प्रदेश को खरबों की चपत लगाने की तैयारी में शिक्षा विभाग

education department

पड़ताल 6:
देहरादून। उत्तराखंड शिक्षा विभाग का नया कारनामा उत्तराखंड पर भारी पड़ जाएगा । शिक्षा विभाग शिक्षा में गुणवत्ता को तो पूरे तरीक़े से तो चट कर ही गया और भविष्य को भी चौपट करने के साथ साथ उत्तराखंड की आर्थिकी की कमर भी तोड़ने की तैयारी चल रही है। अकादमिक संस्थान चौपट हो जाएँगे, विद्यालय बंद हो जाएँगे लेकिन अधिकारियों का भविष्य उज्जवल रहेगा।

विभागीय अधिकारी पहले से ही विभाग को एक दुधारू गाय बनाने में सफल रहे जो इस छोटे से प्रदेश में जनपद में पाँच अधिकारी, मंडल में दो अधिकारी और तीन तीन निदेशालय बना कर अपना भविष्य उज्जवल और बच्चों का भविष्य चौपट करने में लगे रहे। सबसे पहले तो चालाकी से प्रदेश में शिक्षा विभाग में अधिकारियों के दो वर्ग का शासनादेश बनवाया जिसे अकादमिक और प्रशासनिक संवर्ग नाम दिया, इससे यह हुआ कि प्रधानाचार्य कभी भी आगे नहीं बढ़ सके और विभागीय अधिकारी आयोग से आने लगे।

कुछ अधिकारियों में उच्च पद पाने की लिप्सा समाप्त नहीं हुई उन्होंने अकादमिक संस्थानों के पदों पर टकटकी लगा कर रखी। उनकी बदक़िस्मती से प्रदेश में अकादमी संस्थानों के लिए 2013 में शिक्षक शिक्षा के अलग संवर्ग का गठन हुआ और उसके तुरंत बाद विभाग द्वारा शिक्षा अधिकारियों हेतु नियमावली जारी की गयी जिसमें उस शिक्षक शिक्षा संवर्ग सम्बन्धी शासनादेश का संज्ञान लेते हुए अकादमिक संस्थानों से अधिकारियों के पदों को समाप्त कर दिया गया ।

इससे इन अधिकारियों में टीस उत्पन्न हुई और इन्होंने पिछले 8 वर्षों से 2013 के शासनादेश को लागू न होने देने में सबसे बड़ी भूमिका निभायी । 2013 के शासनादेश को लागू करने के लिए नियमावली की आवश्यकता थी और विभाग द्वारा शासन को नियमावली कभी दी ही नहीं ।

जब जब शासन नियमावली मँगाता रहा विभाग 2013 के शासनादेश में संशोधन भेजता रहा। आज हालात ये है कि शासन स्तर पर शिक्षक शिक्षा संवर्ग के गठन के लिए फिर से एक प्रस्ताव भेजा गया है जिस पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाना है लेकिन जो प्रस्ताव भेजा गया है वो भारत सरकार के मानकों के अनुरूप नहीं है, जिसका परिणाम यह होगा कि उत्तराखंड को कभी भी केंद्र से शिक्षक शिक्षा संवर्ग के कर्मियों का वेतन नहीं मिल सकेगा।

2013 से शासनादेश लागू ना होने के कारण पहले ही प्रतिवर्ष 8-10 करोड़ की चपत प्रदेश को लग रही है लेकिन मिलने की उम्मीद बाक़ी थी। अब यदि शासन स्तर पर गतिमान संशोधित शिक्षा शिक्षा संवर्ग का प्रस्ताव लागू होता है तो भविष्य में भी इस संवर्ग के कार्मिकों का वेतन केंद्र से नहीं मिल पाएगा।

2013 के शासनादेश का समर्थन शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी कभी भी नहीं करेगा क्योंकि इस शासनादेश ने अकादमिक संस्थानों में प्रशासनिक अधिकारियों के पदों को समाप्त किया जा चुका है । इससे शिक्षा की दिशा अकादमिक अभिरूचि के लोग नहीं बल्कि सदा सदा के अफ़सरशाही के हाथों का खिलौना बन कर रह जाएगी ।