September 22, 2024

46 घंटे में 9 बार हिली जम्मू कश्मीर की धरती, किसी बड़े खतरे ही आहट!

जम्मू कश्मीर में बुधवार देर रात एक घंटे के भीतर दो बार भूकंप के झटके महसूस किए गए। इनकी तीव्रता क्रमश 4.1 और 3.2 मापी गई है। भूकंप से किसी के हताहत होने या संपत्ति के नुकसान की कोई खबर नहीं है। भूकंप का केंद्र जम्मू के कटरा इलाके से 62 किलोमीटर उत्तर पूर्व में पांच किलोमीटर की गहराई में था। इससे पहले यहां मंगलवार को छह बार भूकंप आया था। भूकंप के झटके कटरा, डोडा, उधमपुर और किश्तवाड़ जिलों में महसूस किए गए। मंगलार को पहला भूकंप देर रात दो बजकर 20 मिनट पर आया था, जिसका केंद्र कटरा इलाके से 61 किलोमीटर पूर्व में 10 किलोमीटर की गहराई पर था।

दूसरा भूकंप तड़के तीन बजकर 21 मिनट पर आया और उसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 2.6 मापी गयी। भूकंप का केंद्र जम्मू क्षेत्र में डोडा से 9.5 किलोमीटर पूर्व में जमीन से पांच किलोमीटर की गहराई में था। उन्होंने बताया कि तीसरी बार 2.8 तीव्रता के भूकंप के झटके तड़के तीन बजकर 44 मिनट पर महसूस किए गए और भूकंप का केंद्र उधमपुर से 29 किमी. पूर्व में, 10 किलोमीटर की गहराई में था। अधिकारियों ने बताया कि चौथी बार भूकंप मंगलवार को सुबह आठ बजकर तीन मिनट पर आया और इसकी तीव्रता 2.9 थी। भूकंप का केंद्र उधमपुर से 26 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में जमीन से पांच किमी. की गहराई में था। पांचवां भूकंप जम्मू क्षेत्र के किश्तवाड़ जिले में दोपहर दो बजकर 17 मिनट पर आया, जिसकी तीव्रता 3.1 मापी गई।

दो दिनों में 9 बार हिली जम्मू कश्मीर की धरती

कुल मिलाकर बीते दो दिनों के भीतर यहां 9 बार धरती हिली है। हालांकि इनकी तीव्रता कम थी, जिसकी वजह से कोई नुकसान नहीं हुआ है। इसके बाद से ऐसी आशंका जताई जा रही है कि कहीं ये छोटे भूकंप किसी बड़े खतरे के संकेत तो नहीं हैं? ऐसे में इन्हें हल्के में लिया जाना एक बड़ी गलती साबित हो सकती है। जानकारों का ऐसा मानना है कि इन हल्के भूकंपों को बड़ी चेतावनी के तौर पर देखा जाना चाहिए और बड़ा भूकंप आने पर नुकसान से बचने के लिए पहले से ही उसकी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

बड़ी तबाही की तरफ इशारा होते हैं छोटे भूकंप

ऐसा कहा जाता है कि भूकंप के छोटे झटके किसी बड़े भूकंप के आने से पहले चेतावनी देते हैं। ऐसे में जानमाल के कम से कम नुकसान के लिए पहले से तैयारी शुरू कर देना ही समझदारी है। एक मीडिया रिपोर्ट में नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी (एनसीएस) के पूर्व प्रमुख एके शुक्ला के हवाले से लिखा गया है कि ऐसी कोई मशीन नहीं बनी है, जिससे भूकंप की भविष्यवाणी हो सके। लेकिन जो छोटे भूकंप होते हैं, वह बड़े भूकंप की चेतावनी के तौर पर देखे जाने चाहिए।

जम्मू कश्मीर में 2005 में क्या हुआ था?

