उच्च शिक्षा में बड़े बदलाव की आवश्यकता, व्यावहारिक और शोधपरक हो शिक्षा व्यवस्था: डा0 यू0एस0 रावत
उच्च शिक्षा में कई मूलभूत बदलावों की वकालत करने वाले श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डाॅ0 उदय सिंह रावत का मानना है कि हमें प्रदेश में व्यापक स्तर पर गुणात्मक, व्यावाहरिक और शोधपूर्ण शिक्षा व्यवस्था का महौल बनाना होगा। इसके लिए बुनियादी सुविधा सहित मजबूत इन्फ्रास्टेक्चर और विश्वविद्यालयों में आपसी सहयोग की भावना पर काम करना होगा। दस्तावेज इंडिया के कार्यकारी संपादक शक्ति सिंह बत्र्वाल से हुई वार्ता के कुछ अंश।
सवाल- श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे क्या उद्देश्य रहा?
जवाब- श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय की स्थापना का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य दूरस्थ पर्वतीय इलाकों में उच्चस्तरीय शोधपरक शिक्षा की व्यापक पहुंच बढ़ाना है। क्योंकि पहाड़ में उच्च शिक्षा के लिए युवाओं को महानगरों की ओर रूख करना पड़ता है। जिससे पहाड़ में बड़े पैमाने पर पलायन भी हुआ। लिहाजा विश्वविद्यालय के गठन का मकसद पहाड़ में शिक्षा और रोजगार के अवसर पैदा कर पलायन को रोकना भी है। दूसरा हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विवि का दर्जा मिलने से राज्य में एक नए विश्वविद्यालय की आवश्यकता भी महसूस की गई थी।
सवाल- आपको श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय का प्रथम कुलपति होने का गौरव प्राप्त है, बतौर कुलपति आपके सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं?
जबाव- देखिए, परिस्थितियां कभी भी किसी कार्य के अनुकूल नहीं होती है। मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती विश्वविद्यालय को उच्च मानकों पर स्थापित करना था। जिसमें हम सफलता की ओर बढ़ रहे हैं। मैं जानता हूं कि अगर विश्वविद्यालय की नींव मजबूत होगी तो निश्चित तौर पर हमें परिणाम भी सुखद मिलेंगे। आज स्थिति आपके सामने हैं सीमित संसाधनों में हमने श्रेष्ठ देने की कोशिश की है। श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय छात्र पंजीकरण के लिहाज से प्रदेश का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बन गया है।
सवाल- विश्वविद्यालय में शैक्षिक वतावरण को मजबूत बनाने के लिए आपके द्वारा क्या कदम उठाये गये हैं?
जबाव– हम क्वालिटी एजूकेशन में विश्वास रखते हैं, हमने विश्वविद्यालय में एक महौल तैयार किया है, शिक्षा में कोई कमी नहीं रहे, लिहाजा काॅलेजों में अध्यापकों की नियुक्त लगभग हो चुकी है, कुछ पदों पर राज्य लोक सेवा आयोग में चयन प्रक्रिया गतिमान है और जल्द हमें अन्य शिक्षक मिल जायेंगे। मैं स्वयं काॅलेजों के औचक निरीक्षण पर जाता हूं, जो समस्याएं दिखती है उसका समय पर निराकरण किया जाता है। दूसरा विश्वविद्यालय परीक्षाओं का समय पर आयोजन कर रहा है। हमने नकलविहीन परीक्षाएं करने के लिए नए प्रयोग किये हैं इससे निश्चित तौर पर छात्रों को फायदा पहुंचेगा।
सवाल-आपने पहाड़ में क्वालिटी एजुकेशन की बात कही, किस प्रकार का ढांचा आपने तैयार किया है?
जबाव- जैसे मैंने पहले कहा कि श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय का गठन ही इसी मकसद से हुआ है। पहाड़ में शिक्षा का महौल बने इसके लिए लगभग प्रत्येक ब्लाॅक में महाविद्यालयों का निर्माण किया गया है। हमने गोपेश्वर डिग्री काॅलेज को विश्वविद्यालय का मेन कैंपस बनाया है। इससे पहाड़ में हायर एजुकेशन को गति मिलेगी। हमारी कोशिश है कि हम ऐसा इन्फ्रास्टेक्चर तैयार करे जिससे पहाड़ के युवाओं को अपने ही क्षेत्र में क्चालिटी एजुकेशन तो मिले साथ ही रोजगार के अवसर भी सृजित हो। रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए हम विश्वविद्यालय में नए पाठ्यक्रमों का संचालन करेंगे। जिसमें पर्यटन, कृषि, औषधीय खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन एवं फूड प्रोसेसिंग जैसे विषय शामिल हैं।
सवाल- राज्य की अगर बात करें तो उच्च शिक्षा में हो रहे बदलावों से आप कितने संतुष्ट हैं?
