September 22, 2024

चुनाव आचार संहिता से ऐन पहले, तबादला कानून हुआ तार-तार

देहरादून। तबादला सत्र शून्य होने के बावजूद धामी सरकार द्वारा मनमाने तबादलों से आम शिक्षक हैरान और नाराज है। शिक्षकों का कहना है कि जब सरकार को तबादले करने ही थे तो फिर तबादला सत्र शून्य करने की क्या जरूरत थी। शिक्षा सचिव आर० मीनाक्षी संुदरम् ने सात जनवरी की तारीख में तबादलों की तीन अलग-अलग लिस्ट जारी की है। धारा-27 की आड़ में सरकार ने आचार संहिता लगने से ऐन पहले अपने चहेतों के तबादले कर दिये। चुनाव आते आते तबादला अधिनियम भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।

ठीक आचार संहिता के पहले जो थोक भाव में स्थानांतरण हुए हैं, उन्होंने सूबे के शासन और प्रशासन को उघाड़ के रख दिया है। चहेतों और राजनैतिक रसूख वालों का प्रभाव देखिए, कि रातों रात स्थानांतरण का शतरंज खेल दिया गया। न अधिकारियों ने सोचा, न अधिनियम आड़े आया, और मनचाहे परिवर्तन कर दिए गए।

शासन द्वारा जारी तबादला सूची को देखें तो लगता है कि वाकई 70 सालों में कभी ऐसा नहीं हुआ। ट्रांसफर की लिस्ट में नई तैनाती विद्यालय की जगह लिखा है-‘देहरादून’ या हरिद्वार का कोई विद्यालय’। डबल इंजन की सरकार जल्दबाजी में यह फैसला नहीं कर सका कि शहर में किस स्कुूल में अपने चहेतों और रसूखदारों को तैनाती दी जाए।

सालों से तबादले की बाट जोह रहे शिक्षकों धामी सरकार के इस फैसले से खासे नाराज हैं। नाराज शिक्षकों का कहना है कि पिछले चार साल से ईमानदारी का ढोल पीटने वाली डबल इंजन की सरकार से ऐसी उम्मीद नहीं थी। शिक्षकों का कहना है कि तबादले के लिए विधिवत् आवेदन करने वाले शिक्षकों के प्रस्तावों पर पद रिक्त होने के बावजूद भी विचार नहीं किया।

राजकीय शिक्षक संघ के महामंत्री डा० सोहन सिंह माजिला इन तबादलों पर सवालिया निशान लगाते हैं। वे इस पर कहते है कि शिक्षकों के तबादले होने चाहिए, लेकिन पिक एण्ड चूज भी नहीं होना चाहिए। यदि सरकार को तबादले करने ही थे तो फिर भला तबादला सत्र को शून्य क्यों रखा गया? यदि प्रक्रिया सामान्य रूप से होती तो अनिवार्य तबादलों में ज्यादा शिक्षकों को लाभ मिल सकता था। यह परम्परा अच्छी नहीं है।

ट्रांसफर का खेल खत्म करने के लिए पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने कार्यकाल के दौरान तबादला एक्ट प्रदेश में लागू किया था। जिसके बाद प्रदेश में ट्रांसफर उद्योग का प्रदेश में पूरी तरह खात्मा हो गया था। शायद इस ट्रांसफर उद्योग से जुड़े आकाओं को पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र का भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ पसंद नहीं आया। राजनीति की ‘काजल की कोठरी’ से ‘त्रिवेन्द्र रावत’ बेदाग बाहर निकल आये लेकिन मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी इस कालिख से खुद को बचाने में कामयाब नहीं हो पाये।


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