September 22, 2024

पंडित जी! पहाड़ में कुनबा बढ़ा रहे हैं बिहारी…बिहारियों के कुनबे में पहाड़ी पंडितों का जमावड़ा

ऐतिहासिक किताब ‘चचनामा’ में जिक्र मिलता है कि एक पंडित ने मोहम्मद बिन कासिम को बताया कि राजा दाहिर की सेना तब तक लड़ती रहेगी जब तक मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा लहराती रहेगी

इतिहास गवाह है इस मुल्क में अरबी आक्रांताओं का अधिपत्य नहीं होता अगर मोहम्मद बिन कासिम को एक बा्रह्मण द्वारा धर्म ध्वज को गिराने का राज नहीं बताया जाता। ऐतिहासिक किताब ‘चचनामा’ में जिक्र मिलता है कि एक पंडित ने मोहम्मद बिन कासिम को बताया कि राजा दाहिर की सेना तब तक लड़ती रहेगी जब तक मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा लहराती रहेगी। मोहम्मद बिन कासिम ने बा्रह्मण की बात मानी और धर्म ध्वजा को मंदिर गिरा दिया। जिससे सिंध प्रांत के राजा दाहिर की सेना में भय का महौल बना और मोहम्मद बिन कासिम ने इसका फायदा उठा कर सिंध पर कब्जा किया। इसके बाद इरान, ईराक और यूरोपियनों ने इस देश को गुलाम बनाया। इतिहास में ऐसे कई नाजुक मौके हैं जब ज्ञान के पाखंडियों ने इस देश को भय और गुलामी में धकेला। ऐसा देश ही नहीं इस पहाड़ी प्रदेश में भी हुआ और वर्तमान में इसकी पटकथा लिखी जा रही है।

आज वक्त उसी राह पर रहा है। पहाड़ में पहाड़ी अल्पसंख्यक होने के कगार पर है। शहरों की तमाम जमीनों और नदियों को पंजाबी, हरयाणी, बिहारी यहां तक कि बंग्लादेशी लोगों ने कब्जा दी है। लेकिन प्रदेश की तमाम सरकारों ने इन लोगों को खदेड़ने की कभी जहमत नहीं उठाई। आज स्थिति इतनी विकट है कि इन अतिक्रमणकारियों को बचाने के लिए राज्य की सरकार ने अध्यादेश तक लाया। जबकि दूसरी ओर पहाड़ में आपदाग्रस्त लोगों को आज तक सरकार ने उन्हें बसाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की।

ताजा मामला प्रदेश में भस्मासुर की तरह पनप रहे कुछ चुनिंदा बिहारियों की बिहारी महासभा का है। जो प्रदेश के सत्ताशीर्ष पर ‘अट्टे’ (एक परजीवी) की तरह चिपका हुआ है। यह महासभा प्रदेश में अपने को बिहारी हितैषी बताती हैं। जिसे पहाड़ के कुछ ब्राह्मण नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। यानी इतिहास फिर अपने आप को दोहराने जा रहा है। मौका बसंत पंचमी का था, समूचा पहाड़ बसंत के आगमन का उत्सव मना रहा था। जबकि राजधानी में बिहारी हितों के लिए आवाजें एक हो रही थी। बिहारी महासभा ने राजधानी में सरस्वती पूजा के नाम एक कार्यक्रम आयोजित किया। जिसमें बिहार के डिप्टी सीएम से लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव और कई अन्य बिहारी मूल के अधिकारी शामिल हुए। इस कार्यक्रम की मंशा पहाड़ी प्रदेश में बिहारियों के वर्चस्व को बढ़ाने थी। बिडंबना देखिए कि इस कार्यक्रम में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पंडित अजय भट्ट, कैबिनेट मंत्री पंडित प्रकाश पंत, पंडित अरविंद पांडे, विधायक पंडित गणेश जोशी, महापौर पंडित सुनील उनियाल गामा और एसएसपी देहरादून निवेदिता कुकरेती जैसे पहाड़ी मूल लोग भी शामिल हुए। इन लोगों के इस कार्यक्रम में शामिल होने के पीछे क्या मंशा थी उसे उजागर होने में अभी वक्त लगेगा। लेकिन सवाल उठाता है कि आखिर इन पहाड़ी मूल के लोगों का बिहारी समाज के प्रति इतना मोह क्यों ?

उधर बिहारी महासभा ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगले वर्ष से इस प्रदेश में
भी बिहार की तर्ज पर सरस्वती पूजा के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित करवाया जायेगा। यानी स्पष्ट है कि जब प्रदेश के शीर्ष पर बिहारी मूल के अधिकारी बैठै हैं तो जरूर ऐसा होगा। ऐसा इसलिए भी कि इससे पहले प्रदेश की लकवाग्रस्त सरकार ने बिहारियों को खुश करने के लिए छठ पूजा पर सार्वजनिक अवकाश किया। सवाल उठता है कि क्या पहाड़ी रीति-रिवाजों को खत्म कर बिहारी की संस्कृति को पहाड़ पर थोपी जायेगी। आखिर पहाड़ के तीज-त्यौहारों को खत्म कर बिहारी त्यौहारों को प्रदेश में क्यों प्रोत्साहित किया जा रहा है।

सवाल हजार है। पहाड़ के लोगों को सोचना होगा कि वह मैदान में बस कर अपनी संस्कृति और सभ्यता को क्यों भूलाता जा रहा है। क्यों बहारी समाज के लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता का टीका पहाड़ के माथे पर लगाने को आतुर है। आखिर कैसे राजधानी की सड़कों पर बहारी लोगों की संस्कृति का उत्सव नजर आता है जबकि अपने ही प्रदेश में पहाड़ी संस्कृति जैसे कहीं खो सी गई है। उठो जागो और अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए एकजुट हो जाओ। उन लोगों को सबक सिखाओ जो बहारी लोगों को पनपाने में मदद कर रहे हैं।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com