न शिक्षा….न सड़क…. न रोज़गार, बुनियादी सुविधाओं के अभाव में पलायन जारी
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही प्रदेश में लगातार पलायन बदस्तूर जारी है। जिस जल जंगल जमीन और बुनियादी सुविधाओं को बुनियादी स्तर पर मजबूत बनाने के लिए जिस पृथक राज्य की कल्पना की गई थी आज वही राज्य इन सब बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है। इसका अनुमान तो अब इसी बात से लगता है कि आज लगातार पहाड़ों से गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं।लोग पहाड़ों में अपने आशियाने छोड़ कर शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं।
सरकारी तंत्र की सुस्त चाल और 18 वर्षों में सरकार के पूरे वादे सिर्फ कागजों में ही पूरे हुए हैं। चाहे वह प्रदेश को स्थाई राजधानी देने की बात हो या फिर पहाड़ से लगातार बदस्तूर होते हुए पलायन को रोकना। यह बातें सिर्फ हवा हवाई साबित हुई हैं। पलायन की मार का सबसे बड़ा उदाहरण टिहरी जिले के उस गनगर गांव का है जो कभी अपने समय में टिहरी रियासत के दौरान भरपूर और खुशहाल हुआ करता था।
कहा तो यह भी जाता है कि टिहरी रियासत के राजा उस समय गनगर गांव के साहूकारों से कर्ज भी लिया करते थे, लेकिन समय के बदलते परिवेश ने भरे पूरे खुशहाल गांव को न केवल पलायन करवा दिया बल्कि गांव में सरकार ने मूलभूत सुविधाएं देने के बजाय गांव के लोगों के आशियाने ही खंडहर में तब्दील करवा दिए। गांव के लोगों का कहना है कि उन्होंने गांव इसलिए छोड़ा क्योंकि वहां पर न तो शिक्षा की व्यवस्था थी, ना ही सड़क मार्ग की और न ही स्कूल की। लिहाजा लोग धीरे-धीरे इन सुविधाओं के अभाव में दिल्ली-देहरादून, मुम्बई और अन्य शहरों का रुख करने लगे। अब सिर्फ गांव में कोई अगर बसता है तो वहां है गांव का ग्राम देवता और कुछ गरीब परिवार।
गांव के लोगों का साफ तौर पर कहना है कि गांव में सरकार यदि मूलभूत सुविधाएं सड़क बिजली पानी स्कूल और अस्पताल सहित रोजगार की अन्य सुविधाएं देती तो जरूर पलायन रुकता और गांव इस तरह बदहाल न होता। वहीं ग्रामीण तो आज भी सरकार से उनके गांव के लिए सड़क मार्ग पहुंचाने और अन्य सुविधाएं देने की मांग कर रहे हैं जिससे कि वह आज भी अपने गांव फिर से वापस लौट सकें। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार पलायन रोकने के लिए ग्रामीण स्तर पर कोई रोजगार दे और पलायन रोकने के लिए कोई ठोस नीति बनाए।
सरकार पहाड़ों पर विकास की ओर ध्यान देने की बात तो ज़रूर कर रही है लेकिन स्थिति साफ तौर पर गंभीर होती दिखाई दे रही है क्योंकि लगातार हो रहे पलायन को रोकना सरकार के लिए एक चुनौती बन गया है। गांव के लोगों को समय पर अगर इन सब चीजों की सुविधाएं मिल जाए तो पलायन पर एक बार फिर से जरूर रोक लग सकती है।