जबाव- देखिए हायर एजुकेशन में अभी बड़े पैमाने पर बदलाव की आवश्यकता है। सबसे पहले हमें विश्वविद्यालयों और काॅलेजों में इन्फ्रास्टेक्चर तैयार करना है। जैसे हमारे पास अच्छी फैकल्टी हो, अच्छी प्रयोगशाला और पुस्तकालय हो, स्पोर्ट्स का सजो-सामान हो, छात्रावास हो, विशेषकर पहाड़ों में जो छात्राएं हैं उनके लिए सिसली हाॅस्टल की व्यवस्था होनी चाहिए। जब ये सब सुविधा हमारे पास होगी तभी हम उच्च शिक्षा के आयामों को छू सकते हैं। मैं कह सकता हूं कि इस क्षेत्र में अभी हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है।
सवाल- हाल ही में राज्य सरकार ने ‘ज्ञानकुंभ’ का आयोजन किया, आप इस प्रोग्राम के समन्वयक थे, क्या बातंे इसमें से निकलकर आयी?
जबाव- जी हां, ज्ञानकुंभ में कई बातें सामने आई, इसमें ‘योग’ को पाठ्यक्रम में शामिल करना तथा हमारी जो इथिक्सि वेल्यू है यानि हमारी सभ्यता के जो धार्मिक व सामाजिक पहलू हैं उनको भी हम अपने कोर्स में सम्मिलित करेंगे। ताकि छात्रों को हमारे इथिक्सि वेल्यू का ज्ञान भी प्राप्त हो सके। ज्ञानकुंभ में यह बात भी प्रमुखता से उभर कर आयी कि हमें एक-दूसरे विश्वविद्यालय के कार्यों का पता नहीं चलता जैसे रिसर्च हो गया, इनोवेटिव्स वर्क है, उपकरण हो गये। लिहाजा इन्हें अब विश्वविद्यालय आपस में शेयर कर सकेंगे।
सवाल- विश्वविद्यालय स्तर पर मौलिक शोध नहीं हो रहे हैं आप क्या मानते हैं?
जबाव- देखिए हम लोगों को सबसे पहले रिसर्च पैर्टन को बदलना होगा और हमारी जो समस्याएं हैं उन पर फोकस करना होगा। आपने देखा होगा कि जो मूल समस्या आ रही है वह रिसर्च टाॅपिकों की पुनारावृत्ति की है। यानी एक ही टाॅपिक पर कई रिसर्च हो रहे हंै। हमारा सुझाव है कि इसमें विविधता लाई जाय। दूसरा हमें बच्चों को किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रखना है उन्हें रियल लाइफ में उन चीजों से अवगत करवाना होगा। इसके लिए काॅलेज के अलावा प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर बच्चों को शैक्षिक भ्रमण करना आवश्यक है। ताकि उन्हें व्यावारिक ज्ञान मिल सके।
सवाल- उच्च शिक्षा में बदलाव के लिए सरकार से आप क्या सहयोग की अपेक्षा रखते हैं?
जबाव- हम सरकार से चाहते हैं कि जो हमारे डिग्री कालेज और विश्वविद्यालय है उन्हें आॅटोनोमी दी जाय। इसमें शासन का ज्यादा हस्तक्षेप न हो। विश्वविद्याल के अपनी एक आॅटोनामी है उनके अपने एक्ट हैं उसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है। विश्वविद्यालय को अपनी जरूरत के अनुसार काम करने की छूट दी जाय। दूसरा विश्वविद्यालयों में जोे प्रशासनिक पद है जैसे कुल सचिव, परीक्षा नियंत्रक इनकी नियुक्ति में पारदर्शिता होनी चाहिए। ऐसे लोगों का इन पदों पर चयन हो जो जानकार हो ताकि विश्वविद्यालय प्रशासन को मजबूती मिल सके। शोध कार्यों को बढ़ावा देने लिए फंड की आवश्यकता होती है। इसमें शासन का सपोर्ट जब तक नहीं होगा तब तक हवा में बातें करना बेमानी होगी। सरकार की ओर से शोद्यार्थियों को स्काॅलरशिप मिलनी चाहिए जिससे वह अपने रिसर्च पूर कर सके।