EXCLUSIVE: अडिग है ‘पहाड़ पुत्र’, उत्तराखंड को भाया टीएसआर मॉडल, विरोधी हुए पस्त
देहरादून: त्रिवेन्द्र सरकार अपने चार साल 18 मार्च को पूरे करने जा रही है। उन्होंने उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री पद से जुड़े कई मिथकों को तोडने में भी कामयाबी पाई है। वे पूर्व सीएम एनडी तिवारी के बाद सबसे अधिक समय तक काम करने वाले सीएम का रिकार्ड अपने नाम कर चुके हैं। इन चार सालों में वे एनडी तिवारी के कुशल प्रबंधन से इक्कीस नजर आते हैं तो भ्रष्टाचार के मामले में जनरल खण्डूड़ी से ज्यादा सख्त दिखते हैं। सीएम रावत ने उत्तराखण्ड के जनसरोकारों से जुड़े कई अहम फैसले लिये है। जो उत्तराखण्ड के विकास में मील का पत्थर साबित होंगे।
गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करना उनका ऐतिहासिक फैसला माना जाता है। बीस साल के इतिहास में कोई भी सरकार गैरसैंण को राजधानी की हिम्मत भी नहीं दिखा सकी। लेकिन सीएम त्रिवेन्द्र रावत ने राजनीति से परे हटकर उत्तराखण्ड की जनभावनाओं को देखते हुए ये साहसिक कदम उठाया। अटल आयुष्मान योजना और महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में सहखातेदार बनाने के फैसलों ने देशभर में एक बड़ी नजीर पेश की है।
सीएम त्रिवेन्द्र रावत के लिए ये चार साल का सफर इतना भी आसान नहीं रहा है। सीएम की ताजपोशी के पहले दिन से ही वे सियासत के विभीषणों और शकुनियों के निशाने पर रहे हैं। विपक्ष से ज्यादा पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी से उन्हें लगातार चुनौतियां मिलती रही हैं। उनके विरोधी नेतृत्व परिवर्तन की बातें उछालकर उन पर दबाव बनाते रहे है।
सीएम त्रिवेन्द्र रावत का विरोध हर बार एक खास पैटर्न पर होता है। जब भी सीएम त्रिवेन्द्र रावत दिल्ली जाते हैं या दिल्ली से कोई बड़ा नेता देहरादून आता है। तो इस दौरान उनके विरोधी सियासत की बिसात पर शकुनि चाल शुरू कर देते हैं। सियासत के ये शकुनि हर बार प्रदेश में सियासी हलचल की हवा फैलाकर अस्थिरता का माहौल पैदा करने की कोशिश करते हैं। लेकिन त्रिवेन्द्र सरकार के काम-काज के आगे सियासत के इन शकुनियों को हर बार मुंह की खानी पड़ी है।
इन चार साल में त्रिवेन्द्र की छवि एक कुशल प्रशासक और मंझे राजनीतिज्ञ के तौर पर बनी है। उत्तराखण्ड के इतिहास में वो प्रदेश के एकमात्र ऐसे सीएम है जिसने राज्य की बेलगाम नौकरशाही मश्के कसी है। गाइजर घास की तरह फल-फूल रहे ट्रांस्फर उद्योग का पूरी तरह खात्मा कर दिया।