November 23, 2024

38 वीं पुण्यतिथि: रफी के जीवन से जुड़ी 10 यादगार बातें…

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अमृतसर के पास पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को जन्म हुआ था। मुंबई में 31 जुलाई 1980 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ। इससे एक दिन पहले बांग्ला भजन की रिहर्सल कर रहे थे तब पत्नी से कहा था कि मैं बहुत थक गया हूं, पर गाऊंगा। आखिर कलकत्ता से संगीतकार श्यामल मित्रा बड़ी उम्मीदों के साथ आए हैं। उन्हें खाली हाथ नहीं जाने दूंगा। और वैसे भी रफी के घर से कोई खाली हाथ नहीं जाता। रमजान माह में उनके जनाजे के दौरान करीब 10 हजार लोग एकत्रित हुए थे। बारिश में भीगते हुए लोगों ने रफी को विदा किया।

बेटा एक दिन तू बहुत बड़ा गायक बनेगा…

बड़े भाई की नाई की दुकान में रफी ने एक फकीर को गाते हुए देखा तो बहुत प्रभावित हुए। बाद में उसकी नकल करने लगे। जब 7 साल के थे तो उस फकीर के लिए दिल में खास भक्तिभाव आ जाता था। यह देख फकीर बहुत खुश हुआ और उसने रफी को आशीर्वाद दिया, बेटा एक दिन तू बहुत बड़ा गायक बनेगा। रफी लाहौर में संगीत की शिक्षा उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से ली थी। उन्होंने गुलाम अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखा था। इनकी बहू यासमीन खालिद रफी ने मोहम्मद रफी की जीवनी लिखी।

तकरीबन 26 हजार गीत गाये…

मोहम्मद रफी ने पूरे करियर में लगभग सभी भाषाओं में तकरीबन 26 हजार गीत गाये। उन्हें 6 फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले। वर्ष 1946 में फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ में ‘तेरा खिलौना टूटा ‘ उनका पहला गाना था। रफ़ी का जीवन काफी सरल था। शराब और सिगरेट का उन्हें शौक नहीं था। देर रात की महफिलें उन्हें नहीं भाती थीं। वह सामान्य जीवन जीते थे और गायकी को एक तरह से इबादत मानते थे।

मोहम्मद रफी ने दो शादियां की थी…

आजादी बाद रफी ने भारत में रहना पसन्द किया। उन्होंने बेगम विक़लिस से शादी की और उनके चार बेटे तथा तीन बेटियां हुईं । बहुत कम लोग जानते हैं कि मोहम्मद रफी ने दो शादियां की थी। पहली शादी बशीरा से हुई। बशीरा ने विभाजन के वक्त भारत में रहने से इनकार कर दिया और वो लाहौर चली गईं ।

 

रफ़ी के बिना मेरी फिल्मों में मैं अधूरा हूं…

शम्मी कपूर कहते थे कि ‘रफ़ी उनकी आवाज है, रफ़ी के बिना मेरी फिल्मो में मैं अधूरा हूं। शम्मी कपूर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि रफी के निधन के दौरान वो वृंदावन में थे, जहां किसी ने उनसे कहा था कि शम्मी साहब आपकी आवाज़ चली गई।

मानो कोई फरिश्ता उनके सामने गा रहा हो…

1944 में रफी नौशाद साहब के नाम एक सिफारशी पत्र लेकर लखनऊ से मुंबई आ गए थे। नौशाद ने जब रफ़ी की आवाज सुनी तो उन्हें लगा मानो कोई फरिश्ता उनके सामने गा रहा हो, नौशाद ने रफ़ी को हिन्दी फिल्म ‘पहले आप’ में गवाया और इस गाने के लिए रफी को 50 रुपये मेहनताना भी दिया।

सलिल चौधरी ने लता का साथ दिया…

लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी काफी अच्छे दोस्त थे पर 60 के दौर में लता ने अपनी फिल्मों में गाना गाने के लिए रॉयल्टी लेना शुरू कर दिया। लता के इस कदम के बाद रफी ने उनसे दोस्ती तोड़ ली। माया फिल्म का गीत तस्वीर तेरी दिल में… जब रिकॉर्ड हो रहा था तब अंतरा कैसे गाया जाना चाहिए, इस पर भी लता और रफी की एक बार बहस हुई। संगीतकार सलिल चौधरी ने लता का साथ दिया। लता ने घोषणा कर दी कि वो रफी के साथ नहीं गाएंगी। करीब 6 साल बाद संगीतकार जयकिशन ने दोनों को एक साथ स्टेज पर गवाया।

शहंशाह-ए-तरन्नुम…

भक्ति, शादी, विरह, शास्त्रीय, रोमांस, मस्ती, देशभक्ति या कोई अन्य इमोशन हो। रफी साहब इन सभी विधाओं में पूरी तरह रमकर गीत गाते थे। इसलिए ही रफी साहब को शहंशाह-ए-तरन्नुम कहा जाता है। संगीतकार राहुल देव बर्मन ने कहा था कि रफी साहब गाने के रिकॉर्ड होने के दौरान अक्सर भिंडी बाजार से हलवा लाते थे। हर सुबह तीन बजे उठकर रियाज करते थे। बाद में बैडमिंटन खेलते थे। रफी साहब को पतंग उड़ाने का भी शौक था।

भजन के भी उस्ताद थे…

रफी ने बैजू बावरा में मन तड़पत हरि दर्शन गीत…गाया था। इसके अलावा ओ दुनिया के रखवाले, मधुबन में राधिका नाची रे, मन रे तू काहे न धीर धरे, मेरे मन में हैं राम मेरे तन में हैं राम, सुख के सब साथी दुख में न कोई, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, बड़ी देर भई नंदलाला जैसे तमाम भजन गाए हैं।

सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे…

रफी ने लगभग सभी संगीतकारों के साथ काम किया। नौशाद, एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन, रवि, मदन मोहन, ओपी नैयर, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल आदि संगीतकारों ने रफी के आवाज के साथ जुगलबंदी की। उनकी पत्नी के मुताबिक उनके पसंदीदा गानों में सबसे ऊपर फिल्म दुलारी का गाना था। जिसमें नौशाद साहब ने संगीत दिया। गीत है सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे…


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