सीक्रेट मीटिंग, बालासाहेब का बहाना; 18 साल बाद खत्म होगा मातोश्री से राज ठाकरे का सियासी वनवास?
क्या 18 साल बाद मातोश्री की सियासत से राज ठाकरे का वनवास खत्म होगा? क्या उद्धव ठाकरे अपने चचेरे भाई राज ठाकरे को साथ लाएंगे? महाराष्ट्र की सियासत में पिछले एक महीने में दूसरी बार इस तरह की चर्चाएं जोरों पर हैं. हाल ही में शिवसेना (यूबीटी) सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के एक बयान ने इन अटकलों को और बल दे दिया, जब उन्होंने राज से फोन पर बात करने की बात कही.
पत्रकारों से बात करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं मनसे प्रमुख से बात करने के लिए फोन मिलाना चाह रहा हूं, लेकिन थोड़ी हिचकिचाहट है कि राज मेरा फोन उठाएंगे या नहीं? उद्धव ने यह भी कहा कि बाला साहेब से जुड़े कुछ सामान लेने के लिए मैं राज से मिलना चाहता हूं.
सार्वजनिक तौर पर भले उद्धव किसी और वजह का जिक्र कर रहे हों, लेकिन अंदरखाने यह अटकलें तेज है कि उद्धव और राज के बीच जरूर कुछ खिचड़ी पक रही है. 2005 में उद्धव की ताजपोशी से नाराज राज ने शिवसेना का दामन छोड़ दिया था और बाद में खुद की पार्टी बना ली.
3 एक्शन, जिसने दोनों के साथ आने की अटकलों को मजबूत किया
1. संजय राऊत के साथ मनसे नेता की मीटिंग- 6 जुलाई को राज ठाकरे की पार्टी मनसे के अभिजीत पानसे और संजय राउत के बीच सामना दफ्तर में मुलाकात हुई. दोनों के बीच बंद कमरे में करीब 1 घंटे से अधिक बातचीत हुई.
मीटिंग के बाद पानसे ने कहा कि गठबंधन का हम कोई प्रस्ताव लेकर नहीं आए थे. संजय राउत से अन्य मुद्दों पर बातचीत हुई. पानसे राज ठाकरे के काफी करीबी नेता माने जाते हैं, वहीं राउत उद्धव के किचन कैबिनेट के सदस्य हैं.
संजय राउत से मुलाकात कर पानसे सीधे राज से मिलने पहुंचे. इसके बाद दोनों भाईयों के बीच गठबंधन की अटकलें तेज हो गई.
2. कार्यकर्ताओं ने लगाया पोस्टर, राज हंसने लगे- अभिजीत पानसे और संजय राउत के बीच मुलाकात के बाद मनसे के कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह दोनों भाईयों के साथ आने का पोस्टर लगा दिया. इस पर न तो मनसे ने सफाई दी और न ही शिवसेना (यूबीटी) ने.
इतना ही नहीं, 14 जुलाई को मुंबई में पत्रकारों ने जब राज से साथ आने को लेकर सवाल पूछा, तो राज ने मुस्कुरा दिए. उद्धव के साथ आने के सवाल पर राज ने कोई भी स्पष्ट बयान नहीं दिया. राज की प्रतिक्रिया से भी इन अटकलों को और अधिक बल मिला.
3. दो हर्षल के बीच मुलाकात- मराठी अखबार लोकमत के मुताबिक हाल ही में राज ठाकरे के प्रचार प्रमुख हर्षल देशपांडे और उद्धव के मीडिया प्रमुख हर्षल प्रधान के बीच मुलाकात हुई थी. हालांकि, दोनों का कहना है कि यह मुलाकात गठबंधन को लेकर नहीं थी.
हर्षल प्रधान ने अखबार को बताया कि हम मनसे नेता से मिले जरूर थे, लेकिन मसला बाला साहेब ठाकरे से जुड़ा हुआ था. प्रधान के अनुसार शिवाजी पार्क के पास बाला साहेब का एक मेमोरियल बनाया जा रहा है, जहां उनसे जुड़ी चीजें रखवाई जानी है.
प्रधान ने आगे बताया कि राज ठाकरे के पास 1970 दशक के कुछ टेप रखे थे, जिसे पाने के लिए हमने उनसे बात की थी.
