September 22, 2024

उच्च शिक्षाः Assistant प्रोफेसर की भर्ती में एपीआई व्यवस्था लागू किये जाने से उम्मीदवारों में रोष

देहरादून। उच्च शिक्षा में एपीआई व्यवस्था लागू होने के चलते उत्तराखण्ड में प्रोफेसरी का सपना देखने वाला नौजवानों का सपना टूटता नजर आ रहा है। अभी तक जो व्यवस्था थी उसके अनुसार स्नातकोत्तर के बाद नेट या पीएचडी न्यूनतम योग्यता रखी जाती थी और उसके पश्चात प्रवेश परीक्षा एवं इंटरव्यू के आधार पर एक मेरिट बनाकर नियुक्ति की जाती थी। अब 2018 में यूजीसी यानि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जो कि देश में उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में सर्वाेच्च संस्था है के द्वारा यूजीसी रेग्यूलेशन 2018 जारी किया गया। जिसके अनुसार उच्च शिक्षा (डिग्री कॉलेज तथा विश्वविद्यालय) में अब भर्ती हेतु लिखित परीक्षा के बदले एपीआई व्यवस्था को लागू किया गया है।

इस व्यवस्था में अब अभ्यर्थी के स्नातक एवं स्रातकोत्तर में प्राप्त अंक, पीएचडी नेट, पब्लिकेशन तथा अनुभव आधार पर 100 में से एक स्कोर बनाया जाता है तथा इस प्रक्रिया में शॉर्टलिस्ट हुए अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के बुलाया जाता एवं उसके पश्चात अंतिम मेरिट के आधार पर नियुक्ति होती है।

चूँकि ये नियम अचानक आए तो यूजीसी द्वारा इनके लागू करने कि तिथि जुलाई 2021 रखी गयी। ताकि छात्र अपनी पीएचडी पूरी कर पायें क्योंकि एपीआई में पीएचडी के 25 (यूनिवर्सिटी के लिए 30) अंक है।

इसी कड़ी में वर्ष 2021 में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर के 455 पदों हेतु विज्ञापन जारी किया गया। जिसमे आयोन ने पूर्व कि भांति लिखित परीक्षा न करवाकर एपीआई को आधार बनाया है।

इस एपीआई की नई व्यवस्था लागू किये जाने से छात्रों में रोष है। उम्मीदवारों का कहना है कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राजस्थान, पंजाब एवं छत्तीसगढ़ एपीआई व्यवस्था को छोड़कर असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती हेतु पारदर्शी लिखित परीक्षा आयोजित करा रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड एपीआई प्रक्रिया को क्यों अपना रहा है ये समझ से परे हैं। जबकि उत्तराखण्ड में पीएचडी प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या काफी कम है।

1.उत्तराखंड एक पिछड़ा एवं पहाड़ी राज्य है जहां कम ही छात्र पीएचडी किये हुए हैं और आलम ये है कि गढ़वाल क्षेत्र में स्थापित श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ने स्थापना से आजतक कभी पीएचडी नहीं कराया है, केवल कुमाऊं विश्वविद्यालय ही नियमित पीएचडी करा रहा है लेकिन उसमे से भी कितने छात्र उत्तराखंड के हैं ये बड़ा प्रश्न है, इसलिए इस व्यवस्था का फायदा अन्य राज्य के अभ्यर्थियों को ही मिलेगा।

2- इसके अतिरिक्त हम जानते हैं कि वर्ष 2020 तथा 2021 कोरोना वैश्विक महामारी कि चपेट में रहा जिसके कारण हजारों योग्य अभ्यर्थी कहीं पीएचडी में प्रवेश नहीं ले पाए तो कुछ अपनी पीएचडी पूरी ही नहीं कर पाए इसके लिए यूजीसी ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों को यूजीसी रेग्यूलेशन 2018 को लागू करने कि तिथि को बढाकर 2023 कर दिया है तो ऐसे में उत्तराखंड क्यों इस विभेदपूर्ण व्यवस्था को अभी लागू कर रहा है।

केंद्र सरकार ग्रेजुएशन में प्रवेश हेतु मेरिट को छोड़कर लिखित परीक्षा करवा रही है जबकि यहाँ इससे इतर एपीआई या मेरिट को वरीयता दे रही है जो कि समझ से परे है, इसके अतिरिक्त सभी पड़ोसी राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राजस्थान, पंजाब एवं छत्तीसगढ़ एपीआई को छोड़कर असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती हेतु पारदर्शी लिखित परीक्षा आयोजित करा रहे हैं उत्तराखंड जैसा प्रदेश जहाँ इतने कम लोग पीएचडी धारक हैं एपीआई प्रक्रिया को क्यों अपना रहा है?

