प्रधानमंत्री मोदी ने जेपी नारायण और नानाजी देशमुख को दी श्रद्धांजलि, बोले- इन्होंने देश के विकास के लिए खुद को समर्पित कर दिया

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को आपातकाल विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण और जनसंघ के बड़े नेता नानाजी देशमुख को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी और देश में उनके योगदान की सराहना की.

उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, “लोकनायक जेपी नारायण को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि. वह एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व थे, जिन्होंने भारत के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी है. उन्होंने खुद को लोक कल्याणकारी पहलों के लिए समर्पित कर दिया और भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार की रक्षा करने में सबसे आगे थे. हम उनके आदर्शों से गहराई से प्रेरित हैं. मोदी ने नारायण को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, प्यार से जेपी को बुलाते हैं.

इसके अलावा उन्होंने आधुनिक भारत के चाणक्य कहे जाने वाले नानाजी देशमुख को भी उनका जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, “महान दूरदर्शी, भारत रत्न नानाजी देशमुख को उनकी जयंती पर प्रणाम. उन्होंने हमारे गांवों के विकास और मेहनती किसानों को सशक्त बनाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया. नानाजी के जन्म को चिह्नित करने के लिए मैंने 2017 में एक भाषण दिया था.”

11 अक्टूबर, 1902 को जयप्रकाश नारायण का हुआ था जन्म

मालूम हो कि आज के दिन ही यानी 11 अक्टूबर, 1902 को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण का जन्म हुआ था. नारायण एक समाज-सेवक थे, जिन्हें ‘लोकनायक’ के नाम से भी जाना जाता है. साल 1999 में उनकी मृत्यु के बाद उन्हें ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था. नारायण को उनके समाज के प्रति उनकी सेवा भावना को देखते हुए साल 1965 में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था. वहीं बिहार में सारन के सिताबदियारा में जन्मस्थान होने के कारण पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है. इसके अलावा दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल ‘लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल’ भी उनके नाम पर है.

11 अक्टूबर, 1916 जन्में थे नानाजी देशमुख 

वहीं नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के कडोली गांव में 11 अक्टूबर, 1916 को हुआ था. राजाबाई की गोद में जन्मे चंडिकादास अमृतराव (नानाजी) देशमुख ने भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी थी. आधुनिक भारत के चाणक्य कहे जाने वाले नानाजी देशमुख ने आदिवासियों के विकास की भी चिंता की. प्रयोग के रूप में पूर्वी सिंहभूम में काम प्रारंभ करने वाले नानाजी चाहते थे कि आदिवासियों की परंपरा को बनाए रखते हुए विकास की योजना बनाई जाए. इसके लिए वे कई बार झारखंड भी आए.