पहाड़ विकास के लिए किया था भू-कानून में संशोधनः त्रिवेन्द्र

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देहरादून। हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र-रावत ने भू कानून को लेकर कहा हमने पहाड़ों में निवेश के लिए भू कानून में राहत दी थी वो सख्त प्रावधान के तहत दी थी। बदलाव के पीछे असल मकसद राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों का विकास था। मीडिया से बातचीत उन्होंने कहा कि पहाड़ पर स्कूल, अस्पताल और निवेश के लिए यह बदलाव किए गए थे।

उन्होंने कहा कि उत्तरकाशी जिले में आज भी कोई बड़ा प्राइवेट अस्पताल नहीं है। ऐसे में इस क्षेत्र में प्रयास किए जाने की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि भू-कानून में ये व्यवस्था भी की गई थी कि यदि प्रस्तावित निवेश दो साल के भीतर धरातल में नहीं उतरता तो भूमि स्वतः ही सरकार में निहित हो जाएगी।

विदित है कि राज्य में सख्त भू-कानून और मूल निवास की मांग लगातार मांग पकड़ रही है। कई लोग 2018 में भू-कानून में हुए बदलावों को भी राज्य विरोधी बता रहे हैं।

विकास के लिए किया था भू-कानून में संशोधन

साल 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून में संशोधन किया था। इस संशोधन के तहत, भूमि खरीद का दायरा 12.5 एकड़ से बढ़ाकर 30 एकड़ कर दिया गया। इस संशोधन का मकसद पूंजी निवेश को आकर्षित करना था। तत्कालीन भाजपा सरकार के मुताबिक उत्तराखंड में भू-कानून का मकसद विकास की ज़रूरतों और राज्य की संस्कृति और पर्यावरण के संरक्षण के बीच संतुलन बनाना है।

2018 के संशोधन में व्यवस्था की गई थी कि खरीदी गई भूमि का इस्तेमाल निर्धारित उद्देश्य के लिए नहीं किया जाता या किसी अन्य को बेचा जाता है तो वह राज्य सरकार में निहित हो जाएगी।

त्रिवेंद्र सरकार के दौरान इन्वेस्टर्स समिट हुई, तो उस समय इस तरह की चर्चाएं सामने आई की पहाड़ पर अगर स्वास्थ्य और शिक्षा के बड़े प्रोजेक्ट लगते हैं, तो भू-कानून में संशोधन करना होगा। इसी वजह से यह संशोधन किया गया था। चार क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए प्रतिबंध हटाए गए थे। 2018 में इन्वेस्टर्स समिट के बाद से राज्य में 35,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ।