विकास दर ने फिर पकड़ी रफ्तार ,दूसरी तिमाही में 6.3 फीसदी रही जीडीपी
आर्थिक वृद्धि दर में पिछली पांच तिमाहियों से जारी नरमी के रुख को पलटते हुए चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। आर्थिक वृद्धि में आई इस तेजी में विनिर्माण क्षेत्र में बढ़ी गतिविधियों और माल एवं सेवाकर (जीएसटी) व्यवस्था के साथ कारोबारियों का तालमेल बैठने को बड़ी वजह माना जा रहा है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 5.7 प्रतिशत रही थी। नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से यह सबसे कम वृद्धि थी। एक साल पहले दूसरी तिमाही में 7.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि हासिल की गई थी। सरकार के केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। इससे पहले 2013-14 में चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि की दर घटकर 4.6 प्रतिशत रह गई थी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़ों में दर्ज की गई वृद्धि टिकाऊ है और इससे अर्थव्यवस्था में पिछली पांच तिमाहियों में जो नरमी का रुख था उसमें बदलाव का संकेत मिलता है। जेटली की उम्मीद का साझा करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि आर्थिक वृद्धि दर में आया उछाल दिखाता है कि अर्थव्यवस्था नरमी के झंझावत से बाहर निकल आई है। इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि पूरे साल की वृद्धि दर 6.5 से सात प्रतिशत के बीच रह सकती है।
आर्थिक मामलों के सचिव एस सी गर्ग ने कहा कि दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत की वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था के उच्च वृद्धि के रास्ते पर चलने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। उन्होंने कहा, ‘जीएसटी व्यवस्था में बदलाव पूरा होने के साथ ही जल्द ही हम सात प्रतिशत से ऊपर और उसके बाद आठ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हासिल करेंगे। अर्थव्यवस्था के बुनियादी कारक काफी मजबूत हैं।’
उद्योग जगत ने भी कहा कि जुलाई-सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत पर पहुंचने से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत वृद्धि के रास्ते पर पहुंच गई है और इससे उम्मीद बंधी है कि 2017-18 की दूसरी तिमाही में यह और बेहतर करेगी। दूसरी तिमाही की यह वृद्धि दर मूडीज द्वारा हाल ही में भारत की साख रेटिंग में सुधार किए जाने के बाद आई है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 14 साल बाद भारत की निवेश रेटिंग में सुधार किया है। मूडीज ने कहा है। कि दुनिया की यह बड़ी अर्थव्यवसथा 2017-18 में 6.7 प्रतिशत और इससे अगले साल में 7.5 प्रतिशत रह सकती है।