गुलदार की दहशत, उत्तराखण्ड में गम, गुस्सा और बेबसी
देहरादून। उत्तराखण्ड में देहरादून से लेकर दूर पहाड़ों तक गुलदार की दहशत कायम है। आये दिन गुलदार के हमले की खबर देखने सुनने के मिल रही हैं। उत्तराखण्ड के लोग गम, गुस्से और बेबस हैं। लेकिन जंगली जानवर के हमले यहां कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया है। सरकार का रोल केवल और केवल मुआवजा की घोषणा तक ही सीमित रह गया है। इसके लिए ना सरकारों के पास कोई नीति है और ना ही इस कोई नीयत नजर आती है।
सरकारी आकंड़ों पर गौर करें तो बीते साल 2023 में जंगली जानवरों के हमले में 66 लोगों मारे गए और 317 घायल हुए। वहीं साल 2022 में वन्यजीव मानव संघर्ष में 82 लोग मारे गए और 325 लोग घायल हुए। मौजूदा साल की शुरूआत में भी कई घटनाएं हुई है।
जंगली जानवरों खासकर गुलदार के हमले सुदूर पहाड़ों से लेकर राजधानी देहरादून तक देखने को मिल रहे हैं। हाल में देहरादून के कैनाल रोड में गुलदार ने एक किशोर पर हमला किया।
बीते दिनों श्रीनगर गढ़वाल क्षेत्र में तो गुलदार ने 24 घंटे के भीतर दो बच्चों को अपना शिकार बनाया। इसमें पहली घटना खि़रसू के ग्वाड़ गांव की है। जहां आंगन में खेल रहे 11 साल का बालक पर हमला किया। इस बच्चे ने बेस अस्पताल श्रीनगर में दम तोड़ दिया। वहीं दूसरी घटना श्रीनगर के ग्लास हाउस क्षेत्र की है। जहां गुलदार के हमले में बच्चे की मौत हो गई। ये घटनाएं एक बानगी भर हैं।
मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं जिस तेज़ी से उत्तराखंड में बढ़ रही हैं, लोगों की जान जा रही हैं, लोग बड़े पैमाने पर खेती-बाड़ी छोड़ रहे हैं, निश्चित तौर पर ये चिंता का विषय है और वन विभाग की नाकामी को दर्शाता है। नीति-नियंताओं के प्रबंधन की कमी को दर्शाता है। काग़ज़ों और बैठकों में तो मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए नेशनल एक्शन प्लान तक बनाए जा रहे हैं लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त बिल्कुल जुदा है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं यूं तो देशभर में सामने आती हैं। लेकिन करीब 70 फीसदी वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड की स्थिति बिल्कुल अलग है। जंगली जानवरों के हमले यहां आपदा सरीखे हो गए हैं। वन कानून ने लोगों को जंगल और जंगली जानवरों का दुश्मन बना दिया है। ये प्रदेश में बहस का मु्द्दा कभी नहीं बन पाया लेकिन हां, प्रदेश में कॉमन सिविल कोड जरूर बहस में है।