September 22, 2024

जाने क्यों और कहां मनाया जाता है बिहू एवं पोंगल

उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी, उत्तरायण जैसे कई नामों से जानते हैं। वहीं असम में मकर संक्रांति को बिहू के रूप में मनाते हैं। माघ मास में पड़ने के कारण इसे माघ बिहू कहते हैं। इसके अलावा इसे भोगली बिहू, माघी के नाम से भी जानते हैं। यह पर्व भी अच्छी फसल के लिए भी मनाया जाता है। बिहू के दिन कृषि के देवता और पूर्वजों को भरपूर फसल और अच्छे जीवन के लिए धन्यवाद देने के लिए इस पर्व को मनाते हैं। असम के पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार इस साल बिहू पर्व 15 जनवरी 2023 यानी आज मनाया जा रहा है।

माना जाता है कि बिहू की उत्पत्ति विशु शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है शांति की तलाश करना। कृषि की दृष्टि से कहा जाए, तो यह फसल के मौसम के अंत का प्रतीक है और कृषि के देवता और पूर्वजों को भरपूर फसल और अच्छे जीवन के लिए धन्यवाद देने का एक तरीका एक नायाब है। सामाजिक की बात करें तो बिहू दोस्ती और भाईचारे के संबंधों को मजबूत करने में मदद करता है। क्योंकि इस पर्व को हर समुदाय के लोग मिलजुल कर मनाते हैं।

बिहू पर्व के दिन लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ कटी हुए फसल और नई फसल के लिए आभार प्रकट करने के लिए इकट्ठा होते हैं साथ ही पारंपरिक असमिया भोजन और मिठाई तैयार करते हैं। इसके साथ अग्नि जलाकर उसमें आहुति देते हैं।

बिहू पर्व की शुरुआत लोहड़ी के दिन से होती है। इसे उरुका कहा जाता है। इस दिन सभी लोग नदी में स्नान करते हैं। इसके साथ ही सार्वजनिक स्थान में पुआल से अस्थाई झोपड़ी बनाते है, जिसे भेला घर कहते हैं। इस जगह पर सात्विक भोजन बनाया जाता है। इसके बाद भगवान को भोग लगाने के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

भेला घर के पास बांस और पुआल से एक और झोपड़ी बनाते हैं जिसे मेजी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन सभी लोग स्नान आदि करने के बाद इस मेजी में आग लगाते हैं। इसके बाद आग के चारों ओर लोग एकत्र होकर कुछ चीजें अर्पित करते हैं। इसके साथ ही लोग नाचते और गाते हैं। अंत में भगवान से मंगल की कामना करते हैं। अगले दिन मेजी की राख को उर्वरक मानकर खेतों में छिड़काव कर देते हैं।

पोंगल दक्षिण भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। ये मुख्य रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में मनाया जाता है। दक्षिण भारत के लोग इस पर्व को नए साल के रूप में मनाते हैं। जिस समय उत्तर भारत में मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है, ठीक उसी समय दक्षिण भारत में पोंगल का पर्व मनाया जाता है। पोंगल का ये पर्व चार दिनों तक चलता है। तमिल में पोंगल का अर्थ उफान या विप्लव से है। पोंगल पर्व पर सुख-समृद्धि के लिए वर्षा, धूप और कृषि से संबंधित चीजों की पूजा अर्चना की जाती है।

तमिल कैलेंडर के अनुसार, जब सूर्य देव 14 या 15 जनवरी को धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब इसे नववर्ष का शुरुआत माना जाता है। इस साल पोंगल का पर्व 15 जनवरी से 18 जनवरी 2023 तक मनाया जाएगा। चार दिनों के इस त्योहार का पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन इंद्र देव को खुश करने के लिए पूजा की जाती है। पोंगल पर्व के दूसरे दिन को सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मात्तु पोंगल और चौथे दिन को कन्नम पोंगल के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि दक्षिण भारतीय लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों को त्याग करते हैं और अपने सुखी जीवन की कामना करते हैं


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