क्या राहुल गांधी हैं विपक्षी एकता में सबसे बड़ा रोड़ा ?
भाजपा और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध करने वाली 15 पार्टियों को पटना में इकट्ठा हुए मुश्किल से एक सप्ताह ही हुआ था कि इनमें से शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) दो जुलाई को टूट गयी. शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने संकटमोचक माने जाने वाले प्रफुल्ल पटेल और पूर्व मंत्री छगन भुजबल जैसे दिग्गजों के साथ मिलकर बीजेपी से हाथ मिला लिया.
अजित, भुजबल और एनसीपी के सात अन्य नेता महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बने. अजित के समर्थक इस बात से नाराज थे कि शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले 23 जून को विपक्षी नेताओं की बैठक में भाग लेने के लिए पटना गए थे. यहां पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी मौजूद थे. अजित और अजित समर्थक राहुल को विपक्ष का चेहरा और 2024 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का संभावित उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में नहीं थे.
सिर्फ अजित पवार ही नहीं, कम से कम चार दलों के शीर्ष नेताओं ने राहुल को विपक्ष के चेहरे के रूप में पेश करने को लेकर आपत्ति जताई है. इनमें शरद पवार भी शामिल रहे हैं. इसके अलावा ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे नेता राहुल के नेतृत्व कौशल को लेकर उन पर निशाना साध चुके हैं. 2020 में शरद पवार ने एक साक्षात्कार में कहा था कि राहुल के नेतृत्व में ‘कुछ समस्याएं थीं और उनमें निरंतरता की कमी है.
हाल ही में जब राहुल और कांग्रेस ने अडानी समूह पर लगे आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग थी, तो शरद पवार ने कहा कि उनकी मांग गलत है, उन्होंने ये भी कहा था कि अडानी समूह के खिलाफ जानबूझकर बदनाम करने का अभियान चलाया जा रहा है.
दिसंबर 2021 में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुंबई में राहुल की कार्यशैली का मजाक उड़ाया था. उन्होंने उनका नाम लिए बिना कहा, ‘अगर कोई कुछ नहीं करता और आधे समय विदेश में रहता है तो कोई राजनीति कैसे करेगा? राजनीति के लिए निरंतर प्रयास होना चाहिए’.
हाल ही में जब समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया, तो उन्होंने राहुल को अपनी शुभकामनाएं भेजीं, लेकिन पैदल यात्रा का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
पीएम मोदी से मुकाबला नहीं कर पाएंगे राहुल गांधी
23 जून को पटना सम्मेलन के दौरान सभी ने पिछले मतभेदों को भुलाने की बात की. लेकिन निजी तौर पर कई विपक्षी नेता राहुल को एकजुट विपक्ष के चेहरे के रूप में पेश करने से सावधानी बरतते दिखे. उन्हें डर है कि प्रधानमंत्री मोदी और राहुल के बीच मुकाबले में दूसरे नंबर पर रहेंगे.
हालांकि, कांग्रेस का मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल की छवि में काफी सुधार हुआ है. सोशल मीडिया पर उन्हें मिल रहा रिस्पॉन्स उनकी उभरती लोकप्रियता का एक संदेश माना जा रहा है. कांग्रेस नेताओं का दावा है कि पिछले कुछ महीनों में राहुल की पोस्ट पर प्रतिक्रियाएं पीएम मोदी के मुकाबले ज्यादा रही हैं.
बता दें कि राहुल गांधी पर मानहानि के मुकदमे के बाद राहुल को संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया. लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें कोई राहत मिलने की संभावना नहीं है. लोकसभा चुनावों से पहले कोई राहत न मिलना उन्हें पीएम बनने की दौड़ से बाहर कर देगा.
राहुल के बयानों से विपक्ष को रहा है ऐतराज
राहुल के सार्वजनिक बयानों से भी विपक्ष सहमत नहीं रहा है. शरद पवार अडानी पर बयानों से लेकर विनायक दामोदर सावरकर पर दिए गए राहुल के बयानों से सहमत नहीं थे.
