यूटीडीबी में विषय विशेषज्ञ (जल क्रीड़ा) नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

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नैनीताल। पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता शक्ति सिंह बर्तवाल की याचिका पर हाईकोर्ट ने सरकार, सचिव पर्यटन, यूजीसी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी यूटीडीबी से मांगा जवाब है।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय में पत्रकार एवं आरटीआई कार्यकर्ता शक्ति सिंह बर्तवाल द्वारा दायर रिट याचिका पर 19 फरवरी 2025 को सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश माननीय जी. नरेंद्र एवं न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद (यूटीडीबी) में विषय विशेषज्ञ (जल क्रीड़ा) पद पर नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है।

मामले का संक्षिप्त विवरणः

याचिकाकर्ता के अनुसार, उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड ने 19 जून 2024 को विषय विशेषज्ञ (जल क्रीड़ा) के पद पर श्री भूपेंद्र सिंह पुण्डीर की नियुक्ति की थी। इस पद के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता स्नातक निर्धारित थी, जबकि चयनित उम्मीदवार ने आवेदन पत्र के साथ डिप्लोमा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था। उनका शैक्षणिक योग्यता प्रमाण पत्र एक ओपन यूनिवर्सिटी से प्राप्त एसोसिएट डिग्री (एडवांस डिप्लोमा) इन आर्ट्स था, जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा स्नातक के समकक्ष मान्यता प्राप्त नहीं है।

याचिकाकर्ता ने आरटीआई के माध्यम से नियुक्ति प्रक्रिया से संबंधित समस्त दस्तावेज प्राप्त किए, जिनसे यह स्पष्ट हुआ कि चयनित अभ्यर्थी ने अपने आवेदन पत्र में स्नातक की अंकों की प्रविष्टि के स्थान पर “लागू नहीं” लिखा था, जिससे यह प्रमाणित होता है कि उनके पास स्नातक डिग्री नहीं है। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने सचिव पर्यटन, मुख्य सचिव, सचिव कार्मिक, माननीय पर्यटन मंत्री एवं मुख्यमंत्री को शिकायती पत्र भेजकर इस नियुक्ति की जांच और इसे निरस्त करने की मांग की थी। हरिद्वार से सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी 1 जनवरी 2025 को सचिव पर्यटन को पत्र लिखकर इस मामले की जांच की मांग की थी।

सरकार के समक्ष उठे महत्वपूर्ण प्रश्नः
1. बिना स्नातक डिग्री के किसी व्यक्ति की नियुक्ति कैसे की गई?
2. क्या ओपन यूनिवर्सिटी से प्राप्त एसोसिएट डिग्री (एडवांस डिप्लोमा) को स्नातक के समकक्ष माना जा सकता है?
3. क्या पर्यटन विकास परिषद, चयन समिति ने नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन किया?
4. क्या अन्य योग्य उम्मीदवारों को इस प्रक्रिया से जानबूझकर बाहर रखा गया?

अदालत की टिप्पणीः

19 फरवरी 2025 को सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने चयनित उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता पर गंभीर सवाल उठाए। माननीय न्यायालय ने कहा कि यह समझ से परे है कि सेना में कार्यरत रहते हुए कोई उम्मीदवार नियमित कक्षाओं में भाग लिए बिना स्नातक डिग्री कैसे प्राप्त कर सकता है।

इसके अलावा, न्यायालय ने ओपन यूनिवर्सिटी द्वारा प्रदान किए गए निम्नलिखित पाठ्यक्रमों की वैधता पर भी प्रश्न उठाएः
1. एसोसिएट डिग्री (एडवांस डिप्लोमा) इन आर्ट्स
2. डिप्लोमा इन बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन
3. सिक्योरिटी ऑफ स्ट्रेटेजिक इंस्टालेशंस (रणनीतिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा)

अदालत ने कहा कि ये पाठ्यक्रम संदेहास्पद हैं क्योंकि इन विश्वविद्यालयों में न तो नियमित कक्षाएं संचालित होती हैं और न ही प्रत्यक्ष शिक्षण प्रदान किया जाता है। न्यायालय ने यह भी प्रश्न उठाया कि बिना कक्षाओं में भाग लिए कोई जूनियर कमीशंड अधिकारी या हवलदार इन पाठ्यक्रमों को सफलतापूर्वक कैसे पूरा कर सकता है।

न्यायालय के निर्देशः
1. चयनित अभ्यर्थी भूपेंद्र सिंह पुण्डीर को निर्देश दिया गया कि वह 5 मार्च 2025 को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होकर संतुष्ट करेंगे कि उनके विरुद्ध अंतरिम आदेश क्यों न जारी किए जाएं।
2. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को निर्देश दिया गया कि वह ओपन यूनिवर्सिटी के इन पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करे एवं इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करे।
3. माननीय न्यायालय ने सरकार को यह जांच करने के लिए कहा कि, “उपरोक्त पाठ्यक्रमों की प्रासंगिकता क्या है और क्या ओपन विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई डिग्रियां मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, यदि उनके लिए किसी प्रकार की कक्षाएं या शिक्षण सत्र नहीं कराए गए हों।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि रणनीतिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय में किसी डिग्री या डिप्लोमा का प्रदान किया जाना विचारणीय विषय है। अगली सुनवाई इस मामले की अगली सुनवाई 5 मार्च 2025 को निर्धारित की गई है।

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