इस तरह चीड़ की पत्ती (पिरूल) बनेगी आय का जरिया, जंगल बचेंगे और पलायन भी रुकेगा
निष्प्रयोज्य समझी जाने वाली चीड़ की पत्ती (पिरूल) अब लोगों की आय का जरिया बनेगी। इससे फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, फोल्डर, डिस्प्ले बोर्ड आदि सामग्री बनाई जाएगी।
चीड़ की सूखी पत्ती पिरूल ज्वलनशील होती है। यह जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण है, जिससे वन संपदा के साथ ही जीव-जंतुओं को हर साल काफी नुकसान होता है। वन विभाग ने एक दशक पहले पिरूल से कोयला बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन यह सफल नहीं हो सकी। लेकिन, अब पर्यावरण संस्थान के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के अंतर्गत चल रहे मध्य हिमालयी क्षेत्रों में एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन ने सतत आजीविका सुधार कार्यक्रम के तहत चीड़ पत्ती प्रसंस्करण इकाई स्थापित की है। इकाई के तहत 65 लाख रुपये की लागत के कटर, ब्वॉयलर आदि उपकरण लगाए गए हैं।
पिरूल से ऐसे बनेंगे फोल्डर
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और परियोजना के अन्वेषक डॉ. डीएस रावत ने बताया कि पिरूल की सूखी पत्तियों को कटर से महीन काटा जाता है। फिर हैमर से कूटा जाता है। इसके बाद ब्वॉयलर में पिरूल की लुगदी तैयार की जाती है। तत्पश्चात बीटर मशीन में मिक्सिंग कर साढ़े तीन फुट चौड़ा और ढाई फुट मोटा गत्ता तैयार होता है। गत्ते से फाइल, लिफाफे, कैरी बैग, डायरी, फोल्डर बनाए जाते हैं।
वरिष्ठ वैज्ञानिक कपूर ने किया प्रसंस्करण इकाई का उद्घाटन
वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के वरिष्ठ वैज्ञानिक और सलाहकार ललित कपूर ने संस्थान के कोसी ग्रामीण तकनीकी परिसर में चीड़ पत्ती प्रसंस्करण इकाई का उद्घाटन किया। कपूर ने कहा कि चीड़ की पत्तियों के सदुपयोग से जहां पर्यावरण संरक्षण होगा, वहीं लोगों की आजीविका संवर्धन में भी सहायता मिलेगी।
संस्थान के प्रभारी निदेशक किरीट कुमार और परियोजना अन्वेषक डॉ. डीएस रावत ने कहा कि इसकी मदद से आग से हर साल जंगलों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा। इस अवसर पर प्रोजेक्ट मैनेजर डॉ. डीएस चौहान, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसके नंदी, डॉ. आरसी सुंदरियाल, डॉ. आरएस रावल, डा. हर्षित पंत, प्रशासनिक अधिकारी अनिल यादव, तकनीकी विशेषज्ञ डीएस बिष्ट, अक्षत भटनागर, महिला हाट के राजेश कांडपाल, मुकेश देवराड़ी आदि मौजूद थे।