राहुल गांधी ने दिल्ली के अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था, “मेरा नाम सावरकर नहीं है. मेरा नाम राहुल गांधी है और गांधी किसी से माफ़ी नहीं मांगता.”
उद्धव ठाकरे ने भी विनायक दामोदर सावरकर को लेकर राहुल के बयान से नाराजगी जताई थी. उद्धव ठाकरे ने राहुल को चेतावनी दी थी कि वह विनायक दामोदर सावरकर के बारे में अभद्र टिप्पणी न करें. बता दें कि इस बयान के बाद उद्धव ठाकरे विपक्षी दलों की मीटिंग में भी नहीं गए थे. इस मीटिंग में विपक्ष के कुल 18 दलों के प्रतिनिधि मौजूद थे.
शिवसेना ने दी थी राहुल को चेतावनी
उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “सावरकर अंडमान के काला पानी की जेल में 14 वर्षों तक अकल्पनीय तकलीफे झेलते रहे थे. सावरकर हमारे लिए भगवान तुल्य हैं और उनका अपमान हम सहन नहीं करेंगे.”
उद्धव ठाकरे ने ये भी संकेत साफ शब्दों में दे दिए कि अगर राहुल गांधी सावरकर का अपमान करते रहे तो विपक्ष की एकता में दरार’ पड़ जाएगी.
दूसरी तरफ कम से कम तीन विपक्षी नेताओं ने राहुल की हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान उनकी टिप्पणियों पर असंतोष व्यक्त किया था. तीन विपक्षी नेताओं ने पूछा था कि मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार देश में लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थानों को कैसे नष्ट कर रही है. वहीं राहुल गांधी के बयान को बीजेपी ने इसे विदेशी धरती पर भारत की आलोचना करार दिया था.
राहुल के बयान से शिवसेना में हो चुकी है घमासान
हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आरोप लगाया था कि संसद के बजट सत्र के दौरान ‘राहुल गांधी सावरकर का अपमान करते रहे और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सांसद राहुल गांधी की सदस्यता के निरस्त होने के विरोध में काली पट्टी लगाकर बैठे हुए थे. जब सावरकर का अपमान हो रहा था तो उद्धव ठाकरे के सांसद चुप बैठे थे.
जानकारों का मानना है कि विपक्ष का ये रुख चुनावों पर भी असर डाल सकता है. राहुल को विपक्षी दलों के बीच कांग्रेस को नेतृत्व तय करने के लिए सभी सहयोगियों का विश्वास जीतना होगा. खासतौर से राहुल को इस तरह की बयानबाजी से बचना होगा. क्योंकि बीजेपी को खुद राहुल ऐसा करके उनपर निशाना साधने के लिए मसाला दे देते हैं.
राहुल गांधी की भाषा पर भी सवाल
बीबीसी में छपी एक खबर के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने बताया कि राहुल गांधी पीएम मोदी पर निशाना साधने के लिए जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हैं वो सही नहीं है. इससे उनकी पार्टी और विपक्षी एकता पर सवाल खड़ा होगा.
प्रदीप सिंह के मुताबिक ”नरेंद्र मोदी देश के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं एक संवैधानिक पद पर हैं. वो राहुल गांधी से उम्र भी बड़े हैं और तजुर्बे में भी बड़े हैं. इसलिए उनके बारे में इस तरह बोलना, यह भाषा हमारे समाज में लोग पसंद नहीं करते. चाहे अमीर हो या गरीब हो, अगर उम्र में या ओहदे में बड़ा है तो उससे इसके लिए ऐसी भाषा लोग पसंद नहीं करते.
ऐसे समय में जब चुनाव नजदीक है और विपक्ष एक होने की बात कर रहा है. कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम मोदी से मुकाबला करना चाह रही है, ऐसे में विपक्ष जरूर सोचेगा, और राहुल के पक्ष में चीजें नहीं जाएगी. राहुल विपक्षी एकता में रोड़ा पैदा कर सकते हैं.