दिल्ली की बर्फिली हवा में स्वंयसेवक का कहवा….रास्ते पर चलते चलते साहेब ने खुद को ही रास्ता मान लिया तो भटका कौन ?

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जिस तरह निकले थे उसी तरह से रास्ता बदल लिया गया था ….. अब क्या करेगें? ये सवाल किसी स्वयसेवक के प्रमुख से किसी दूसरे स्वयसेवक को लेकर निकलेगा ये संघ में शायद केवल किसी ने सोचा हो। लेकिन दिल्ली की बर्फिली हवा के बीच गर्म गर्म कहवा की चुस्की के बीच स्वयसेवक की इस सोच ने कई सवालो को भी खडा किया और प्रोफेसर साहेब क साथ साथ मुझे भी हतप्रभ कर दिया। बिना लाग लपेट के मैं भी सवाल दागा..स्वयसेवक से प्रचारक और प्रचारक से राजनीतिक कार्यकत्ता।

 ये तो अटल बिहार वाजपेयी जी को भी नसे नहीं हुआ। लेकिन जब रास्ता बदलने का जिक्र आप कर रहे हैं तो इसका मतलब क्या है। मतलब क्या बिग़डते हालात को समझने कर ही अथक कह रहे हैं। प्रोफेसर की टिप्पणियों को लगभग काटते हुए स्वयसेवक महोदय फरी में बोल पडे। आपको पता है ना कहवा कहां का पेय है। कश्मीर का। जी कश्मीर का और वहाँ के गवर्नर के भरोसेमंद बने रहे। जवानो का जिह्र आना ही पंजाब याद आता है ना वहाँ काग्रेस की सत्ता है। हरियाणा किस दिन फिसलने वाला है, यह कोई नहीं जानता। हिमाचल प्रदेश में सीएम के डाक पन्ना प्रमुख के सम्मेलन के लिए आज भी पूरे प्रदेश में चस्पां है। यानी कद सीएम का कहां पहुंचा दिया गया। यूपी के सीएम की गवर्नेंस पूरी तरह से यूपी में कहीं नजर नहीं आई। अब तो 12 फरवरी से सुप्रीम कोर्ट में यूपी के इनकाउंटर की फाइल भी खुलने वाली है। पर यूपी के सीएम संघ / बीजेपी के नाशक डाक बय है ।यानी राम मंदिर मेयेगें नहीं लेकिन राम नाम का जाप करने वाले योगी को फेस बनायेगें। निहार में नीतिश कुमारके चेहरे के पीछे खडे है। ओडिसा और बंगाल में जीत नहीं सकत 

झारखंड में रधुवर दास के पीछे मोदी-शाह 

झारखंड में रधुवर दास के पीछे मोदी-शाह ना हो तो अगले दिन ही इनकी आशंका हो जाए। अपने बूते अपनी सीट भी अब जीत पाना उनके लिए मुश्किल हो गया है। मूल्यांकन, मद्यप्रदेश, छत्तिसगढ अपनी ही अगुवाई में गंवा भी दिया। और जो पहचान यहा के बीजेपी कद्दावरो की थी उसे मिट्टी में मिलाकर उस संगठन के काम में लगा दिया गया जिस संगठन का स भी शाह है और न भी शाह। यानी राज्यो में भी विपक्ष के नेता के तौर पर शिवराज, वसुंधरा या रमन सिंह को कोई जगब नहीं दिया बल्कि सभी को दिल्ली लाकर अपनी चपेट में ले लिया तो दूसरी कतार के नेता यहा कैसे खडे हत्यें जब चिपक गए तो खुद पर ही सगाथोनिक कार्य हो गया। हो।
यानी आप कह रहे हैं कि अमित शाह ने जान बूझकर तीनो राज्यो के पूर्व सीएम को दिल्ली बुला लिया। अरे छोड प्रोफेसर प्रोफेसर साहेब … तो तो आप भी समझ रहे हैं कि जब कोई कमजोर या फेल होता है तो अपने से ज्यादा कमजोर या फेल लोगो को ही तरजीह देता है। खैर मै तो आपको देश घुमा रहा हूँ। महाराष्ट्र में शिवसेना बगैर सत्ता मिल नहीं सकती। गुजरात में मार्जिन पर सत्ता संभालेey है और कर्नाटक में मार्जिन से सत्ता से बाहर है। TN या केरल में सत्ता में आने की सोच नहीं कर सकते। नार्थ इस्ट में कब्जा जरुर है लेकिन उसका असर ना तो दिल्ली में ना ही उनके अपने प्रदेश में है। तो कौन सी सत्ता की कौन सी लकीर ये खींची जा रही है। क्या आप ही बता सकते हैं। अब सवाल की लकीर स्वयसेवक अधिकारी ने ही खिंची और प्रोफेसर साहेब भी बिना देर किए बोल पडे। …. आपने ठीक कहां …. लेकिन हम तो उस लकीर की बात को समझना चाहते हैं जो दिल्ली में दिल्ली के जरीये ही नजर आने वाली है।
तो आप बात सीबीआई की कर रहे हैं।

हा हा सिर्फ सीबीआई की नहीं। लेकिन प्रचारक से पीएम बने संघ के स्वयसेवक का सच किसी स्वयसेवक से सुनने की बात ही कुछ और है। … और कहवा लिव …. दिल्ली में कश्मीर इंपोरियम से मंगणये है। पी लेगें … पर आप बात टाल दो मत..सही सही बताईये … भीतर जाकर क्या हो रहा है या सोचा क्या जा रहा है …. प्रोफेसर साहेब से इस तरह सटीक सवाल …. वह भी कटघरे में। खडा करते हैं। पर सवाल की बात तो मैं भी नहीं सोची थी..लेकिन ये हो सकता है कि कहवा की गर्माहट माहौल को गर्म किए जा रहे हो …. तो स्वयसेवक अधिकारी भी उसी अंदाज में बोले … क्या सुनना चाहता है प्रोफेसर साहेब। … राजनीति या सरकारें … दोनो तो इससे पहले सरकारन ही सम झू …. राफेल की फाइल पर 2015-16 के बीच कोई नोटिंग आपको नहीं मिलगी। फिर एक दिन दो देसो के प्रमुखो के बीच राफेल प्रदर्शनी। क्या समझे …क्या समझे … यानी प्रोफेसर साहेब … ना तो कही रक्षा मंत्री है ना ही रक्षा मंत्रालय के नौकरशाह …. तो हुआ क्या या आगे क्या होगा … फिर सीबीआई और सीवीसी के खेल ने आपको निर्दिष्ट किया और क्या बीच में सा सुप्रीम कोर्ट ने आपको कौन सा पाठ पढाया। आप ही बताइये … हम तो समझे नहीं … अरे वाजपेयी जी आप सब समझते हैं …. बस आप चाहते हैं कि मै ही सब कह दूं … तो समझने की कोशिश कि रहो नौकरशाही कोई काम नहीं कर रही है। । । जस्टिस सीकरी के हां-ना ने तमाम जजो को भी संदेश दे दिया …. अब कोई बडा फैसला ना लें या कहे कोई समझौता ना करूं …. या फिर सीबीआई की तरह सुप्रीम कोर्ट को भी सिर्फ संस्थान मान कर खत्म ना करें। । । । मतलब ….. अब प्रोफेसर साहेब बोले …मतलब क्या सब सबलियल इविडेन्स समझते हैं प्रोफेसर साहेब … हा की शोक नहीं  

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