राज की जरूरत उद्धव को भी, 2 वजहें…
शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे कोई कमाल नहीं कर पाए हैं. राज ठाकरे की पार्टी शुरुआत में 2-4 सीटें जीतने में कामयाब भी हुई, लेकिन बाद में ज्यादा सफलताएं नहीं मिली. जानकारों के मुताबिक शिवसेना कोर वोटर्स राज के साथ नहीं आ पाए.
शिवसेना विवाद के वक्त बीजेपी की ओर से राज ठाकरे को खूब भाव मिला, लेकिन बाद में सरकार में शामिल नहीं किया गया. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि राज ठाकरे अब शिवसेना (यूबीटी) के साथ आ सकते हैं. उद्धव को भी राज की जरूरत है.
1. उद्धव का जनाधार खिसका, सिंबल भी छिना- बालासाहेब ठाकरे के वक्त शिवसेना का मजबूत जनाधार कोकण, नासिक और मुंबई-ठाणे में था. पिछले चुनाव में भी इन इलाकों में शिवसेना का प्रदर्शन शानदार रहा, लेकिन शिवसेना में टूट के बाद उद्धव यहां कमजोर हो गए हैं.
नासिक संभाग के बड़े नेता शिंदे गुट में शामिल हो गए हैं. कोकण का हाल भी बुरा है, जबकि ठाणे में खुद शिंदे क्षत्रप हैं. शिंदे से लड़ाई में उद्धव का पार्टी सिंबल भी छिन चुका है, जिसकी लड़ाई उद्धव कोर्ट में लड़ रहे हैं.
कुल मिलाकर कहा जाए तो बाला साहेब ठाकरे ने जो राजनीतिक विरासत की संपत्ति उद्धव को सौंपी थी, उसमें से अधिकांश उनके हाथों से जा चुकी है.
2. खुद बीमार, ज्यादा रैली नहीं कर पा रहे- उद्धव ठाकरे बीमार हैं, उन्हें रीढ़ से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं हैं. इस वजह से वे ज्यादा रैली नहीं कर पा रहे हैं. जब सरकार गिरी, उस वक्त भी उद्धव बीमार थे.
शरद पवार भी उद्धव की निष्क्रियता पर सवाल उठा चुके हैं. राज महाराष्ट्र की सियासत में एक अच्छा वक्ता माने जाते हैं. उद्धव अगर उनको साथ लेते हैं, तो ठाकरे परिवार कार्यकर्ताओं को तेजी से गोलबंद करने में कामयाब हो सकते हैं.
राज की पकड़ कोकण बेल्ट में हैं, जिसका फायदा भी उद्धव को हो सकता है. कोकण इलाके में विधानसभा की 75 सीटें हैं.
अटकलें अपनी जगह, एका की राह में 2 रोड़े भी हैं..
1. नेतृत्व किसका, यह तय करना मुश्किल होगा- मनसे नेता प्रकाश महाजन ने एबीपी माझा से बात करते हुए कहा है- अब वक्त आ गया है कि उद्धव शिवसेना की कमान राज को सौंप दे और खुद मार्गदर्शन करें.
दोनों नेताओं के बीच नेतृत्व को लेकर सहमति बनना चुनौती भरा है. 2022 में एक रैली के दौरान राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ने को लेकर बड़ा खुलासा किया था. राज ने कहा था कि उद्धव बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं.
2005 का वाकया सुनाते हुए राज ने कहा था कि उद्धव से मेरी नेतृत्व को लेकर बात हो गई थी. मैंने उद्धव से कहा था कि तुम्हें जो भी पद मुझे देना है, दे दो और मामला खत्म करो, लेकिन उद्धव नहीं माने.
2. दोनों के बेटे भी राजनीतिक मैदान में- उद्धव और राज के साथ-साथ दोनों के बेटों का भी राजनीतिक करियर का मसला है. उद्धव के बेटे आदित्य महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं. राज के बेटे अमित भी राजनीतिक मैदान में हैं.
मराठी अखबार लोकमत के संपादक अतुल कुलकर्णी एक ओपिनियन में लिखते हैं- राज और उद्धव का साथ आना मुश्किल है, क्योंकि दोनों नेता अपने बेटे के करियर को लेकर कोई समझौता नहीं करेंगे. खासकर राज ठाकरे.
कुलकर्णी के मुताबिक दोनों नेताओं के बेटे में अगर कोई सहमति बन जाए तो यह अलग बात है, लेकिन पानी पुल से काफी आगे निकल चुकी है.