EXCLUSIVE: कोरोना काल में चर्चा में आईं मनरेगा, बेरोजगार प्रवासियों के लिए रोजगार की संभावनाएं

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डॉ. राजेन्द्र  कुकसाल

आजकल सोशल मीडिया पर मनरेगा चर्चाओं में हैं, हासिये पर चल रही यह योजना अचानक सुर्खियों में आगयी क्योंकि हुक्मरानों को इस योजना के माध्यम से वेरोजगार प्रवासियों के लिए रोजगार की संभावनाएं दिखाई देने लगी। समय समय पर मैं मनरेगा योजना से जुड़ा रहा । राज्य में चल रही मनरेगा योजना पर अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा कर रहा हूं।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, जिसे भारत सरकार ने 7 सितंबर 2005 को पार्लियामेंट से पास करा कर कानूनी दर्जा दिया गया। यह योजना दो फरवरी, 2006 को देश के 200 जिलों में शुरू की गयी अगले बर्ष याने 2007 में इसे और 130 जिलों में विस्तारित किया गया वर्ष 2008-09 में पहली अप्रैल से यह देश के सभी 593 जिलों में लागू की गयी।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) एक कानून है, जो शासन को इस बात के लिए बाध्य करता है कि वह किसी भी ग्रामीण परिवार के वैसे सदस्यों को एक साल में सौ दिन का रोजगार मुहैया कराये, जो 18 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं और अकुशल मजदूर के रूप में काम करना चाहते हैं।

इस अधिनियम को ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों के लिए अर्ध-कौशलपूर्ण या बिना कौशलपूर्ण कार्य, चाहे वे गरीबी रेखा से नीचे हों या ना हों।

शुरू में इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका पुनः नामकरण कर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना किया गया।

सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय इलाकों में तथा कुछ राज्यों ने अपनी हिस्सेदारी से मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान रखा है। मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों के व्यस्क युवाओं को रोज़गार का कानूनी अधिकार प्रदान किया गया है। प्रावधान के मुताबिक, मनरेगा लाभार्थियों में एक-तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है। साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। प्रावधान के अनुसार, आवेदन जमा करने के 15 दिनों के भीतर या जिस दिन से काम की मांग की जाती है, आवेदक को रोज़गार प्रदान किया जाएगा।

पंचायती राज संस्थानों को मनरेगा के तहत किये जा रहे कार्यों के नियोजन, कार्यान्वयन और निगरानी हेतु उत्तरदायी बनाया गया है। मनरेगा में सभी कर्मचारियों के लिये बुनियादी सुविधाओं जैसे- पीने का पानी और प्राथमिक चिकित्सा आदि के प्रावधान भी किये गए हैं।

मनरेगा के तहत आर्थिक बोझ केंद्र और राज्य सरकार द्वारा साझा किया जाता है। इस कार्यक्रम के तहत कुल तीन क्षेत्रों पर धन व्यय किया जाता है (1) अकुशल, अर्द्ध-कुशल और कुशल श्रमिकों की मज़दूरी (2) आवश्यक सामग्री (3) प्रशासनिक लागत।

केंद्र सरकार अकुशल श्रम की लागत का 100 प्रतिशत, अर्द्ध-कुशल और कुशल श्रम की लागत का 75 प्रतिशत, सामग्री की लागत का 75 प्रतिशत तथा प्रशासनिक लागत का 6 प्रतिशत वहन करती है, वहीं शेष लागत का वहन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। चूंकि राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता देती हैं, उन्हें श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने के लिए भारी प्रोत्साहन दिया जाता है।

बेरोजगारी भत्ते की राशि को निश्चित करना राज्य सरकार पर निर्भर है, जो इस शर्त के अधीन है कि यह पहले 30 दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी के 1/4 भाग से कम ना हो और उसके बाद न्यूनतम मजदूरी का 1/2 से कम ना हो। प्रति परिवार 100 दिनों का रोजगार (या बेरोजगारी भत्ता) सक्षम और इच्छुक श्रमिकों को हर वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाना चाहिए। चूंकि राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता देती हैं, उन्हें श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने के लिए भारी प्रोत्साहन दिया जाता है।

मनरेगा के अंतर्गत किये जाने वाले कार्य

मनरेगा के कार्य ग्रामीण विकास और रोजगार के दोहरे लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से निर्धारित किए जाते हैं। जैसे -जल संरक्षण और संचयन , वनीकरण, ग्रामीण संपर्क-तंत्र, बाढ़ नियंत्रण और सुरक्षा ,तटबंधों का निर्माण और मरम्मत, नए टैंक/तालाबों की खुदाई, रिसाव टैंक और छोटे बांधों के निर्माण को भी महत्व दिया जाता है।

कोई भी ऐसा कार्य जिसे केन्द्र सरकार राज्य सरकारों से सलाह लेकर अधिसूचित करें

समय समय पर राज्यों की मांग व आवश्यकता नुसार इसमें भारत सरकार द्वारा सुधार किया जाता रहा है। कोरोना काल में बड़ी संख्या में प्रवासियों के अपने राज्य व गांव लौटने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने की चुनौती पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है इस स्थति में मनरेगा के बार्षिक बजट को लगभग 60000 करोड़ रुपए से लगभग एक लाख करोड़ रुपए करके भारत सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाया है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. लेखक डॉ. राजेन्द्र  कुकसाल ग्रामीण विकास मिशन और पूर्व लोकपाल मनरेगा पौडी गढवाल है,इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Dastavej.in उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार DASTAVEJ.INके नहीं हैं, तथादस्तावेज न्यूज हिंदीउनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं