September 22, 2024

विवादित कुलसचिव मुख्यमंत्री की शरण में, क्या अपने चहेते के लिए जीरो टाॅलरेंस का ‘दीपक’ बुझा देंगे सीएम

देहरादूनः प्रदेश के एक विश्वविद्यालय का कुलसचिव इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है। इस बार चर्चा यह है कि कुलसचिव अपनी प्रतिनियुक्ति को लेकर मुख्यमंत्री के इर्दगिर्द मंडरा रहा है। ताकि भाई साहब की कृपा एक बार फिर बनी रहे और दोबारा प्रतिनियुक्ति पर विश्वविद्यालय पहुंचा जा सके। दरअसल विगत वर्ष नियम-कानूनों को ताक पर रख कुलसचिव महोदय को एक वर्ष की प्रतिनियुक्ति पर विश्वविद्यालय भेजा गया। लेकिन अपने अभद्र व्यवहार और नेतागिरी के चलते कुलसचिव पूरे वर्षभर विवादों में घिरे रहे। अब कुलसचिव महोदय की प्रतिनियुक्ति की अवधि पूरी होने वाली है। लिहाजा महाशय मुख्यमंत्री की शरण में पहुंच गये हैं। इतना ही नहीं कुलसचिव सबको चुनौती देकर आये हैं कि वह सीएम के खास आदमी हैं और मुख्यमंत्री उनकी बात कभी काट नहीं सकते और वह दोबारा प्रतिनियुक्ति लेकर ही लौटेंगे।

क्या था प्रकरण

प्रदेश में सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की, दोनों सरकारों में नियमों को ताक पर रख कर आपने चाहतों को हमेशा एडजस्ट किया गया। इस प्रकरण में भी यही कारनामा हुआ। दरअसल विगत वर्ष एक विश्वविद्यालय में रिक्त पड़े कुलसचिव पद के लिए विज्ञापन जारी किया गया। जिसमें कुलसचिव हेतु सभी शर्ते उल्लेखित थी। लेकिन जब अभ्यर्थियों का चयन परिणाम आया तो सब दंग रह गये। जिस अभ्यर्थी का चयन किया गया था वह कुलसचिव के लिए पूरी तरह पात्र नहीं था। कुलसचिव पद पर ऐसे अध्यापक को तैनाती दी गई, जो अशासकीय महाविद्यालय में सहायक प्रवक्ता पद पर कार्यरत था। जबकि विज्ञप्ति में 15 वर्ष का अनुभव व किसी विश्वविद्यालय में परीक्षा करवाने या उससे संबद्ध रहने तथा विश्वविद्यालय से संबंधित कार्य में दक्ष होना जरूरी था। लेकिन डबल इंजन की सरकार में सब जायज था लिहाजा मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री के दबाव में अनुभवहीन अध्यापक को कुलसचिव के पद बैठा दिया गया।

क्या है कुलसचिव के पुनः प्रतिनियुक्ति का नियम
उत्तराखंड शासन के गजट नेटिफिकेशन में स्पष्ट है कि किसी भी विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद हेतु नियुक्ति के लिए कोर्ठ अनुमोदित अभ्यर्थी उपलब्ध न हो तो सरकार या तो राज्य सरकार के अधीन सेवारत किसी अधिकारी को प्रतिनियुक्ति करके अस्थाई नियुक्ति कर सकती है या ऐसे अभ्यर्थी को नियुक्त कर सकती है जो नियमों के अधीन केंद्रीयित सेवा में स्थायी भर्ती के पात्र हो। लेकिन इस प्रकार की कोई भी नियुक्ति आयोग के परामर्श के बिना एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए नहीं की जायेगी। ऐसे में अब यह भी देखना है कि क्या डबल इंजन सरकार नियमों के अनुसार काम करती है या फिर नियमों को ताक पर अपने चहेते कुलसचिव को पद पर बरकरार रखती है।

मुख्यमंत्री शरणम् गच्छामि

विवादित कुलसचिव की प्रतिनियुक्ति अवधि समाप्त होने वाली है। ऐसे में कुलसचिव ने मुख्यमंत्री की परिक्रमा करनी शुरू कर दी है। कुलसचिव जानते हैं कि नियमानुसार उनकी नियुक्ति गलत है और आगे उनका कुलसचिव पद पर बना रहना मुमकिन नहीं है। लिहाजा उन्होंने अब मुख्यमंत्री की शरण में जाना उचित समझा। कुलसचिव स्वयं को किसी संगठन से जुडा हुआ बताते फिर रहे हैं और मुख्यमंत्री से दोबारा कुलसचिव पद पर नियुक्ति दिये जाने की सिफारिश करवा रहे हैं। इसमें उनके साथ संघ कुछ छुटभैये पदाधिकारी और भाजपा के कार्यकर्ता शामिल है।

क्या अपने चहेते के लिए जीरो टाॅलरेस का ‘दीपक’ बुझा देगे सीएम?

मुख्यमंत्री हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ रहे हैं। वह हमेशा कहते आये हैं कि उनकी सरकार जीरो टाॅलरेंस की नीति पर काम कर रही है। लेकिन देखना यह होगा कि क्या मुख्यमंत्री कुलसचिव के प्रकरण में भी जीरो टाॅलरेंस की नीति अपनायेंगे या फिर वह अपनी जीरो टाॅलरेंस का दीपक बुझा देंगे। खैर जो भी हो लेकिन इतना तय है कि अगर मुख्यमंत्री की सरपरस्ती में कुलसचिव को दोबारा पदभार दिया जाता है तो साफ हो जायेगा कि मुख्यमंत्री की जीरो टाॅलरेंस की नीति सिर्फ उनका जुमला मात्र है।


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