मुंबई पर फिर मंडरा रहा है साइक्लोन का खतरा, समंदर में शुरू हुई हलचल; जानिए क्या है महाराष्ट्र के लिए चेतावनी
महाराष्ट्र की आर्थिक राजधानी मुंबई में चक्रवातीय तूफान का संकट मंडरा रहा है. समंदर में जब भयंकर तूफान आता है तो उससे पहले जो लक्षण दिखाई देते हैं, वे मुंबई में दिखाई दे रहे हैं. समंदर में हलचलें बढ़ गई हैं. तापमान बढ़ रहा है. पानी का स्तर ऊंचा उठ रहा है. बढ़ते हुए तापमान की वजह से ही जलस्तर उठ रहा है. अगर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो भयंकर समुद्री तूफान आ सकता है. यह बात एक रिपोर्ट में सामने आई है. अगर इसी तरह जलस्तर ऊंचा उठता रहा तो 2050 तक इस बढ़ते हुए जलस्तर की वजह से करीब 5 हजार करोड़ का नुकसान होगा.
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट का दूसरा भाग जाहिर किया गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक यह आशंका व्यक्त की गई है कि मुंबई के समंदर में इस तरह के बदलाव 2027 तक 2.9 गति से बढ़ेंगे.
जैसे-जैसे बढ़ेगा तापमान, वैसे-वैसे बढ़ेगी तबाही
मुंबई महानगरपालिका की ओर से शुरू किए गए महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट कोस्टल रोड को बाढ़ से बचाने के लिए और समंदर के जल स्तर को बढ़ने से बचाने के लिए कोशिशें करने और सुरक्षा से संबंधित प्लान तैयार करने का काम शुरू है. आशंका है कि जैसे-जैसे वक्त गुजरता जाएगा सबसे पहले समुद्रतटीय इलाकों में प्राणियों, वनस्पतियों और मछलियों के लिए संकट शुरू होगा. इसके बाद मुंबई समेत पूरी दुनिया में बढ़ते हुए तापमान की वजह से मॉनसून पूर्व और मॉनसून के बाद साइक्लोन आने में तेजी बढ़ती जाएगी. इससे भारी तबाही होनी शुरू हो जाएगी. जल्दी ही मुंबई साइक्लोन इफेक्ट दिखाई देने शुरू हो जाएंगे.
तूफान का ऐसा कोहराम आएगा, इंसान निपटने का तरीका नहीं जान पाएगा
तापमान बढ़ने के साथ ही मॉनसून पूर्व और मॉनसून के बाद चक्रवातीय तूफानों में बढ़ोत्तरी होगी. ऐसा सिर्फ मुंबई में ही नहीं होगा. मुंबई समेत कोलकाता, चेन्नई जैसे शहरों में भी समुद्री जल स्तर के बढ़ने से संकट बढ़ेंगे. ऐसे में उत्सर्जन में कमी लाना बहुत जरूरी है. अगर उत्सर्जन में कमी नहीं आई तो दुनिया भर में गर्मी और नमी मिलकर ऐसे हालात बना देंगे जिसे सहन कर पाना, उससे निपटने का तरीका जान पाना इंसान के बस में नहीं रहेगा. ऐसे हालात जिन देशों में पैदा होने वाले हैं, उन देशों में एक भारत भी है.
क्या है संभावित संकट से बचने का उपाय, इंसान जाए तो कहां जाए
इससे बचने का फिलहाल एक ही उपाय समझ में आ रहा है. कंक्रीट के जंगल को हरे-भरे जंगल में बदलना होगा. ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे. ग्रीन इंफ्रास्ट्र्क्चर से जुड़ी सुविधाएं बढ़ानी होंगी. बायो डायवर्सिटी के संरक्षण के लिए कदम उठाने होंगे. नदियों के संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा.
विशेषज्ञों का मत है कि अगर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो जल्दी ही ऐसा वातावरण तैयार हो जाएगा जहां इंसान छह घंटे से ज्यादा सही तरह से नहीं रह पाएगा. वो चाहे कितना भी स्वस्थ हो. इसके बाद हालात और काबू से बाहर हो जाएंगे. तापमान इससे भी अधिक बढ़ेगा और गर्मी असहनीय हो जाएगी.