मोदी दोबारा PM नहीं बने, तो इंडिया स्टोरी को नुकसान पहुंचेगा: क्रिस वुड
अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता है तो इसका इंडिया स्टोरी पर बुरा असर पड़ेगा। ब्रोकरेज हाउस सीएलएसए के चीफ स्ट्रैटेजिस्ट क्रिस्टोफर वुड ने अपने वीकली न्यूजलेटर ‘ग्रीड एंड फीयर’ में यह बात कही है। वुड का कहना है कि बॉन्ड मार्केट और रुपये में कमजोरी की आशंका के चलते 2018 में अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में निवेश नहीं किया है। उन्होंने अपने न्यूजलेटर में लिखा है कि भारत के करेंट एकाउंट डेफिसिट में बढ़ोतरी हो रही है और कच्चे तेल के दाम में भी तेजी आई है। इससे डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी आने की आशंका बढ़ गई है। इससे विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी भारतीय बाजार में पैसा लगाने में कम हुई है। उन्होंने कहा है कि इंडियन मार्केट आउटपरफॉर्म करता है या नहीं, यह डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल से तय होगा।
वुड का कहना है कि रुपये के लिए शॉर्ट टर्म में स्थिति बिगड़ सकती है क्योंकि कच्चे तेल की कीमत बढ़ रही है। उन्होंने यह भी कहा है कि रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट बेसिस पर रुपया सस्ता भी नहीं दिख रहा है। हालांकि, इसके साथ उन्होंने यह भी कहा है कि वह फिस्कल डेफिसिट टारगेट मिस होने को लेकर बहुत चिंतित नहीं हैं।
वुड ने न्यूजलेटर में लिखा है, ‘केंद्र सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए 3.3 पर्सेंट का फिस्कल डेफिसिट टारगेट तय किया है। इससे पता चलता है कि सरकार इस मामले में चिंतित है। कुछ लोगों का कहना है कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मोदी ‘पॉपुलिस्ट’ लीडर बन सकते हैं, लेकिन यह उनके राजनीतिक आदर्शों के खिलाफ होगा। मोदी ऐसे नेता हैं, जिनकी दिलचस्पी विकास और निवेश को बढ़ावा देने में रही है। वह सब्सिडी पॉलिटिक्स में यकीन नहीं करते।’
वुड ने कहा है कि भारतीय शेयर बाजार अभी भी काफी महंगा बना हुआ है। उन्होंने कहा है कि खासतौर पर मिडकैप स्टॉक्स का वैल्यूएशन काफी ज्यादा है। उन्होंने न्यूजलेटर में लिखा है कि नॉमिनल जीडीपी के मुकाबले कॉरपोरेट प्रॉफिट काफी कम है। इससे पता चलता है कि अभी भी कंपनियां नया निवेश नहीं कर रही हैं। वुड ने बताया, ‘अगर बैंकिंग सिस्टम की बैड लोन की समस्या खत्म हो जाती है तो नया इनवेस्टमेंट साइकिल शुरू होने की संभावना बढ़ जाएगी।’ भारतीय शेयर बाजार को लेकर रिस्क के बारे में वुड ने म्यूचुअल फंड इनफ्लो का जिक्र किया है। उन्होंने कहा है कि अगर म्यूचुअल फंड में निवेश में तेज गिरावट आती है तो उससे मार्केट के लिए जोखिम बढ़ सकता है। वुड ने कहा कि मार्केट में गिरावट आने के साथ यह रिस्क और बढ़ेगा। हालांकि, अभी तक अच्छी बात यह रही है कि इसमें कमी तो आई है, लेकिन तेज गिरावट नहीं।