व्यक्ति विशेष: इन्द्रमणि बडोनी ने 1988 में रखी उत्तराखंड की नींव, गैरसैंण को किया राजधानी घोषित
देहरादून: अलग उत्तराखण्ड राज्य के आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले इन्द्रमणि बडोनी की आज जयंती है। उत्तराखण्ड के इस गांधी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को टिहरी जिले के ओखड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सुरेशानंद बडोनी था।
इन्द्रमणि बडोनी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव में हुई। उन्होंने माध्यमिक और उच्च शिक्षा नैनीताल और देहरादून में रहकर हासिल की। शिक्षा हासिल करने बाद वे नौकरी के लिए मुम्बई गये। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्हें नौकरी छोड़कर वापस गांव लौटना पड़ा। स्व. इन्द्रमणि बडोनी प्रकृति प्रेमी थे। वे समाजसेवी संस्कृतिकर्मी और एक कुशल राजनेता थे।
स्व. इन्द्रमणि का राजनीतिक सफर 1961 में हुआ। जब वे पहली बार गांव के प्रधान चुने गए। इसके बाद वे जखोली ब्लाक के प्रमुख चुने गये। वे अविभाजित उत्तर प्रदेश में देवप्रयाग विधान सभा से तीन बार विधायक चुने गये। 1977 का विधान सभा चुनाव उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ा तथा रिकार्ड तोड़ वोटों से उत्तर प्रदेश विधान सभा पहुंचे।
1980 में उत्तराखण्ड क्रांति दल में शामिल हो गये। वे उत्तराखण्ड क्रांति दल के संस्थापक सदस्य रहे। वे उत्तर प्रदेश में बनारसी दास गुप्त के मुख्यमंत्रित्व काल में पर्वतीय विकास परिषद् के उपाघ्यक्ष रहे। इन्द्रमणि बडोनी ने 1989 में लोक सभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन वे अपने प्रतिद्वंदी ब्रहमदत्त से चुनाव हार गये।
उत्तराखण्ड आंदोलन के प्रणेता
स्व. इन्द्रमणि जीवन भर अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग के लिए लड़ते रहे। 1988 में उन्होंने उत्तराखण्ड की मांग को लेकर 105 दिनों की पदयात्रा की। उन्होंने उत्तराखण्ड के गांव-गांव जाकर लोगों को अलग पहाड़ी राज्य के फायदे बताये। उनकी ये पद यात्रा पिथौरागढ़ जिले के तवा घाट से होकर देहरादून तक चली। 1992 में उन्होंने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन गैरसैंण को उत्तराखण्ड की राजधानी घोषित किया।
उन्होंने 2 अगस्त 1994 में अलग राज्य की मांग को लेकर पौड़ी प्रेक्षागृह के सामने आमरण अनशन किया। 7 अगस्त 1994 को पुलिस ने उन्हें जबरस्ती उठाकर मेरठ के अस्पताल में भर्ती करा दिया। उनकी गिरती हालत को देखते हुए बाद में एम्स में भर्ती कराया गया। लेकिन वे उत्तराखण्ड के मांग को लेकर अड़े रहे। भारी जन दबाव के चलते उन्हें तीसवें दिन अपना आमरण अनशन तोड़ना पड़ा। इस घटना के बाद अलग राज्य की मांग ने जोर पकड़ लिया।
मीराबेन की प्रेरणा से जुड़े सामाजिक कार्यों से
इन्द्रमणि बडोनी महात्मा गांधी की शिष्या मीराबेन की प्रेरणा से सामाजिक कार्यों से जुड़े। आजादी के बाद 1953 में मीराबेन टिहरी यात्रा पर गई। मीराबेन गांव के विकास के लिए गांव के किसी शिक्षित व्यक्ति से बात करना चाहती थी। कहा जाता है कि उस दौरान अखोड़ी गांव में इन्द्रमणि बडोनी ही एक मात्र शिक्षित व्यक्ति थे। इन्द्रमणि बडोनी मीरा बेन के सामाजिक कार्यों से काफी प्रभावित हुए और उनसे प्रेरित होकर समाज सेवा में जुट गये। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किये। उन्होंने कई स्कूल खोले जिनमें इण्टरमीडियट कालेज कठूड़, मैंगाधार, घूत्तू और माध्यमिक विद्यालय बुगालीधार प्रमुख हैं।
पर्वतारोहण एवं संस्कृति से था बेहद लगाव
स्व. इन्द्रमणि बडोनी को कला एवं संस्कृति से बेहद लगाव था। वे एक कुशल राजनेता के साथ-साथ संस्कृतिकर्मी भी थे। उन्होंने पहली बार माधो सिंह भण्डारी नाटक का मंचन किया। इस नाटक का दिल्ली और मुम्बई जैसे शहरों में भी मंचन कराया। 1956 की गणतंत्र परेड में केदार नृत्य उनकी यादगार प्रस्तुति रही। राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर इन्द्रमणि बडोनी ने हिंदाव के लोक कलाकार शिवजनी और गिराज ढुंग की अगुवाई में केदार नृत्य का समां बांधा। कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवारलाल नेहरू उनकी इस प्रस्तुति से इतने प्रभावित हुये की वे भी साथ में थिरकने लगे।
इन्द्रमणि बडोनी कुशल पर्वतारोही भी थे। उन्होंने सहस्त्रताल, खतलिंग ग्लेशियर और पंचालीकांठा ट्रैक की यात्रा की। माना जाता है कि इन ट्रैक पर यात्रा करने वाले इन्द्रमणि बडोनी पहले व्यक्ति थे।
दृढ़ सिद्धांतों ने बनाया ‘उत्तराखण्ड का गांधी’
अपने सिद्धांतों पर दृढ रहने वाले इन्द्रमणि बडोनी का जल्दी ही राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने वाले दलों से मोहभंग हो गया। उनकी मुख्य चिंता इसी बात पर रहती थी कि पहाडों का विकास कैसे हो? उनका सपना पहाड को आत्मनिर्भर राज्य बनाने का था और उन्ही के प्रयासों से गंगी में दुर्लभ औषधियुक्त जडी बूटियों की बागवानी प्रारम्भ हुई।
उनका सादा जीवन देवभूमि के संस्कारों का ही जीता-जागता नमूना था। वे चाहते थे कि पहाडों को यहां की भौगोलिक परिस्थिति व विशिष्ट सांस्कृतिक जीवन शैली के अनुरुप विकसित किया जाए। अपनी संस्कृति के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था।
अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने स्व. इन्द्रमणि बडोनी को पहाड़ के गांधी की उपाधि दी। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि उत्तराखण्ड आंदोलन के सूत्रधार इन्द्रमणि बडोनी की आंदोलन में उनकी भूमिका वैसी ही थी जैसी आजादी के संघर्ष के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गॉधी ने निभायी थी। राज्य आंदोलन में लगातार सक्रिय रहने से उनका स्वास्थ्य गिरता गया। 18 अगस्त 1999 को उत्तराखण्ड के सपूत इन्द्रमणि बडोनी का निधन हो गया।