आरक्षण योग्यता के विपरीत नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने NEET प्रवेश में OBC कोटा रखा बरकरार

SUPREME COURT

सुप्रीम कोर्ट ने अन्‍य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए आरक्षण के साथ नीट-पीजी काउंसलिग में 27% आरक्षण को सही सही ठहराया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मेरिट के साथ आरक्षण भी दिया जा सकता है, यह विरोधाभासी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उच्च अंक योग्यता के लिए एकमात्र मानदंड नहीं हैं।

अदालत ने यह भी कहा कि एनईईटी-पीजी में प्रवेश के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) मानदंड पर कोई रोक नहीं होगी और मौजूदा मानदंड (8 लाख रुपये सकल वार्षिक आय कट-ऑफ) वर्तमान प्रवेश वर्ष पर लागू होंगे।

पीठ ने कहा कि आरक्षण के लिए जिस सामग्री पर भरोसा किया गया है, और “गरीब व सबसे गरीब” की पहचान के संबंध में सभी पक्षों को सुने बिना नीति की योग्यता के आधार पर आदेश पारित करना संभव नहीं होगा।

अनुच्छेद 15(4) और 15(5) का हवाला देते हुए, जो वास्तविक समानता का आह्वान करते हैं, शीर्ष अदालत ने कहा, “प्रतियोगिता परीक्षा उत्कृष्टता, व्यक्तियों की क्षमताओं को नहीं दर्शाती है। वे कुछ वर्गों को मिलने वाले सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ को नहीं दर्शाते हैं।

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि परीक्षा आयोजित होने तक आरक्षण और सीटों की संख्या का खुलासा नहीं किया जाता है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सीटों के गोलपोस्ट को बदल दिया गया है।

7 जनवरी को जारी एक अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2021-22 के लिए NEET-PG प्रवेश के लिए मेडिकल काउंसलिंग फिर से शुरू करने की अनुमति दी। इसने 27 प्रतिशत ओबीसी और 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा की वैधता को भी बरकरार रखा।

यह आदेश राज्य सरकार के चिकित्सा संस्थानों में अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) सीटों पर केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका से संबंधित है।

पीठ ने आज अपने विस्तृत फैसले में कहा कि एआईक्यू की योजना सरकारी चिकित्सा संस्थानों में सीटें आवंटित करने के लिए बनाई गई थी।

आदेश में कहा गया, “एआईक्यू सीटों में आरक्षण देने से पहले केंद्र को इस अदालत की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी और इस प्रकार उनका निर्णय सही था। हम मानते हैं कि स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए एआईक्यू में ओबीसी के लिए आरक्षण संवैधानिक रूप से मान्य है।”

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