब बर्त्वाल जी हमारे सच्चे साथी के रूप में सामने आए। उनसे मिलना। होता था, फोन पर बात होती रहती थीं। पिछले माह महान मूर्तिकार अवतार सिंह पंवार के बारे में उन से वार्ता हुई थी। यही आखिरी बात थीं , हमारी। पंवार जी ने वीर भड़ माधो सिंह भंडारी की जो मूर्ति बनाई थीं, वह मैंने एक दिन योगम्बर जी के आंगन में देखी थी। आर्थत उनके पास चार सौ साल पहले का इतिहास का दस्तावेज मिलता है।

फोन पर उन्होंने बताया कि, संविधान सभा के सदस्य ठाकुर किशन सिंह पर उनकी किताब अंतिम चरण में है। पर्वतीय विकास मंत्री श्री नरेंद्र सिंह भंडारी पर उन्होंने किताब लिखी है। उसकी एक प्रति की मांग की थीं मैंने , जिसमें उन्होंने घर से लेने के लिए कहा था। दुर्भाग्य से वह किताब देने से पहले चल दिये। योगम्बर सिंह बर्थवाल। के निधन के बाद, उनके साहित्यकार मित्रों ने उनके काव्य, कविताएं और रचनाओं को याद करते हुए शोक जताया है। उनके स्वभाविक रचनात्मकता का प्रतीक था। वह शोध में भी प्रसिद्ध रहे हैं, जिन्हें वे समाज के विभिन्न मुद्दों को हल करने के लिए अपने साहित्यिक प्रतिपादनों के माध्यम से प्रदर्शित करते थे। योगम्बर सिंह बर्त्वाल का निधन एक दुखद समाचार है, जिसने हमें एक प्रतिभाशाली और समर्पित साहित्यकार की कमी महसूस कराई है। उनकी रचनाएं हमेशा याद रहेंगी, और उनकी विचारधारा और आदर्शों से हमेशा हमें प्रेरित करेंगी। योगम्बर सिंह बर्थवाल को उनके साहित्यकार मित्र , पत्रकार नमन करते हैं, और हमेशा हमारी समस्त यात्रा में उनकी सृजनशीलता की प्रेरणा बनी रहेगी।