September 22, 2024

निशंक: फेयरी टेल का एक हीरो, जिसका तिलस्म टूट गया

– टीचर से देश के शिक्षा मंत्री बनने का जादुई सफर खत्म
– अपना गांव तक नहीं बसा सके, अब लेखक गांव बसा रहे

गुणानंद जखमोला

7 जून 2019 की बात है। रमेश पोखरियाल निशंक देश के शिक्षा मंत्री बने थे। मैं बहुत खुश था और मैं सीधे पौड़ी गढवाल स्थित उनके गांव पिनानी पहुंच गया। पिनानी गांव तक का सफर डरावना था। दमदेवल की संकरी सी सड़क और सैकड़ों फीट खाई को देख मेरे पैर क्लिच और ब्रेक के बावजूद कांप रहे थे। गांव पहुंचा तो मुझे लगा कि लोग मुझे घेर लेेंगे कि उनके गांव पर स्टोरी करने पहुंचा हूं। लोगों ने घेरा, लेकिन अधिकांश ग्रामीण नाराज थे। कई ग्रामीणों ने तो कहा कि भाजपा की लहर के बावजूद उन्होंने भाजपा को वोट इसलिए नहीं दिया कि निशंक उसमें है। यह पंडितों का गांव है। पिनानी गांव में भी उसी तरह से पलायन की मार है जैसे पहाड़ के अन्य गांव। हां, यहां अब सड़क बन गयी है। एक 10 बेड का पीएचसी भी है। लेकिन तब उसमें डाक्टर नहीं था तो एक आशा वर्कर ही गर्भवती महिलाओं की देखभाल कर रही थी।

ग्रामीणों के अनुसार निशंक 2011 के बाद कभी गांव नहीं गये। उस समय वे सीएम थे। 2011 में भी दूर धार पर स्थित मंदिर में ही हेलीकॉप्टर से उतरे और मंदिर में दर्शन कर उड़ गये। गांव में उनके तीन भाईयों का दो कमरों का पुश्तैनी मकान पर ताले पड़े थे और नया दोमंजिला सीमेंटिड मकान बन ही रहा था। पता नहीं उसमें कोई रहता होगा या नहीं।

कहने का अर्थ यह है कि निशंक ने अपने गांव के लिए भी कुछ नहीं किया। उनका एक चचेरा भाई बोल रहा था कि निशंक का कहना है कि तरक्की चाहिए तो पहाड़ छोड़ो। निशंक ने बहुत तरक्की की। उनकी डिग्रियां भी विवादों में रही हैं। वह शिशु मंदिर में शिक्षक थे, लेकिन शिशु मंदिरों के शिक्षिको का शोषण उनके मुख्यमंत्रित्व काल में भी होता रहा और उनके शिक्षा मंत्री बनने के बाद भी जारी था। शिक्षा मंत्री रहते हुए निशंक केंद्रीय विद्यालयों में दाखिले को लेकर विवादों में रहे। सच पता नहीं, लेकिन इसके बाद पीएम मोदी ने केवि के दाखिलों का सांसद और शिक्षा मंत्री का कोटा ही निरस्त कर दिया। गरीब लोग इसके लिए निशंक को ही गालियां देते हैं।

कोरोना के दौरान पीएम मोदी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। एक शिक्षक का केंद्र की सत्ता तक शिक्षा मंत्री का सफर शानदार रहा। लेकिन शिक्षा मंत्री और एक सांसद के तौर पर उनकी अकर्मण्यता और लालच की पराकाष्ठा ही रही कि मौजूदा समय में टिकट कट गया। राजनीति में यह होता है, लेकिन निशंक जिस ऊंचाई से धम्म से गिरे हैं तो कुछ न कुछ टूटा ही होगा। खैर, जब वह पावर में थे तो अपना गांव तो वह बसा नहीं सके, लेकिन सुना है कि प्रदीप दत्ता की जमीन पर लेखक गांव बसा रहे हैं। पोस्ट में लेखक गांव की फोटो है। यहां जोरों पर काम चल रहा है।
निशंक एक परी कथा के हीरो रहे हैं। कई परियां उनके आसपास मंडराती रहीं। इसके अनेकों किस्से हैं। चलो, उन्होंने कई घर तोड़े हैं, क्या पता लेखक गांव में ही उन पीड़ितों को बसा लें।


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