बड़ी राजनीतिक साजिश तो नहीं केदारनाथ धाम में त्रिवेन्द्र के खिलाफ विरोध
दस्तावेज डेस्क। बाबा केदारनाथ धाम में पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के साथ पण्डा-पुरोहितों द्वारा बदसलूकी करना और बाबा केदार के दर्शन से रोकना उनके खिलाफ किसी बड़ी राजनीतिक साजिश की ओर इशारा करती है। खबर है कि पंडा-पुरोहित समाज ने पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत को बाबा केदार के दर्शन से रोका और उनके साथ कथित तौर पर धक्कामुक्की की गई।
देवस्थानम् बोर्ड का विरोध कर रहे तीर्थ पुरोहित समाज के लोगों ने एक आम आदमी की तरह दर्शन के लिए गये पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत को जिस तरीके सेे भगवान के दर्शन करने से रोका वह एक अस्वस्थ परम्परा की शुरूआत है। ये परम्परा आने वाले समय में प्रदेश हित के लिए कतई नहीं कही जा सकती है।
देवस्थानम् बोर्ड पर बैठी पर बैठी हाई पावर कमेटी के अध्यक्ष मनोहरकांत ध्यानी पहले ही बता चुके हैं कि कुछ राजनीतिज्ञों के इशारे पर पंडा समाज समाज विरोध कर रहा है। वे कह चुके है कि कि देवस्थानम बोर्ड एक्ट को किसी ने भी सही तरीके से नहीं पढ़ा है। इसलिए कुछ राजनीतिज्ञों के इशारे पर पंडा समाज विरोध कर रहा है। एक्ट में किसी भी हक-हकूकधारी का हक छीनने का जिक्र नहीं है। देवस्थानम बोर्ड यात्रियों की सुविधा के लिए बनाया गया है।
शायद त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने कार्यकाल के दौरान पंडा-पुरोहितों की इस तरह की मनमानी और मोनोपॉली को खत्म करने और यात्रियों को सुविधाओं मुहैया कराने को देवस्थानम् बोर्ड का फैसला लिया होगा। सोमवार को कथित तौर पर पंडा‘-पुरोहितों ने जिस तरीके से पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र सिंह रावत के साथ सलूक किया उसने एक बात फिर साबित कर दी है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत जनहित में कठिन फैसले लेने से भी नहीं चूकते हैं।
गौरतलब है कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान कठिन फैसले के चलते वे सत्ता और विपक्ष के निशाने पर रहे। लेकिन तमाम विरोध के बावजूद भी त्रिवेन्द्र ने जनहित के फैसलों पर कोई डिगा नहीं पाया। भ्रष्टाचार पर उनकी हमेशा जीरो टालरेंस की नीति रही। आपको बता दें कि 5 नवम्बर को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केदारनाथ आने वाले हैं। प्रधानमंत्री केदारनाथ दौरे से ऐन पहले त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ केदारनाथ धाम में बदसूलकी करना किसी बड़ी राजनीतिक साजिश को ओर साफ-साफ इशारा करता है।
क्या पूरा मामला
दरअसल, उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया था। बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं।
बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं। शुरुआती दौर में तीर्थ पुरोहितों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि राज्य सरकार ने बोर्ड का नाम वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के नाम पर रखा था। बोर्ड बनाने का जो प्रस्ताव तैयार किया गया था उसमें पहले इस बोर्ड का नाम उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड रखा गया था। जिसके बाद राज्य सरकार ने साल 2020 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड रख दिया। बावजूद इसके तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध जारी रखा है।
देवस्थानम बोर्ड बनाने की मंशा
चारधाम देवस्थानम अधिनियम गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ और उनके आसपास के मंदिरों की व्यवस्था में सुधार के लिए है, जिसका मकसद यह है कि यहां आने वाले यात्रियों का ठीक से स्वागत हो और उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल सकें. इसके साथ ही बोर्ड भविष्य की जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा।
क्या अरबों का चढ़ावा है विरोध की वजह
एक मुख्य वजह यह भी बताई जा रही है कि हर साल धामों में अरबों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब किताब रखा जाएगा यानी जो चढ़ावा चढ़ता है उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी। जिसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं।
ये है देवस्थानम बोर्ड
चारधाम और उनके आसपास के 51 मंदिरों में अवस्थापना सुविधाओं का विकास, समुचित यात्रा संचालन एवं प्रबंधन के लिए उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन अधिनियम को राजभवन की मंजूरी मिलने के बाद चारधाम देवस्थानम बोर्ड अस्तित्व में आ गया है। मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया। मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को सीईओ की जिम्मेदारी दी गई. इस बोर्ड का वास्तविक मकसद यात्रा की व्यवस्था को बेहतर किया जाना है।
बोर्ड करेगा धामों की संपत्तियों का रखरखावः
उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन अब बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा है। बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी।