November 24, 2024

उत्तर प्रदेश के मध्य लम्बित मामलों का जल्द होगा निदानः त्रिवेन्द्र सिंह रावत

CM Photo 01 dt. 17 August 2019

देहरादून। उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के मध्य लम्बित मामलों का जल्द से जल्द निस्तारण किया जाए। इसके लिए रोड मैप भी तैयार कर दिया गया है। परिसंपतियों से लेकर टिहरी बांध परियोजना से उत्पादित ऊर्जा में हिस्सेदारी, सिंचाई विभाग की परिसम्पत्तियों जिनमें आवासीय अनावासीय भवनों, खाली पड़ी भूमि, हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में भूमि शामिल है के हस्तांतरण, जमरानी बांध, विभिन्न जलाशयों, उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग पर बकाया बिजली के बिल, परिवहन विभाग के तहत पेसेंजर टैक्स के भुगतान, किच्छा बस स्टेशन के हस्तांतरण, पेंशन दायित्वों की पूर्ति सहित पर्यटन, वन, शिक्षा, सहकारिता आदि विभागों की समस्या पिछले लंबे समय से चली आ रही थी। जिसे लेकर पूर्व में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत एवं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की भी मुलाकात हो चुकि है

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मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के मध्य लम्बित मामलों का जल्द से जल्द निस्तारण किया जाए। जिसे लेकर शनिवार को मुख्यमंत्री आवास में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव डाॅ. अनूप चंद्र पाण्डेय व अन्य अधिकारियों ने मुख्यमंत्री से शिष्टाचार भेंट की। मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि किसी विषय को जितना टाला जाता है, उतना ही जटिल हो जाता है। पिछले दो वर्षों में दोनों राज्य सरकारों के प्रयासों से बहुत से मामलों पर सहमति बनी है। अनेक मामलों को निस्तारित किया गया है। अब कुछ मामले शेष रह गए हैं, इन्हें भी आपसी सहमति से हल कर लिया जाएगा।

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी लम्बित मामलों के समयबद्ध निस्तारण पर बल दिया है। दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच सकारात्मक बातचीत हुई है। गौरतलब हो कि यूपी के मुख्यमंत्री व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने दोनों राज्यों के मध्य लम्बित विभिन्न मामलों पर विस्तार से चर्चा हो चुकि है। यह तय किया गया कि लगभग सोलह वर्षों से अधिक समय से लम्बित चले आ रहे मामलों का निस्तारण टाइम बाउंड तरीके से किया जाए। सभी मामलों का एक कम्पलीट नोट तैयार किया जाए जिसमें दोनों राज्यों का पक्ष दर्ज हो। जिसमें दोनों ही पक्षों में सहमति बनी कि लम्बित विभिन्न मामलों को अब समयबद्ध तरीके से सुलझा लिया जाए। यदि कुछ ऐसे मामले फिर भी रह जाते हैं जिन पर मतभेद हों तो भारत सरकार के स्तर से निर्णय करा लिया जाए। वहां से होने वाला निर्णय दोनों पक्षों को मान्य होगा।


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