September 23, 2024

पेंशन एक मौलिक अधिकार,किसी भी व्यक्ति को पेंशन से वंचित करना अस्वीकार्य-मुंबई हाई कोर्ट

मुंबई हाई कोर्ट के नागपुर बेंच ने कहा कि पेंशन एक मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति रवि देशपांडे और न्यायमूर्ति एनबी सूर्यवंशी की पीठ ने निवासी नैनी गोपाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को पेंशन से वंचित करना अस्वीकार्य है। 

दरअसल, 85 वर्षीय नैनी गोपाल साल 1994 में ऑर्डेनेंस फैक्ट्री से सहायक फोरमैन के रूप में रिटायर हुए थे। उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के केंद्रीकृत पेंशन प्रसंस्करण केंद्र की कार्रवाई पर शिकायत की थी। उन्होंने कहा कि उनकी पेंशन की मासिक रकम 11,400 रुपये है, लेकिन इसमें से प्रत्येक महीने 782 रुपये की कटौती की जा रही थी। अब तक कुल 3,69,035 रुपये की कटौती हो चुकी है। इसलिए इसकी वसूली के लिए उन्होंने याचिका दायर की थी। 

बैंक ने दी प्रतिक्रिया

मामले में बैंक ने कहा कि तकनीकी खराबी की वजह से साल 2007 से उनकी पेंशन से 782 रुपये की कटौती की जा रही थी। बैंक ने कहा कि याचिकाकर्ता की पेंशन निर्धारित थी इसलिए उन्हें ऑफिसर रैंक से नीचे का कर्मचारी माना गया न कि सिविल पेंशनर। साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने उसे गलती से दी गई अतिरिक्त पेंशन राशि वापस लेने के लिए अधिकृत किया था। 

व्यक्ति को पेंशन से वंचित रखना अस्वीकार्य

पीठ ने कहा कि, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के अनुसार, सेवानिवृत्त कर्मचारियों की देय पेंशन संपत्ति है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत आजीविका के लिए गठित मौलिक अधिकार है। इसलिए किसी भी व्यक्ति को पेंशन से वंचित रखना अस्वीकार्य है। इसलिए, हम याचिकाकर्ता की पेंशन को कम करने के लिए बैंक की कार्रवाई अवैध है।’ पीठ ने बैंक को उनकी पेंशन की कटौती बंद करने का निर्देश दिया। साथ ही अब तक की काटी गई रकम उनके खाते में डालने को भी कहा।

इतना ही नहीं, वरिष्ठ नागिरक के प्रति बैंक के असंवेदलशील व्यवहार को देखते हुए हाई कोर्ट ने बैंक को याचिकाकर्ता के खाते में 50,000 रुपये डालने को भी कहा और कहा कि यदि यह रकम डालने में देरी हुई, तो बैंक को हर रोज 1,000 रुपये का जुर्माना देना होगा।


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