लेजर वेपन कैपेबिलिटी तैयार करने की दिशा में भारत को बड़ी सफलता
नई दिल्ली। लेजर वेपन कैपेबिलिटी तैयार करने की दिशा में भारत ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। डायरेक्टेड एनर्जी वेपंस (डीईडब्ल्यू) डिवेलप करने की देश की कोशिशें रंग लाई हैं। ये हथियार भविष्य के युद्धों को शुरू होने से पहले ही खत्म करने की ताकत रखते हैं। यह ठीक वैसा नहीं है जैसा हम स्टार वॉर फिल्मों या फ्लैश गॉर्डन कॉमिक्स में दशकों पहले देखते आए हैं। लेकिन, डीईडब्ल्यू इतनी ताकतवर लेजर हैं जो कि दुश्मन की मिसाइलों, एयरक्राफ्ट और इलेक्ट्रॉनिक सर्किटरी पर बेस्ड अडवांस्ड हथियारों तक को खत्म कर सकती हैं।
डिफेंस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने हाल में ही ट्रक पर लगाए गए लेजर सिस्टम का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। डीआरडीओ की योजना अब ज्यादा रेंज वाली और ज्यादा पावरफुल लेजर तैयार करने की है। इस डिवेलपमेंट से वाकिफ लोगों ने ईटी को यह जानकारी दी है। कल्याणी ग्रुप और रोल्स-रॉयस जैसी प्राइवेट कंपनियां भी देश में डीईडब्ल्यू बनाने या डिवेलप करने की संभावनाएं तलाश रही हैं।
डीईडब्ल्यू ऐसे हथियार होते हैं जो कॉन्संट्रेटेड इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी की बीम पैदा करते हैं। डीईडब्ल्यू मुख्यतौर पर दो प्रकार के होते हैं: हाई पावर्ड लेजर और माइक्रोवेव्स। डीईडब्ल्यू मनुष्यों को भी नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि ये शरीर के किसी हिस्से में असहनीय गर्मी पैदा कर सकते हैं और इनसे व्यक्ति अंधा भी हो सकता है। ये ऐंटी-मटीरियल होते हैं और इनका इस्तेमाल मिसाइलों, जहाजों, यूएवी और अन्य इक्विपमेंट को नष्ट करने में किया जा सकता है।
हालांकि, इस बात को लेकर जानकारी उपलब्ध नहीं है कि भारत माइक्रोवेव वेपन विकसित कर रहा है या नहीं, लेकिन डीआरडीओ ने ट्रक पर लगाए गए 1 KV लेजर वेपन सिस्टम का अगस्त अंत में कर्नाटक के चित्रदुर्ग में परीक्षण किया था। एक अधिकारी ने कहा, ‘लेजर बीम ने 250 मीटर दूर टारगेट को हिट किया। मेटल शीट में छेद करने में इसे केवल 36 सेकंड का वक्त लगा।’ उन्होंने बताया कि परीक्षण तत्कालीन डिफेंस मिनिस्टर अरुण जेटली की मौजूदगी में किया गया था। अगला कदम ज्यादा पावर वाली लेजर का टेस्ट करना होगा। यह 2 KV की लेजर होगी जिसे ट्रक पर लगाया जाएगा और इससे 1 किलोमीटर दूर मौजूद मेटल शीट पर निशाना लगाया जाएगा।
अधिकारियों ने बताया कि डीआरडीओ की दो लैबरेटरी – सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स ऐंड साइंसेज और लेजर साइंस ऐंड टेक्नॉलजी सेंटर – अभी लेजर जनरेट करने के सोर्स विकसित करने पर काम कर रही हैं। अभी लेजर का सोर्स जर्मनी से आयात किया गया है। अन्य चुनौतियों में सिस्टम के लिए कूलिंग मेकनिजम विकसित करना भी शामिल है। लेजर बीम को फायर करते वक्त सिस्टम गर्म हो जाता है। इसके अलावा दूर रखे टारगेट और ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स की तरफ फोकस्ड बीम सुनिश्चित करने की भी चुनौतियां भी मौजूद हैं। अधिकारी ने कहा, ‘वेपन अभी तैयार नहीं है और इसमें लंबा समय लगेगा।’