September 22, 2024

केंद्र सरकार ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाली अनुसूचित जातियों की स्थिति जानने के लिए जल्द ही बनाने जा रही एक पैनल बनाने जा रहा

केंद्र सरकार ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाली अनुसूचित जातियों की स्थिति जानने के लिए जल्द ही एक पैनल बनाने जा रहा है. इसकी तैयारी चल रही है. सरकार इस मामले के दूरगामी असर को देखते हुए अनुसूचित जातियों या दलितों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करने के लिए तैयार है. इनमें ऐसे अनुसूचित जातियों पर फोकस किया गया है जिन्होंने हिंदू ,बौद्ध और सिख  धर्म के अलावा अन्य धर्मों को अपना लिया है. इस तरह के एक आयोग के गठन के प्रस्ताव पर केंद्र में सक्रिय तौर पर चर्चाएं हो रही हैं और जल्द ही इस पर एक फैसला होने की उम्मीद है.

पैनल के लिए मिल गई हरी झंडी

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग -डीओपीटी के सूत्रों के मुताबिक, उन्हें ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाली अनुसूचित जातियों की स्थिति जानने के लिए एक पैनल बनाने के लिए हरी झंडी दिखा दी गई है. इस प्रस्ताव पर गृह, कानून, सामाजिक न्याय और वित्त मंत्रालयों के बीच बातचीच चल रही है. इस तरह के आयोग का गठन दलितों के लिए सर्वोच्च न्यायालय में लंबित कई याचिकाओं के मद्देनजर बेहद अहम हैं.

ये याचिकाएं ईसाई या इस्लाम अपनाने वाले दलितों के लिए एससी को दिए जाने वाले आरक्षण का लाभ चाहते हैं. याचिकाओं में कहा गया कि धर्म में बदलने से भी सामाजिक बहिष्कार नहीं खत्म होता है. ईसाई धर्म के अंदर भी ये बरकरार है भले ही इस धर्म में ये मान्य नहीं हो. गौरतलब हो कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950, अनुच्छेद 341 के तहत यह निर्धारित करता है कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है. जबकि मूल आदेश के तहत केवल हिंदुओं को ही एससी माना गया था. इसमें 1956 में सिखों और 1990 में बौद्धों को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया था.

बेंच ने दिया सरकार को 3 सप्ताह का वक्त

इस मामले पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 30 अगस्त को जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच को बताया कि वह याचिकाकर्ताओं के उठाए गए मुद्दे पर सरकार के रुख को रिकॉर्ड में रखेंगे. इस बेंच में जस्टिस अभय एस ओका और विक्रम नाथ भी शामिल थे. बेंच ने सॉलिसिटर जनरल को तीन सप्ताह का वक्त दिया और इस मामले पर अगली सुनवाई के लिए 11 अक्टूबर की तारीख तय की.

सॉलिसिटर जनरल ने बेंच से कहा कि इस मुद्दे के गहरे असर हैं और वह इस मुद्दे पर मौजूदा स्थिति को रिकॉर्ड में रखना चाहते हैं, जो दलित समुदायों के आरक्षण के दावे को खास लोगों के अलावा अन्य धर्मों तक बढ़ाने के अनुरोध से  संबंधित है. तब कोर्ट ने उनके अनुरोध पर उन्हें तीन सप्ताह का वक्त दिया. उधर दूसरी तरफ  इस मुद्दे पर याचिका डालने वाले लोगों के वकीलों से बेंच ने कहा कि इसके बाद एक सप्ताह के अंदर यदि कोई जवाब हो तो वो उसे दाखिल करेंगे.

पैनल के अध्यक्ष होंगे केंद्रीय स्तर के मंत्री

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस प्रस्तावित आयोग में तीन या चार सदस्य हो सकते हैं. इस प्रस्तावित आयोग का अध्यक्ष केंद्रीय कैबिनेट मंत्री स्तर का होगा. इस आयोग को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक वर्ष से अधिक की संभावित समय सीमा दिए जाने की उम्मीद है. ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों की स्थिति और स्थिति में बदलाव का पूरा खाका खिंचने के अलावा ये प्रस्तावित आयोग मौजूदा एससी सूची में अधिक सदस्यों को जोड़ने के असर का भी अध्ययन करेगा.

यह मुद्दा दलितों तक ही सीमित है क्योंकि एसटी और ओबीसी के लिए धर्म को लेकर कोई खास शासनादेश नहीं है. डीओपीटी की वेबसाइट में कहा गया है, “अनुसूचित जनजाति से जुड़े शख्स के अधिकार उसके धार्मिक विश्वास से स्वतंत्र हैं.” इसके अलावा मंडल आयोग की रिपोर्ट के लागू होने के बाद कई ईसाई और मुस्लिम समुदायों को ओबीसी की केंद्र या राज्यों की सूची में जगह मिली है.

अभी एससी समुदाय के लिए उपलब्ध अहम फायदों में  केंद्र सरकार की नौकरियों में सीधी भर्ती के लिए 15 फीसदी आरक्षण है. इन नौकरियों में  एसटी के लिए 7.5 फीसदी और ओबीसी के लिए 27 फीसदी का कोटा है. ऐसा नहीं है कि ईसाई या इस्लाम अपनाने वाले दलितों के लिए एससी आरक्षण (Reservation) फायदे का सवाल पहले की सरकारों के सामने नहीं आया हो. ये सवाल देश की पहले की सरकारों के शासन में भी अहम रहा है.

पिछली सरकारों में भी उठा था ये मुद्दा

डॉ मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने अक्टूबर 2004 में इस दिशा में कदम बढ़ाया था. तब धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याण के उपायों की सिफारिशों के लिए भाषाई अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया था. इस राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग का गठन भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा  की अध्यक्षता में किया गया था.

मई 2007 में, रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें सिफारिश की गई कि अनुसूचित जाति का दर्जा पूरी तरह से धर्म से अलग कर दिया जाए और एसटी की तरह उसे  धर्म-तटस्थ (Religion-Neutral) बनाया जाए. हालांकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस सिफारिश को इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि जमीनी अध्ययनों (Field Studies) से इसकी पुष्टि नहीं हुई थी.

मुस्लिम-ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों की क्या है स्थिति

साल 2007 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अलग से किए गए एक अध्ययन में नतीजा निकला कि दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की जरूरत है. हालांकि इस नतीजे को भी सहमति नहीं दी गई. इसे इस आधार पर दरकिनार कर दिया गया कि यह अध्ययन बेहद छोटे स्तर पर किया गया है और इस पर आधारित अनुमानों की भरोसेमंदी पर यकीन नहीं किया जा सकता था.

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि आयोग के गठन का नवीनतम प्रस्ताव इस सोच की वजह से जरूरी हो गया था कि यह मुद्दा बेहद अहमियत का है. लेकिन इसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने और साफ और सटीक स्थिति पर पहुंचने के लिए कोई सटीक डेटा मौजूद नहीं है.


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