व्यंग्य : नो हार, ओन्ली जीत!
(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
डैमोक्रेसी को अपने नागपुरी भाई पहले ‘‘मुंड गणना’’ गलत नहीं कहते थे! छोटे-बड़े, ऊंचे-नीचे, अच्छे-बुरे और यहां तक कि महान और मामूली तक का, कोई ख्याल ही नहीं है। सिर्फ और सिर्फ गिनती का भरोसा। अब बताइए! मोदी जी गुजरात में रिकार्ड बना रहे हैं। रिकार्ड सिर्फ बना ही नहीं रहे हैं, खुद अपने बनाए रिकार्ड तुड़वा के भी बना रहे हैं। नरेंद्र का रिकार्ड भूपेंद्र से तुड़वाने के लिए खुद नरेंद्र भाई जी–जान लड़ा रहे हैं। पर ऐसे अद्ïभुत, अकल्पित, दिव्य दृश्य से अभिभूत होकर, अपना जन्म धन्य मानने और मोदी-मोदी पुकारने के मौके पर भी, ये डैमोक्रेसी-डैमोक्रेसी करने वाले गिनती लेकर बैठे हुए हैं। कहते हैं, सिंपल है। दो राज्य, एक नगर निगम, चुनाव कुल तीन, और तीनों में भगवाई सरकार। दो सरकारें निकल गयीं, बच गयी एक! तीन में से बचा सिर्फ एक; एक के ही बचने पर वाह-वाह कैसे करें!
पर बात सिर्फ गिनती के मैदान तक ही रहती, तो फिर भी गनीमत थी। ये तो तस्वीर बीच में ले आए हैं। कह रहे हैं कि दिल्ली हो या हिमाचल या गुजरात, भगवा पार्टी ने चुनाव तो मोदी जी की फोटू पर लड़ा था। दिल्ली में किसी ने कहा कि मोदी जी की फोटो क्यों, तो भाई लोग फोटो पर ही लड़ गए। हमारा नेता, हमारी फोटो। हमारा एक नेता, हमारा एक फोटो, चाहे जिसको बे–चेहरा कर के लगाएं! हिमाचल में तो मोदी जी ने खुद कहा था कि उम्मीदवार का नाम भूल जाओ, बस मेरी फोटो याद रखो। अब अगर गुजरात की जीत, मोदी जी की जीत है, तो हिमाचल और दिल्ली की हार, मोदी जी हार क्यों नहीं है! मीठा-मीठा गप्प और कडुआ-कडुआ थू — ये भी कोई बात हुई!
मोदी जी को गुजरात की जीत का जश्न नहीं मनाने देने के लिए, ये विरोधी और कितना गिरेंगे? गुजरात की जीत को जीत कहने के बहाने, जबर्दस्ती हिमाचल और दिल्ली को हार साबित करने पर तुले हैं। जीत की तरह मोदी जी तो हार को भी जनता का आशीर्वाद मानकर नमन कर लेंगे, पर हार हो तो सही। दिल्ली, हिमाचल में, भगवाइयों की हार थोड़े ही हुए है। वह तो विरोधियों की जीत है, जो मोदी जी ने उन्हें गिफ्ट में दी है। इस हार में भी तो मोदी जी की ही जीत है।
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)