खंडित प्रतिभूत नजर आ रहा है भारतीय मीडियाः डा. रत्तू
भारतीय मीडिया पर बरीकी से नजर रखने वाले प्रख्यात साहित्यकार, शिक्षाविद् और मीडिया विशेषज्ञ डा. कृष्ण कुमार रत्तू ने दस्तावेज इंडिया से हुई मुलाकात के दौरान कई बिंदुओं पर अपनी बेबाक राय रखी। इस दौरान उन्होंने भारतीय मीडिया के वर्तमान परिदृश्य पर गहरी नाराजगी जताई तो कुछके मुद्दों पर संतुष्ट भी नजर आये। डा. रत्तू ने राष्ट्रीय मीडिया की नई परिभाषा गढ़ते हुए कहा कि आज का मीडिया ‘खंडित प्रतिभूत’ नजर आता है और यह पेड और फेक न्यूज के रूप में लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ बन गया है। डा. रत्तू ने भारतीय मीडिया पर कई सवाल दागे और कई सुझाव भी दिये। दस्तावेज इंडिया के कार्यकारी संपादक शक्ति सिंह बर्त्वाल से हुई इस खास बातचीत के मुख्य अंश।
सवाल- आपका उत्तराखंड से खासा लगाव है। यहां पर दूरदर्शन के क्षेत्रीय निदेशक के तौर पर अपने अपनी सेवाएं दी, आपका क्या कहना है?
जवाब- सबसे पहले मैं उत्तराखंड की धरती को नमन करता हूं, इस देवभूमि में मैंने अपने जीवन का एक अहम हिस्सा जिया है, यहां का खुशनुमा माहौल यहां के लोग मेरी यादों और रूह में समाये हुये हैं। बदरी-केदार की इस धरती पर मुझे काम करने का सौभाग्य मिला।
सवाल- आप मीडिया विशेषज्ञ के तौर पर एक बड़ी पहचान रखते हैं और भारतीय मीडिया को बरीकी से जानते हैं, वर्तमान परिदृश्य की अगर बात करें तो भारतीय मीडिया पर आपकी क्या राय है?
जवाब- देखिए भारतीय मीडिया में जो चल रहा है उसके लिए मैं एक नई परिभाषा गढ़ रहा हूं शायद ऐसा आपने पहले न सुना हो कि आज मीडिया ‘खंडित प्रतिभूत’ नजर आ रहा है। जिस मीडिया को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ कहा जाता है वह मीडिया आज ‘पेड’ और ‘फेक’ न्यूज का पांचवां स्तम्भ बन गया है।
सवाल- न्यू मीडिया का जो प्रचलन बढ़ रहा है वह समाज के लिए कितना प्रभावी है?
जवाब- यह बहुत बेहत्तरीन मुद्दा है। यह फ्लोटिंग मीडिया है, जिसे आप तत्काल आरक्षण कहते हैं यानी अभी आया अभी गुजरा जबकि छपा हुआ अक्षर जैसे प्रिंट मीडिया में देर तक रहता है और स्मृतियों में ताजा रहता है। बिडंबना देखिए कि दक्षिण एशिया में सोशल मीडिया का खास प्रभाव है और इसमें लगभग 66 फीसदी युवा सुबह-शाम तल्लीन है। सबसे बड़ी बात ये है कि सोशल मीडिया से समाज में सकारात्मक चीजें सामने आनी थी लेकिन हो इसके उल्टा रहा है। सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाह सबसे ज्यादा फैल रही है। स्थिति ऐसी हो गई है कि अफवाहों की पड़ताल के लिए कई चैनल ‘वायरल सच’ जैसे प्रोग्राम चला रहे हैं।
सवाल- वर्तमान मीडिया को अगर देखें तो आज के दौर में विश्लेषणात्मक खबर परिदृश्य से गायब है आप क्या मानते हैं?
जवाब- देखिए आज के समय में आदमी खुद का विश्लेषण करना भूल गया। जिसके मूल में भारतीय भाषा, संस्कृति, रिश्ते, संवेदनाएं और जो एक परस्पर सद्भावना है समाज की वह टूट गई है। देखिए एक दौर होता है आज जिस तेजी से चीजें बदल रही है उसमें मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन इस योगदान के बावजूद हमें यह कहना पड़ रहा है कि मीडिया हाशिये पर चला गया है। ऐसे में वह कैसे विश्लेषणात्मक खबरों को तवज्जो देगा।
सवाल- क्या आप मानते हैं कि न्यू मीडिया के प्रचलन से पत्र-पत्रिकाओं पर संकट मंडरा रहा है?
जवाब- देखिए पिछले एक दशक से जब से सूचना क्रांति आई है उससे ये लगने लगा था कि कहीं न कहीं खतरा है लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि यह एक दूसरे के पूरक हो गये हैं। दूसरा जो अखबार पहले कुछ ही प्रतियों का प्रकाशन करता था आज उसका प्रसार लाखों में है। अगर सोशल मीडिया का प्रभाव इतना अधिक होता तो यह कट जाता। हां आपकी एक बात रही है कि पश्चिमी देशों में अखबारों ने अपने प्रिंट बंद कर ई-एडिशन निकाल दिये हैं। लेकिन हिंदुस्तान में ऐसा महौल नहीं है बल्कि एक सर्वे के मुताबिक रंगीन अखबारों की संख्या बढ़ी है।
सवाल- अगर साहित्य क्षेत्र की बात करंे तो आपको इसमें क्या बदलाव नजर आ रहे हैं, जिस प्रकार युवा पीढ़ी इससे दूर हो रही है?
जवाब- ये सच है कि साहित्य का स्पेस कम हो रहा है। दूसरा जो युवा पीढ़ी है वह सोशल मीडिया तक सीमित है। बाजारवाद के प्रचलन से युवाओं के पास जो कंटेंट परोसा जा रहा है वह समीति है और साहित्य उसमें नहीं है। वह इसलिए नहीं है कि क्योंकि हमने साहित्य को एक काॅर्नर में रख दिया है। साहित्य हमारे देश की संस्कृति है और ये दुख की बात है कि आज यही हमारे युवाओं से दूर है।
सवाल- वर्तमान प्रचलन में अगर देखें तो जनसंपर्क को मार्कटिंग से जोड़ा जा रहा है जबकि इसका मौलिक काॅसेप्ट जनता से जुड़ा हुआ है, आपकी क्या राय है?
जवाब- देखिए इस सब में भारी अंतर है। इसमें क्रांतिकारी परिर्वतन आ गया है और सब डिजीटल हो गया है। ऐसा नहीं है कि इसके मौलिक सिद्धांत को त्यागा जा रहा है बल्कि यह आधुनिक दौर में परस्पर सहयोग रखता है जिससे नई चीज उभर कर आ रही है।
सवाल- आप नई पीढ़ी के लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
जवाब- मैं सभी लोगों को कहना चाहता हूं कि इस देश के नवनिर्माण लिए, आपके कल के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए एक ऐसा मीडिया का निर्माण करना है जिसमें सबको रोजगार हो, जिसमें मन की आवाज हो, जिसमें उनके काम करने की स्वतंत्रता हो। ऐसा हम कर सकते हैं ये मेरा मानना है।