NIT सुमाड़ी का जयपुर शिफ्ट होना प्रदेश की राजनीतिक विफलता
NIT सुमाड़ी को जयपुर शिफ्ट करने की खबर से पहाड़ में उबाल आया है। एक एक कर शैक्षिक और केंद्रीय संस्थाओं का प्रदेश से पलायन इस बात की तस्दीक देता है कि हमारे प्रतिनिधि प्रदेश के लिए फ़िक्रमंद नहीं है बल्कि इसके उलट उनका पूरा ध्यान निजी स्वार्थ पर है। NIT सुमाड़ी में विगत दिनों घाटी घटना के बाद कोई भी प्रतिनिधि सुमाड़ी नही गया और ना ही शासन-प्रशासन ने इस ओर कोई ठोस कदम उठाए। लिहाज छात्राओं में भारी रोष बढा और मामले ने तूल पकड़ा। बाबजूद इसके राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री ने इसमें कोई दखल नही दी जबकि मामला उनके विधानसभा क्षेत्र से भी संबंधित था।
NIT श्रीनगर के मामले में अब संस्थान से 500 छात्रों को जयपुर स्थानांतरित किये जाने की बात सामने आयी है।
NIT के मामले में सब पहाड़ी जानते थे कि पूरी राज्य सरकार और विशेष रूप से राज्य के शिक्षा मंत्री झूठ बोल रहे हैं, और बार बार झूठ बोल रहे हैं । उनका तो मामला यहाँ तक पहुँच गया है कि अपने विधानसभा क्षेत्र में SSB अकादमी शिफ्ट का मामला हो या बेस हॉस्पिटल के सेना को पूर्ण रूप से सौंप देने का। उनके उन पर कहे पहले के झूठ साबित होने के बावजूद ये नेता जी डंके की चोट पर बार बार झूठ बोल रहे हैं। दरअसल झूठ बोलना इस पार्टी व सरकार का राष्ट्रीय चरित्र है ये वो सरकार है जिसने अपने उत्तराखंड चुनाव के घोषणापत्र में लिखे हुए हर वादे के खिलाफ काम किया है चाहे आप गैरसैंण के मुद्दे पर इस सरकार की वादाखिलाफी देखें चाहे पलायन के सवाल पर , चाहे पहाड़ में रोजगार के सवाल पर
दुर्भाग्य से पिछले 18 सालों में पहाड़ से हम जिन विधायकों को अपने विकास के लिए देहरादून भेजते हैं वे पहाड़ की सम्पदा बेचने के एजेंट के अलावा कुछ नही हैं उनको पहाड़ की विशिष्ट भौगोलिक स्थानों पर बसे लोगो के जीवन की बेहतरी की बजाय और कष्ट कैसे दिए जाए ये गुर देहरादून में वो बनिये सिखाते हैं जिनके लिए पिछले दिनों इस सरकार ने इन्वेस्टमेंट समिट कराया और जितनी मर्ज़ी पहाड़ की जमीन चाहिए कोड़ियों के भाव खरीदने के कानून बनाये। जिनको दिल्ली भेजते हैं उनको समझ ही नहीं आता कि वे कौन हैं वे अखबार में केवल यह खबर छपवाते हैं कि उत्तराखंड के किसी नेता को मंत्रिमंडल में जगह नही मिली।
NIT को सुमाड़ी बनाने की मांग कोई ऐसी मांग नही है कि मन्दिर वहीं बनेगा इसलिए शायद किसी को फरक भी नही पड़ता, न मीडिया को न जनता को।
पहाड़ से एक राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान केवल इस लिए चला जाएगा कि पिछले 9 सालों में इस राज्य की सरकार जमीन का चयन पूरे पहाड़ में कहीं नही कर पायी बहुत ही दुःखद और सरकारों की मक्कारी है, वो भी तब जब ये बड़े लोगो को पहाड़ की जमीन कौड़ियों के भाव बेचने को तैयार हैं।
आज सब लोगो को जरूरत है कि जनता के लिए लड़ने वाली सब ताकतों एक होना होगा।