4 एपीआई व्यवस्था का पूरा फायदा बाहर के राज्यों के अभ्यर्थियों को मिलेगा जो कि न्ज्ञच्ैब् द्वारा हाल में जारी कट-ऑफ से साफ़ दिखाई देता है जिसमे सभी विषयों में मेरिट 90 से अधिक गयी है और हजारों ऐसे छात्र जो कि पीएचडी भी किये हुए हैं वो कट-ऑफ में जगह नहीं बना पाए हैं तो ऐसे में जो केवल नेट जेआरएफ पास अभ्यर्थी हैं वो तो 50 भी बमुश्किल पार कर पाए हैं।

5- उपरोक्त तथ्यों की हकीक़त को आरक्षित अभ्यर्थियों तथा अनारक्षित अभ्यथियों की मेरिट के बीच के अंतर से साफ़ समझा जा सकता है जो कि सभी विषयों में औसत 50 से अधिक है , ये सीधा दर्शाता है कि इसका फायदा केवल बाहर के राज्यों के छात्रों को ही हुआ है ।

6- अपने ही राज्य में ऐसा सौतेला व्यवहार सही नहीं है जबकि अन्य राज्यों में लिखित परीक्षा में भी कुछ न कुछ ऐसे प्रावधान होते ही हैं जिससे वहां के मूल अभ्यर्थी को फायदा मिले, उदाहरण के लिए राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में लिखित परीक्षा में वहां के राज्य विशेष के कुछ अनिवार्य प्रश्न होते हैं तो पंजाब में असिस्टेंट प्रोफेसर में भर्ती हेतु मेट्रिक में पंजाबी भाषा की अनिवार्यता है लेकिन उत्तराखंड जैसे छोटे और कम संसाधनयुक्त राज्य में सभी को खुला अवसर दिया जा रहा है जो कि राज्य के योग्य विद्यार्थियों एवं राज्य आन्दोलनकारियों के स्वप्नों के खिलाफ प्रतीत होता है ।

7- राष्ट्रीय स्तर पर जहाँ न्यूनतम अहर्ता के लिए नेशनल एलीजिबिलटी टेस्ट अर्थात नेट की परीक्षा होती है वहीं राज्य कि भौगोलिक एवं भाषायी असमानताओं के चलते राज्य में स्टेट एलीजिबलिटी टेस्ट का भी प्रावधान है, यह याद दिलाना उचित है कि राज्य में 2017 के बाद स ‘सेट’ की परीक्षा नहीं हुई है तथा कोरोना महामारी के चलते छम्ज् की परीक्षा भी समय पर ( लगभग 18 माह बाद ) नही हो पायी हैं ऐसे में लाखों युवा छात्र जो इस परीक्षा में सम्मिलित होकर न्यूनतम अहर्ता प्राप्त कर सकते थे वो इससे वंचित रह गए हैं।

8- अंततः यही कहना है कि विभेदपूर्ण और अन्यायी API व्यवस्था से हजारों योग्य छात्र बिना अपनी योग्यता दिखाए अपने सपने को पूरा करने से वंचित रह गए हैं , इसलिए हम राज्य के माननीय उच्च शिक्षा मंत्री एवं युवा मुख्यमंत्री जी से हजारों योग्य छात्रों की और से निवेदन करते हैं कि वे हम सबकी पीड़ा समझते हुए इस ।च्प् व्यवस्था के आधार पर हुई नियुक्ति प्रक्रिया को तत्काल रद्द करें एवं लिखित परीक्षा के माध्यम से ही पूर्व कि भांति पारदर्शी तरीके से प्रक्रिया संपन्न कराने की कृपा करें, इसके लिए हम सभी छात्र आपका जीवन भर आभारी रहेंगे ।


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