September 22, 2024

राज्य गठन में निभाई बड़ी भूमिका, फिर भी चुनावी राजनीति में हाशिए पर है ये दल, पढ़े पूरी रिपोर्ट

देहरादून। देश के कई राज्यों में क्षेत्रीय दल सत्ता में है। कई राज्यों में सत्ता में रहे है, लेकिन उत्तराखण्ड में क्षेत्रीय ताकत के रूप में पहचान रखने वाला यूकेडी हाशिये पर है। वह भी तब जबकि अलग राज्य आंदोलन में उसने अहम भूमिका निभाई थी। राज्य गठन के बाद उसके खाते में तो इसका श्रेय आया ही नहीं। हालात यह है कि दल अपेक्षित मत प्रतिशत ना मिलने के चलते अपना चुनाव निशान कुर्सी भी गवां बैठा है।

यूकेडी की बात करें तो अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में 25 जुलाई 1979 में उत्तराखण्ड क्रांति दल अस्तित्व में आया। यूकेडी ने अलग राज्य निर्माण आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। राज्य गठन के बाद शुरूआत में कम सही सही, प्रदेश की जनता ने इसे समर्थन दिया। 2002 के पहले विधानसभा में दल ने चार सीटों पर जीत भी दर्ज की, लेकिन इसके बाद वह जमीन पर पर अपनी पकड़ गंवाता रहा।

2002 में जहां यूकेडी का मत प्रतिशत 5.5 था वह 2022 में घटकर 1.1 प्रतिशत पर आ गया। 2007 में यूकेडी ने विधानसभा चुनावों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी भाजपा को समर्थन दिया और सरकार में शामिल हो गया। उस वक्त दल के वरिष्ठ नेता दिवाकर भट्ट मंत्री बने। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ा दल बना तो यूकेडी उसके साथ हो लिया और फिर सरकार का हिस्सा बन गया।

कांग्रेस को समर्थन देकर प्रीतम पंवार ने मंत्री पद संभाला। इन परिस्थितियों में दल को मजबूत करने के स्थान पर नेताओं ने व्यक्तिगत हितों को तरजीह दी। नतीजा, राजनीतिक अनुभहीनता और शीर्ष नेतृत्व की महत्वाकांक्षाओं ने एक बड़ी क्षेत्रीय ताकत को रसातल में धकेल दिया। इसके बाद यूकेडी कई धड़ों में बंट गया।

लंबे इंतजार के बादल यूकेडी के शीर्ष नेताओं ने 2017 में सुलह करते हुए विभिन्न गुटों में एका बनाने में सफलता पाई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में परिसंपतियों का बंटवारा, स्थायी राजधानी गैरसैण का सवाल, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार समेत राज्य से जुड़े मुद्दो को लेकर दल जनता के बीच गया, लेकिन जनता ने इन्हें सिरे से सनकार दिया। इस चुनाव में यूकेडी को मात्र 0.7 प्रतिशत मत ही मिल पाया।

जहां तक राज्य गठन के बाद हुए पिछले चार लोकसभा चुनाव में यूकेडी के प्रदर्शन का सवाल है तो वह अत्यंत कमजोर रहा। 2004 में हुए चुनाव में पार्टी ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उसे 1.6 प्रतिशत वोट मिले। 2009 के चुनाव में पार्टी ने पांचों सीटों पर उम्मीदवारों को उतारा पर मत प्रतिशत और कम हो गया। इस चुनाव में कुल 1.2 मत प्रतिशत ही मिल पाया। 2014 के चुनावों के समय दल पूरी तरह बिखर चुका था। ऐसे में निर्दलीय के रूप में तीन उम्मीदरवार मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें 0.15 प्रतिशत मत मिले। 2019 में यूकेडी ने चार सीटों पर उम्मीदवार मैदार में उतारे और उसके हिस्से 0.2 प्रतिशत मत ही आए। अब एक बार फिर यूकेडी ने चार सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारे है। देखना ये होगा कि प्रदेश की जनता का यूकेडी के प्रति क्या रूख रहता है?


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