जम्मू कश्मीर बेहद संवेदनशील क्षेत्रों में आता है। यहां 8 अक्टूबर, 2005 में बेहद भीषण भूकंप आया था। जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.6 मापी गई थी। इस भूकंप के कारण एलओसी यानी नियंत्रण रेखा से सटे पाकिस्तान और भारत दोनों के ही इलाकों में 80 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी। वहीं अगर जम्मू कश्मीर की बात करें, तो यह भूकंप के खतरनाक जोन में पड़ता है। भारतीय मानक ब्यूरो ने विभिन्न एजेंसियों से मिली वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर देश को भूकंपीय जोन में बांटा हुआ है।

इनमें सबसे अधिक खतरानक जोन 5 है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, ये वो क्षेत्र हैं, जिसमें रिक्टर स्केल पर 9 की तीव्रता का भूकंप आ सकता है। इस जोन 5 में पूरा का पूरा पूर्वोत्तर भारत, जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात के कच्च का रन, उत्तरी बिहार का कुछ हिस्सा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। इन क्षेत्रों में अकसर भूकंप आते हैं।

भूकंप आखिर क्या होता है?

हमारी धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है, जिन्‍हें इनर कोर, आउटर कोर, मैन्‍टल और क्रस्ट कहा जाता है। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल को लिथोस्फेयर कहा जता है। ये 50 किलोमीटर की मोटी परतें होती हैं, जिन्हें टैक्‍टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये टैक्‍टोनिक प्लेट्स अपनी जगह से हिलती रहती हैं, घूमती रहती हैं, खिसकती रहती हैं। ये प्‍लेट्स अमूमन हर साल करीब 4-5 मिमी तक अपने स्थान से खिसक जाती हैं। ये क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर, दोनों ही तरह से अपनी जगह से हिल सकती हैं। इस क्रम में कभी कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। इस दौरान कभी-कभी ये प्लेट्स एक-दूसरे से टकरा जाती हैं। ऐसे में ही भूकंप आता है और धरती हिल जाती है। ये प्लेटें सतह से करीब 30-50 किलोमीटर तक नीचे हैं।

भूंकप के केंद्र और तीव्रता क्या हैं?

भूकंप का केंद्र वह जगह होता है, जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा महसूस होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती है, इसका प्रभाव कम होता जाता है। इसकी तीव्रता का मापक रिक्टर स्केल होता है। रिक्‍टर स्‍केल पर अगर 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकंप आता है तो आसपास के 40 किलोमीटर के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। अगर कंपन की आवृत्ति ऊपर की तरफ होती है तो प्रभाव क्षेत्र कम होता है। भूकंप जितनी गहराई में आता है, सतह पर उसकी तीव्रता भी उतनी ही कम महसूस की जाती है।

क्‍या है रिक्टर स्केल?

भूकंप की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर स्केल का इस्तेमाल किया जाता है। इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल भी कहा जाता है। भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है। रिक्टर स्केल पैमाने को सन 1935 में कैलिफॉर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी में कार्यरत वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर ने बेनो गुटेनबर्ग के सहयोग से खोजा था। रिक्टर स्केल पर भूकंप की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 8 रिक्टर पैमाने पर आया भूकंप 60 लाख टन विस्फोटक से निकलने वाली ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।

कितनी तीव्रता का क्‍या होता है असर?

रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकंपों को हल्का माना जाता है। साल में करीब 6000 ऐसे भूकंप आते हैं। हालांकि ये खतरनाक नहीं होते, पर यह काफी हद तक क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। अगर इसका केंद्र नदी के तट पर हो और वहां भूकंपरोधी तकनीक के बगैर ऊंची इमारतें बनी हों तो 5 तीव्रता का भूकंप भी खतरनाक हो सकता है। वहीं रिक्‍टर पैमाने पर 2 या इससे कम तीव्रता वाले भूकंपों को रिकॉर्ड करना भी मुश्किल होता है और उनके झटके महसूस भी नहीं किए जाते। ऐसे भूकंप साल में 8000 से भी ज्यादा आते हैं। रिक्टर पैमाने पर 5 से लेकर 5.9 तीव्रता तक के भूकंप मध्यम दर्जे के होते हैं और हर साल ऐसे करीब 800 झटके लगते हैं।


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