औसतन 47 हजार का कर्ज है देश के किसानों पर, कमाई चपरासी से भी कम
आजादी के 74 साल बाद भी किसान चार प्रमुख समस्याओं से जूझ रहा है. पहला, फसल का वाजिब दाम न मिलना, दूसरा, फसल लागत में कमी न होना, तीसरा, उनके कर्ज का भारी दबाव और चौथा, उपज भंडारण की सुविधा का अभाव. यही समस्याएं पहले भी थीं और आज भी कायम हैं.
मौसम की मार झेलकर जब अन्नदाता फसल पैदा कर लेता है तो सरकार उसे उचित दाम नहीं दिला पाती.बजट में घोषणाएं हो रही हैं लेकिन किसान को ऐसा बाजार नहीं मिल रहा जिसमें उसकी उपज का केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित मूल्य मिल रहा हो.
जिसके मुताबिक 2000 से 2016-17 के बीच भारत के किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने के कारण करीब 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इसलिए उचित दाम मिले तो उन्हें कर्ज लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.
कितना कमाता है देश का किसान
आजादी के 73 साल बाद भी खेती-किसानी की इतनी ही तरक्की हुई है कि हमारे किसानों की औसत आय चपरासी से कम ही है. पंजाब में किसान की सबसे ज्यादा औसत आय 18,059 रुपये है, जबकि आज भी सरकारी कार्यालयों में चपरासी की सैलरी कम से कम 25-30 हजार रुपये मिलती है. बिहार में किसान सालाना औसतन 45,317 रुपये और यूपी में 78,973 रुपये ही कमा पाता है. केंद्र सरकार ने 2016 में देश के किसानों की औसत आय 8058.58 रुपये बताई है. 2016 के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार देश के 17 राज्यों में किसानों की सालाना आय सिर्फ 20 हजार रुपये है.
सरकार खुद मान रही है कि देश के हर किसान पर औसतन 47 हजार रुपये का कर्ज है. जबकि हर किसान पर औसतन 12,130 रुपये का कर्ज साहूकारों का है. हमने ऐसी व्यवस्था बनाई है जिसमें करीब 58 फीसदी अन्नदाता कर्जदार हैं. एनएसएसओ (NSSO) के मुताबिक साहूकारों से सबसे ज्यादा 61,032 रुपये प्रति किसान औसत कर्ज आंध्र प्रदेश में है.
दूसरे नंबर पर 56,362 रुपये औसत के साथ तेलंगाना है और तीसरे नंबर पर 30,921 रुपये के साथ राजस्थान है. साहूकारों से कर्ज लेकर वे ऐसे दुष्चक्र में फंस जाते हैं कि सबकुछ बिक जाता है और वे पैसा न लौटा पाने की स्थिति में आत्महत्या के लिए मजबूर होते हैं.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों की आय दोगुनी करनी है तो किसानों को सीधे दी जाने वाली आर्थिक मदद की रकम को बढ़ाना होगा. इसके तहत 24 महीने में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रकम किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर की जा चुकी है.
कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अगुवाई वाले स्वामीनाथन फाउंडेशन ने पीएम किसान स्कीम के तहत दी जाने वाली रकम को 6000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये सालाना करने का सुझाव दिया है. जबकि किसान संगठन इसे 24 हजार रुपये करने की मांग कर रहे हैं.
हालांकि, सरकार ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि यदि किसानों की स्थिति को सुधारना है तो उसकी हर उपज का एक एश्योर्ड प्राइस तय करना होगा. साथ ही उससे कम की खरीद पर सजा का प्रावधान करना पड़ेगा. ताकि, अन्नदाता उचित दाम न मिलने वाली समस्या से न जूझे.